tag:blogger.com,1999:blog-5900017452542936772024-03-21T10:35:44.530-07:00रविन्द्र जायलवाल ब्लॉगयहाँ आपको मेरे विचार और मेरी पसंद के विचार मिलेंगेUnknownnoreply@blogger.comBlogger45125tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-27305188726527452152023-12-23T09:32:00.000-08:002023-12-23T09:32:48.894-08:00देश और राष्ट्र में अंतर <p><b><u> देश : </u></b>देश की सीमा होती है , अर्थ नीति होती हैं, मंत्रिमंडल होता है , प्रधानमंत्री होता है , देश की एक छवि होती है , देश की एक सेना होती है | <span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Noto Sans", Arial, Helvetica, sans-serif;">देश का अर्थ एक स्टेट से है जो स्वशासी राजनीतिक पहचान पर लागू होता है।</span></p><p><b><u> देश का उदाहरण :</u></b> देश के नजरिया से गंगा एक नदी है जिसका एक उद्गम स्थान और समापन स्थान है उसके तट है उसकी धारा है |</p><p><br /></p><p><b><u>राष्ट्र : </u></b>राष्ट्र एक सोच होती है | राष्ट्र को बंधा नहीं जा सकता वो व्यापक है | राष्ट्र एक मत है </p><p><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Noto Sans", Arial, Helvetica, sans-serif;">एक राष्ट्र का अर्थ लोगों के उस समूह से है जो एक समान सांस्कृतिक पहचान रखते हैं</span></p><p><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Noto Sans", Arial, Helvetica, sans-serif;"><b><u>राष्ट्र का एक उदाहरण: </u></b> 1) </span>राष्ट्र की नजर से गंगा के माँ है | वो भागीरथी है | वो जननी है </p><p>२) <span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Noto Sans", Arial, Helvetica, sans-serif;">स्पेन में रहने वाले बास्क लोग हो सकते हैं जो खुद को एक अलग राष्ट्र मानते हैं क्योंकि वे जातीय रूप से बाकी आबादी से अलग हैं। जबकि रूसी संघ एक ऐसा देश है, जिसमें सभी राज्य एक ही सरकार के समान कानूनों का पालन करते हैं।</span></p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-82129112083736376082021-09-21T01:56:00.010-07:002021-09-22T12:44:43.309-07:00 गाँधी वध क्यों - Flip Side of Mahatma Gandhi<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEirGArg7KKJOWo9XhpiNnL4LxJiR0OrTnQ91FsXCfAS4zqhOLUekPgfRhcICr5m8BkxjsjhztOb0bADfo1oX9z8baLZaQACLxMW1Equp4N2RNU0SRoBEzgdkJ4CB40RKWoUhvuMslu6IKKy/s650/nathuram-gandhi.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="438" data-original-width="650" height="159" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEirGArg7KKJOWo9XhpiNnL4LxJiR0OrTnQ91FsXCfAS4zqhOLUekPgfRhcICr5m8BkxjsjhztOb0bADfo1oX9z8baLZaQACLxMW1Equp4N2RNU0SRoBEzgdkJ4CB40RKWoUhvuMslu6IKKy/w235-h159/nathuram-gandhi.jpg" width="235" /></a></div><br /><span style="font-family: arial;">नाथूराम गोडसे ने गाँधी को मारने के 150 कारण अदालत को बताये जिन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया | आप भी जाने अपने समय के<b> <span style="color: red;">सबसे सफल पाखंडी</span> </b>का वध क्यों किया गया | </span></div>
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1. गाँधी जी ने दो जन आन्दोलन शुरू किये और दोनों को ही बीच में बंद कर दिया<br /><b>
2. सरदार पटेल बहुमत से प्रधानमंत्री चुने गए थे लेकिन गाँधी ने अन्यायपूर्ण तरीके से सरदार पटेल के स्थान पर नेहरु को प्रधानमंत्री बनाया</b><br />
3. भगत सिंह को फंसी से बचा सकते थे पर उन्होंने चर्चा तक नहीं की जबकि अंग्रेज तैयार बैठे थे<br />
4. कहा की "देश का बटवारा मेरी लाश पर होगा" , पर उनके जिन्दा रहते बटवारा हुआ , </div><div>5. बात बात पर आन्दोलन करने वाले ने बटवारा रोकने के लिए आन्दोलन क्यों नहीं किया ? </div><div><b>6. बटवारे के बाद भी मुसलमानों को भारत में रोक लिया जबकि बटवारा धार्मिक आधार पर हुआ था </b></div><div>7. पाकिस्तान द्वारा भारत पर हमले के समय पाकिस्तान को 55 करोड़ देने के लिए अनशन किया और दिलाया भी |<br />
8. सोमनाथ मंदिर का सरकारी पैसे से पुनर्निमाण का विरोध किया और प्रस्ताव को रद्द करने पर मजबूर किया जबकि गाँधी मंत्रालय के सदस्य भी नहीं थे | पर 13 जनवरी 1948 को उन्होंने सरकारी खर्च पर दिल्ली में मस्जिद की मरम्मत करवाने के लिए अनशन किया</div><div> 9. मंदिर में नमाज पढने की हिम्मत की पर मस्जिद में गीता पढने की नहीं</div><div>
10. बुढापे में नग्न लडकियों के साथ सो कर ब्रह्मचर्य के प्रयोग किये<br />
11. जवानी में अपने घर से सोना चुराया , अपनी पत्नी को घर से निकाला<br />
12. त्रिपुरा कांग्रेस के दौरान सुभाष चंद्र बोस बहुमत के साथ अध्यक्ष के रूप में चुने गए थे हालांकि गांधी ने बोस को इस्तीफा देने के लिए मजबूर करने के लिए पट्टाभाई सीतारमैया का समर्थन किया। सुभाष चन्द्र बोसे के कांग्रेस चुनाव में जीतने पर चिड कर इसे अपनी व्यक्तिगत हार बताया </div><div>13 . विश्व युद्ध में भारत के लोगों को ब्रिटिश सेना का साथ देने को कहा जबकि उन्होंने ही हमे गुलाम बना रखा था </div><div>14. उनके जीते जी बंगाल में <span style="color: red;">direct action</span> हुआ, लाखो हिन्दुओं को भेड बकरियों की तरह काटा गया , अहिंसा के नकली पुजारी ने कुछ न किया </div>
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15. गांधी ने कश्मीर के राजा हरिसिंह को पद छोड़ने की सलाह दी क्योंकि कश्मीर में मुस्लिम बहुमत था, और काशी में बसने को कहा | दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम (उस्मान अली खान) को पाकिस्तान में शामिल होने का समर्थन किया, भले ही हैदराबाद राज्य (आंध्र, तेलंगाना, कर्नाटक और बरार) में हिन्दू बहुमत था। </div><div>16. 1919 में भारत के लोग चाहते थे कि जलियांवाला बाग में निर्दोष लोगों का नरसंहार के लिए जनरल डायर पर मुकदमा चलाया जाए | गांधी ने इस मांग का समर्थन करने से इनकार कर दिया।</div><div>17. 6 मई 1946 को सार्वजनिक मंच पर गांधी ने कहा की हिंदुओं को बलिदान देना चाहिए और मुस्लिम लीग के सदस्यों से नहीं लड़ना चाहिए। केरल में मुस्लिम लीग के सदस्यों ने 1500 से अधिक हिंदुओं को मार डाला और 2000 को इस्लाम में परिवर्तित कर दिया। विरोध करने के बजाय गांधी ने व्यक्त किया कि यह अल्लाह के अनुयायियों का एक बहादुर कार्य था।</div><div>18. कई अवसरों पर गांधी ने शिवाजी , महाराणा प्रताप और गुरु गोविंद सिंह को पथभ्रष्ट राष्ट्रवादि कहा |</div><div>19. 1931 में की डिजाइनिंग पर कांग्रेस कमेटी भारतीय ध्वज ने सुझाव दिया कि झंडा केवल भगवा रंग में हो। गांधी ने इसे तिरंगे झंडे में बदलने पर जोर दिया।</div><div>20. जब हिंदू शरणार्थी विभाजन के बाद भारत लौटे, उनमें से कुछ ने अस्थायी रूप से कुछ मस्जिदों में शरण ली।</div><div>जब मुसलमानों ने आपत्ति की तो गांधी ने ऐसे सभी हिंदू बच्चों को मजबूर किया, महिलाओं और बूढ़ों को मस्जिद छोड़कर सड़कों पर रहने के लिए।</div><div><b>21. पाकिस्तान से बांग्लादेश तक भारत के बीच में से एक कॉरिडोर बनाने का समर्थन किया | ये एक तरह से फिर से एक और विभाजन था देश का </b></div><div><br /></div><div><br /></div><div><div>गांधी के जीवन के घटनाक्रम देखिये : </div><div><br /></div><div>1. आप एक काले आदमी लंदन में रहकर बिना किसी परेशानी के गोरो के साथ पढ़ते, होस्टल के एक कमरे में रहते हैं, एक मेस में खाते है फिर अचानक ट्रेन में एक साथ सफर करने में फेंक दिए जाते है? क्यूँ? ये बात कतई हजम नही हुई। 😊</div><div><br /></div><div>2. फिर आप वही काले भारतीय उन्हीं गोरों की सेना में सार्जेंट मेजर बनते हैं और दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश बोर वार में आपकी तैनाती एम्बुलेंस यूनिट में होती है जहां आप लड़ाई में गोरों का कालों के विर्रुध साथ देते हैं। मिलिट्री यूनिफॉर्म में आपकी की फोटो पूरे इंटरनेट उपलब्ध है। सार्जेंट मेजर गांधी लिखकर सर्च कर लीजिए। 😠</div><div><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwu-cgTglKPfC5WJN-jYlO5JGovCrLq_T6n8IIsnPS5OCumg7Nn0ccjNERVbHgg7BDpy5OXOSO3DCg52snKkU9dUd4tdNWgJ9c4-GGV6uj24nOIqW3hJdv8bV_s00QvI8eW0VZOsK9xbSQ/s720/sargent+major+gandhi.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="432" data-original-width="720" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwu-cgTglKPfC5WJN-jYlO5JGovCrLq_T6n8IIsnPS5OCumg7Nn0ccjNERVbHgg7BDpy5OXOSO3DCg52snKkU9dUd4tdNWgJ9c4-GGV6uj24nOIqW3hJdv8bV_s00QvI8eW0VZOsK9xbSQ/w400-h240/sargent+major+gandhi.jpg" width="400" /></a></div><br /><div><br /></div><div><br /></div><div>3. फिर आप में अचानक 46 वर्ष की उम्र में 1915 में देशप्रेम जागा और मिलिट्री यूनिफार्म उतारकर आपको बैरिस्टर घोषित कर दिया गया। (रानी लक्ष्मी बाई, खुदीराम बोस, बिस्मिल, भगतसिंह और आजाद जैसे अनेकों देशभक्तों की 25 की उम्र आते आते तक शहादत हो गई थी।) 😥</div><div><br /></div><div>4. फिर ब्रिटिश द्वारा आपको महात्मा बुद्ध की तरह शांति अहिंसा का दूत बनाकर दक्षिण अफ्रीका से सीधे चंपारण भेज दिया जाता है <span style="color: red;"><b>अंग्रेजो का एजेंट</b></span> के तौर पर जहाँ नील उगाने वाले किसानों के आंदोलन को आप हैक कर लेते हैं। हिंसक होते आंदोलन को अहिंसा शांति के फुस्स आंदोलन में बदल देते हैं। क्यूँ?</div><div><br /></div><div>5. आप महात्मा बुद्ध की तरह दिन में एक धोती लपेट कर शांति अहिंसा के नाम पर भारतीयों के आजादी के लिये होनेवाले हर उग्र आंदोलन की हवा निकाल कर उसे बिना किसी परिणाम के अचानक समाप्त कर देते हैं और अंग्रेज चैन की सांस लेते रहते हैं। क्यूँ?</div><div><br /></div><div>6. नंगा फकीर बनकर अपने साथ अपनी बेटी भतीजी के अलावा अनेक औरतों के साथ खुद पर परीक्षण करने के लिये नंगे सोते हैं और अपने सेल्फ़-कंट्रोल को टेस्ट करते हैं। कौनसा महात्मा ऐसा करता है?(यह अपनी पुस्तक "सत्य के साथ मेरे प्रयोग" में उन्होंने खुद स्वीकार किया है।)😠</div><div><br /></div><div><b>7. आप अहिंसा के पुजारी, प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का खुला साथ देते हैं और अपने अहिंसा के सिध्दांतों को दरकिनार करके भारतीयों को कहते हैं सेना में भर्ती हो जाओ और युद्ध करो ताकि ब्रिटिश राज बचा रहे। तब अहिंसा आड़े नहीं आयी? </b></div><div><br /></div><div>8. इसी अहिंसा की ख़ातिर नेताजी का कांग्रिस से इस्तीफ़ा दिला दिया? जब अंग्रेजों की तरफ से लड़ना अहिंसा है तो अपने देश के लिये लड़ना क्यों बुरा था?</div><div><br /></div><div>9. दिल्ली के मंदिर में कुरान पढ़ने की जिद पूरी करने के लिए पुलिस बुला लेते हैं पर कभी मस्जिद में गीता या रामायण नहीं पढ़ने की हिम्मत जुटा पाते। पाकिस्तान को 55 करोड़ और आज के बांग्लादेश जाने 15 KM चौड़ा कॉरिडोर जिसके दोनों तरफ 10 KM तक केवल मुस्लिम ही जमीन खरीद सके उसकी जिद पकड़कर अनशन करने की धमकी देकर ब्लैकमेल करते हैं। यही अनशन आपने पाकिस्तान ना बनने के लिए क्यूँ नहीं किया?</div><div><br /></div><div>बापूजी सत्य यह है आपके अहिंसा के पाठ सिर्फ़ हिंदुओ के ही लिए थे जिन्होंने हिंदुओ को नपुंसक बना दिया। वहाँ पंजाब, सिंध, केरल में हिंदू मरते रहे, भगत सिंह सूली चड़ गया मगर आपने अनशन नहीं दिए। </div><div><br /></div><div>शुक्र है आप इजरायल नहीं गए और वहाँ अपने अहिंसा के भजन नहीं गाए, नहीं तो वहाँ के यहूदियों का अब तक अस्तित्व ख़त्म हो गया होता और वो बंब की जगह चरखे फेंक रहे होते</div></div><div> </div>
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<span style="font-family: arial;"><img align="bottom" alt="" border="0" hspace="0" src="https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=3fe785a18e&view=att&th=140205996866367d&attid=0.4&disp=emb&realattid=d1f21557312af75a_0.1.13&zw&atsh=1" /></span></div>
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<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px;"><div>नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर 1949 को पंजाब की अंबाला जेल में फाँसी दे दी गई | </div><div><br /></div></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-57735501984840714112021-08-27T06:48:00.000-07:002021-08-27T06:48:22.877-07:00 कब्ज (constipation) का इलाज <p> कब्ज का इलाज :</p><p></p><ol style="text-align: left;"><li>रात को सोने से पहले गर्म पानी के साथ एक चम्मच पतंजलि का त्रिफला ले कर सोयें या सुबह गुड या शहद के साथ खाली पेट एक चम्मच पतंजलि का त्रिफला ले</li><li>सुबह उठते ही 4-6 गिलास गुनगुना पानी पीये और उसमे पतंजलि का आवला रस मिला लें </li><li>आधा घंटा कपाल भाती करें हर दिन </li><li>नाश्ते में कच्चा भोजन जैसे अंकुरित अनाज , सलाद , मौसम के अनुसार फल और मेवे लें </li><li>दोपहर में सलाद और भोजन आधा आधा खाएं और सलाद भोजन से पहले खाएं </li><li>दिन में पर्याप्त मात्र में पाने पीयें | ठंडा पानी बिलकुल ना पीयें </li></ol><p></p><p><br /></p><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgeNYYCUVhFzGkKbCUifFtsmCYfiNHvHewg8KExBM38yusyXFqRPQW4Gvs42cvDJ1YvsDStoB2ZkkYGaJdsyBMMIes7KpMKmMrihcxSkAQoWtAg9kTYQTpOw3VPO3YAAeDaRwE6DKhht4P9/s400/patanjali+TriphalaChurna.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="300" data-original-width="400" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgeNYYCUVhFzGkKbCUifFtsmCYfiNHvHewg8KExBM38yusyXFqRPQW4Gvs42cvDJ1YvsDStoB2ZkkYGaJdsyBMMIes7KpMKmMrihcxSkAQoWtAg9kTYQTpOw3VPO3YAAeDaRwE6DKhht4P9/w400-h300/patanjali+TriphalaChurna.png" width="400" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgc2YOHusmLhrdGxjvaqE0pU9gLVCLn00XLcNTJKP62aC8wmzoF2t8AcSbm2_yR9xqJLPWwaoqqIsQvgsz8Shi4YFo_yPH8Qo6YSZgBDt_8iYt9Bnk0VktfWyCMxDZVGCRqp6eMr5TgQMMr/s416/amla-juice-patanjali.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="416" data-original-width="154" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgc2YOHusmLhrdGxjvaqE0pU9gLVCLn00XLcNTJKP62aC8wmzoF2t8AcSbm2_yR9xqJLPWwaoqqIsQvgsz8Shi4YFo_yPH8Qo6YSZgBDt_8iYt9Bnk0VktfWyCMxDZVGCRqp6eMr5TgQMMr/s320/amla-juice-patanjali.jpeg" width="118" /></a></div></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><br /><br /><p></p><p>15 दिन से एक महीने में पुराना कब्ज भी ठीक हो जायगी </p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-26648535600917301182021-08-27T06:28:00.002-07:002021-08-27T09:31:58.355-07:00 अस्थमा ( asthma) का ईलाज<p> अस्थमा का ईलाज : </p><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px; text-align: left;"><p></p><ol style="text-align: left;"><li>भ्रस्तिका प्राणायाम करे आधा घंटा हर दिन | अस्थमा ज्यादा है तो धीरे धीरे करें </li><li>भ्रस्तिका प्राणायाम का विकल्प है 6-10 मंजिल की इमारत में सीढियां चढ़ना उतरना दिन में एक बार </li><li>हमेशा गर्म पानी पीये और ठंडी चीजो खाने से परहेज करें जैसे आइसक्रीम / कोल्ड ड्रिंक आदि </li><li>हर दिन आपने क्या खाया उसे नोट करते जाए | जिस जिस दिन अस्थमा का अटैक आये उस दिन ध्यान दे की क्या खाया था ? उस तरह के खाने का परहेज करें | </li><li>सोते समय नाक में <b>केवल देशी गाय के </b> शुद्ध देशी घी की 2 - 4 बुँदे डाल कर सोयें </li></ol><p></p></blockquote><p><br /></p><p>तीन से 6 महीने में पुराना अस्थमा भी ठीक हो जायगा </p><p><br /></p><p>नाक में डालने के लिए औषिधि युक्त देशी गाय का शुद्ध देशी घी यहाँ से आर्डर करें </p><p><a href="https://www.gotirth.org/product-category/sinusitis-treatment/ " target="_blank">https://www.gotirth.org/product-category/sinusitis-treatment/ </a></p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhE0oTF-w74Enq-EvwO5YxfJkLVoG4BDPRoBUxpVDsdISi1mgpZudkuPMyVX-wcn2uW6fMEvbaoL1jSbsCKkwyDIIkNVQhnZAu_B4yEnV7Hc7vqROwAnGKkNtGvyRVMqMBhf8DD97pj8b2u/s600/nasya.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="390" data-original-width="600" height="208" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhE0oTF-w74Enq-EvwO5YxfJkLVoG4BDPRoBUxpVDsdISi1mgpZudkuPMyVX-wcn2uW6fMEvbaoL1jSbsCKkwyDIIkNVQhnZAu_B4yEnV7Hc7vqROwAnGKkNtGvyRVMqMBhf8DD97pj8b2u/s320/nasya.png" width="320" /></a></div><br /><p><br /></p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-31620422035719899852021-08-27T06:14:00.003-07:002021-08-27T09:33:55.089-07:00 पाईरिया ( Pyria - मसूड़ों से खून निकालना ) का ईलाज<p> पाईरिया ( मसूड़ों से खून निकालना ) का ईलाज : </p><p></p><ol style="text-align: left;"><li>चीनी से बनी सभी चीजे खानी बंद करें </li><li>पतंजलि का दन्त मंजन ब्रश के बाद करें अवश्य करें 5 मिनट तक ऊँगली से </li><li>रात में और सुबह खाना खा के ही तुरंत ब्रश करें </li><ul><li>ब्रश एक मिनट से ज्यादा ना करें </li><li>ब्रश ऊपर नीचे की दिशा में करें </li></ul><li>हर दिन आधा घंटा कपाल भाती करें </li><li>नाश्ते में केवल कच्चा भोजन जैसे अंकुरित अनाज , सलाद , मौसम के अनुसार फल और मेवे लें </li></ol><p></p><p><br /></p><p>15 दिन से एक महीने में सालों पुराना पाईरिया भी ठीक हो जायगा </p><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><br /><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNoUGt4D4mwnEBgHGlZfhG2Vpkitvu8O23qQCpV4jC2-fCTz81_kBLK4tx3p_aZhIJqN58zY8_1AF0Gau6wx6oiBAVcYpGi9ykdR6qlfo4bEipSt8K_ovPilS0NZBY4zukiTpbdmLF8gNJ/s1423/dant+manjan+patanjali.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1423" data-original-width="1000" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNoUGt4D4mwnEBgHGlZfhG2Vpkitvu8O23qQCpV4jC2-fCTz81_kBLK4tx3p_aZhIJqN58zY8_1AF0Gau6wx6oiBAVcYpGi9ykdR6qlfo4bEipSt8K_ovPilS0NZBY4zukiTpbdmLF8gNJ/s320/dant+manjan+patanjali.jpg" width="225" /></a></div><br />Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-60128827705918086162021-07-11T02:11:00.002-07:002021-07-11T02:11:51.729-07:00 List of gurukul in India<p>1. </p><p><span style="background-color: #fcff01;">आचार्यकुलम , पतंजलि योग पीठ हरिद्वार : ( लड़के और लड़कियों दोनों के लिए )</span></p><p>P.O. - Patanjali Yogpeeth,</p><p>Near Patanjali Yogpeeth Phase - I,</p><p>Haridwar - 249405, Uttarakhand, Bharat</p><p>E-mail: info@acharyakulam.org</p><p>Website: http://www.acharyakulam.org/</p><p>Phone: 01334 273 021</p><p>Tel.: +91 - 01334-273400, 8954890551, 8954890253</p><p><br /></p><p>2. </p><p><span style="background-color: #fcff01;">किशनगढ़ घासेड़ा गुरुकुल , रेवाड़ी हरियाणा ( केवल लड़कों के लिए )</span></p><p>Phone 01274 - 247220</p><p>08222889104</p><p>08222889112</p><p>09416347551</p><p>Website : http:www.gurukulrewari.com </p><p>ईमेल : gkgrewari@gmail.com</p><p><br /></p><p> 3. </p><p><span style="background-color: #fcff01;">Gurukul Kurukshetra - ( </span><span style="background-color: #fcff01;"> केवल लड़कों के लिए </span><span style="background-color: #fcff01;"> )</span></p><p>136119 (Near University III Gate, Kurukshetra University) Haryana, INDIA</p><p>Phone: 91 - 01744-238048, 238648</p><p>099960-26045,</p><p>099960-26338 , </p><p>99960-26306, </p><p>099960-26339, </p><p>099960-26046</p><p>E-mail: gurukul_kkr@yahoo.com, </p><p>website: www.gurukulkurukshetra.com, </p><p> </p><p>4. </p><p><span style="background-color: #fcff01;">Samvid gurukul ( केवल लड़कियों के लिए )</span></p><p>http://www.samvidgurukulam.org/</p><p>Address : Vatsalya Gram, Mathura-Vrindavan Marg, Post - Prem Nagar, Vrindavan - 281003, India</p><p>Phone : +91-9412777152, 9412777154</p><p>Email : principal@samvidgurukulam.org</p><p>Website : www.samvidgurukulam.org</p><p><br /></p><p>5.</p><p><span style="background-color: #fcff01;">SAMVID GURUKULAM NALAGARH ( केवल लड़कों के लिए )</span></p><p>Village Bariyan, Tehsil Nalagarh, Pin code: 174101 , Distt. Solan, Himachal Pradesh, India</p><p>infosamvidnlg@vatsalyagram.org</p><p>admissionsamvidnlg@gmail.com</p><p>infosamvidnlg@gmail.com</p><p>careersamvidnlg@gmail.com</p><p>+91-7876004251, 7876036470, 7457870002, 7876010723</p><p><br /></p><p><br /></p><p>अन्य गुरुकुलो के बारे में जानकारी मिलने पर डाल दी जायगी अगर आपको किसी गुरुकुल के बारे में अत है तो कृपया कमेंट कर के बताएं </p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-3622787714438974212015-03-28T19:01:00.001-07:002015-03-28T19:01:59.892-07:00जाने स्वच्छ भारत अभियान को भारत में कैसे सफल किया जा रहा है और उसका हिस्सा बने (ENGLISH )<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मुह बंद काम चालू<br />
<br />
<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="510" src="https://www.youtube.com/embed/tf1VA5jqmRo" width="854"></iframe><br />
<br />
नीचे दिए लिंक द्वारा इस अभियान से जुड़ कर सफाई अभियान को "भारत में " सफल बनाने का सही तरीका सीखें<br />
<a href="https://www.facebook.com/theugl.yindian">https://www.facebook.com/theugl.yindian</a></div>
Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-9816247339120967582014-12-14T00:41:00.001-08:002014-12-14T00:41:45.199-08:00एंड्राइड मोबाइल में हिंदी में टाइप करने कर तरीका | How to type in Hindi in Android mobile phone<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एंड्राइड फोन में हिंदी में टाइप करने का step by step तरीका <br />1. Android phone में Google play में जा कर <b>google hindi input</b> नामक सॉफ्टवेयर डाउनलोड करे व् इनस्टॉल करे<br /><br />2. settings -->language & input --> spellchecker को सेलेक्ट करे<br /><br />3. settings -->language & input --> Default में google hindi input को सेलेक्ट करे<br /><br />4. अब google hindi input के सामने के तीन लाइन वाले छोटे से बटन कोक्लिच्क करे। इस से आप input setting में आ जायेंगे --> english prediction को सेलेक्ट करे<br /><br />5.ध्यान रहे auto spellcheck को सेलेक्ट नहीं करना<br /><br />6. अब whatsup या sms में मेसेज लिखना शरू करे। <br /><br />7. आपको कीबोर्ड दिखने लगेगा। यहाँ स्पेस बार (लम्बा वाला बटन ) के लेफ्ट साइड में a=अ नामक एक बटन दिखाई देगा। इसका मतलब सारी सेटिंग सही से हो चुकी है। <br /><br />8. जब हिन्दी में लिखना हो तो इस बटन को दबाये। और bharat टाइप करे। ये अपने आप हिंदी में भारत टाइप कर देगा। जब इंग्लिश में टाइप करना हो तो a=अ नामक बटन फिर से दबाएँ<br /><br />visit www.DharmYuddh.com<br /><br /><br /></div>
Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-60980041958087446322013-09-06T21:33:00.000-07:002013-09-06T21:33:01.814-07:00विदेशो में जमा कालाधन : हिंदुत्व के लिए सबसे बड़ा खतरा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div>
<span style="font-size: medium;"><span style="color: red;">विदेशो में जमा कालाधन : हिंदुत्व के लिए सबसे बड़ा खतरा , इसे भारत वापस लाना ही होगा नहीं भारत बरबाद हो </span><span style="color: red;">जायेगा</span> .</span></div>
<div>
<span style="color: #009900; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #009900; font-size: medium;">हिंदुत्व को सबसे बड़ा खतरा हिन्दू विरोधी ताकतों से है जिन्हें की विदेशो में जमा कालेधन से पोसा ज़ा रहा है-----</span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;"><br />
</span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;">१-विदेशो में जमा कालाधन
मिशनरियो को मुहैया कराया ज़ा रहा जो हिन्दुओ को ईसाई धर्म अपनाने के लिए
प्रलोभन के रूप में किया ज़ा रहा. यह कालाधन हमारा अपना ही धन है जो हमारे
खिलाफ प्रयोग हो रहा है.</span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;">२-कालाधन
उन हिंदुत्व विरोधी देशो को मात्र १-१.५% व्याज पर दिया ज़ा रहा है. जो
इसे आतंकियों और मिशनरियो को अनुदान के रूप में दे रहे हैं.</span></div>
<div>
<span style="color: #009900; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #009900; font-size: medium;">३-यही
कालाधन भारत को ऊँचे दर पर कर्ज के रूप में दिया ज़ा रहा है और उन
कर्जदाताओ की शर्त पर हम अपना प्राकृतिक संसाधन विदेशी कंपनियों को कौड़ियो
के भाव बेंच दे रहे है और ये दुश्मन और पैसा कमाकर भारत को बरबाद कर
देंगे. इस समय १२१ करोड़ भारतीयों पर प्रति व्यक्ति ३८८००/- कर्जा है. यह
कर्जा निपटने के नाम पर सरकार सरकारी संस्थानों को विदेशियों को बेच देगी.</span></div>
<div>
<span style="color: #3333ff; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #3333ff; font-size: medium;">४-इस
कालेधन के प्रभाव में हमारे बीके हुए नेता किसी भी हिंदुत्व विरोधी
कानून को तुरंत पास कर देते है जैसे- हिन्दू अंधश्रद्धा कानून, लक्षित
हिंसा विधेयक, </span></div>
<div>
<span style="color: #3333ff; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #3333ff; font-size: medium;">५-कालाधन
भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने में किया ज़ा रहा है जिसमे ९८% हिन्दू ही
मरते है भारत में आज तक आतंकवाद में इसाइयों की मौत नगण्य है.</span></div>
<div>
<span style="color: #009900; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #009900; font-size: medium;">६-भारत
में ईसाई बाहुल्य इलाको में आतंकवाद के नाम पर सिर्फ हिन्दुओ का क़त्ल
किया जाता है और आतंकवाद के नाम पर सरकार इसे हिन्दुओ का नाम मिटने
में प्रयोग कर रही है. उत्तर पूर्व में हिन्दू दिनों दिन गायब होते ज़ा रहे
है.</span></div>
<div>
<span style="color: #009900; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #009900; font-size: medium;">७-भारत में अधिकतर कालाधन इन्ही हिन्दू विरोधियो का है जिसे खदानों और योजना-व्यापार के पैसे से लूटा गया है.</span></div>
<div>
<span style="color: #3333ff; font-size: medium;"><br />
</span></div>
<div>
<span style="color: #3333ff; font-size: medium;">८-यदि आप सोनिया
के "राष्ट्रीय सलाहकार परिषद्" के सदस्यों की लिस्ट देखे तो आप पाएंगे की
इसमे सभी के सभी हिन्दू मूल्यों का विरोध करते है जो हमेशा ही हिंदुत्व
विरोधी नियम कानून, अध्यादेश, सलाह, कमिटी, नियुक्<wbr></wbr>तिया आते रहेते है. सोनिया मंडली में सभी लोग हिन्दू नामो वाले मुस्लिम और इसाई हैं.</span></div>
<div>
<span style="color: red; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: red; font-size: medium;">९-भारत
में ४०० लाख करोड़ का कालाधन भारत को हमेशा ही गुलाम बनाये रखने
केलिए काफी है जैसे की इसी में से थोडा सा पैसा खर्च करके विदेशी
कंपनियों को भारत को लुटाने की खुली छुट मिली हुई है जो की हर साल भारत से
२० लाख करोड़ लुट रहे है जो हमारे देश की कुटीर उद्योग को बंद कराकर हमको
गुलाम बना दे रही है.</span></div>
<div>
<span style="color: #009900; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #009900; font-size: medium;">१०-भारत
में स्कुलो में पाठ्यक्रम सिर्फ इसी कालेधन के भरोसे ही बदल करके हमारे
बच्चो का दिमाग गुलामी की तरफ ले ज़ा रहे है. शिक्षा पर पहले ही माफिया
का कब्ज़ा हो चूका है.</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;">११-भारत
में २०००० लाख करोड़ की सम्पदा को लुट लुट कर विदेश में जमा किया ज़ा रहा
और गरीबो पर धौंस जमाया ज़ा रहा है, जनता सोचती है की हमारा क्या ज़ा रहा
है यदि कोयला में सिर्फ मन्होहन के कार्यकाल में २६ लाख करोड़ का लुट मचा
है.आज बाजार में १२/- किलो बिकने वाला कोयला १० पैसे किलो पर लुटा दिया
गया. इसमे भी कालेधन का खेल हुआ.</span></div>
<div>
<span style="color: red; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: red; font-size: medium;">१२-पेट्रोलियम में कालेधन का खेल तो पुरे भारत वासिओ का होश उड़ा देगी जब यह खुलकर सामने आयेगा </span></div>
<div>
<span style="color: #009900; font-size: medium;"><br />
</span></div>
<div>
<span style="color: #009900; font-size: medium;">क्योकि भारतीयता और
हिंदुत्व में ज्यादा फर्क नहीं है और भारत में रहेने वाले ९९.९९% भारतीयों
के पूर्वज हिन्दू रहे है जिससे उनके जीवन में हर कदम पर हिंदुत्व का दर्शन
होता. हिंदुत्व को ये बर्बाद नहीं करा रहे है, हिंदुत्व को .०१% भारतीय और
विदेशो में हमारे दुश्मन ही हिंदुत्व को बरबाद करने पर तुले हुए है जिसके
लिए हराम के कालेधन का बखूबी इस्तेमाल किया ज़ा रहा है और कांग्रेस सरकार
इसमे अपना अहम् रोल अदा करा रही है.</span></div>
<div>
<span style="color: red; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: red; font-size: medium;">इसलिए भारत
की लुट के इस कालाधन को वापस लाना बहुत जरुरी है, परन्तु कालाधन को लाने
में हिंदुत्व विरोधी ताकतों को कोई रूचि नहीं है न टीवी वालो को, न
कांग्रेस सरकार को. हर भारतीय को या तो कालेधन के अभियान को सहयोग करना
चाहिय नहीं तो विरोध-चुपचाप कतई नहीं बैठे.</span></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-7948902808186200812013-09-06T21:31:00.000-07:002013-09-06T21:31:32.158-07:00Flip Side of Mahatma Gandhi<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><div>
<br /></div>
<div style="color: blue;">
<br clear="all" /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
</div>
<div style="font-size: 10pt;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"><img align="bottom" alt="" border="0" class="" hspace="0" src="https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=3fe785a18e&view=att&th=140205996866367d&attid=0.6&disp=emb&realattid=d1f21557312af75a_0.1.1&zw&atsh=1" /></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 10pt;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<div>
<b><span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"><u>Reasons for killing Mahatma Gandhi:</u></span></b></div>
<div>
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div>
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">
<div>
During the trial justice Khosla had allowed Nathuram Godse</div>
<div>
the killer of Gandhi to read his own confession in the court.</div>
</span></div>
<div>
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
</div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"><img align="bottom" alt="" border="0" hspace="0" src="https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=3fe785a18e&view=att&th=140205996866367d&attid=0.2&disp=emb&realattid=d1f21557312af75a_0.1.2&zw&atsh=1" /></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">However the Indian government had banned the confession of Nathuram.</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"><img align="bottom" alt="" border="0" hspace="0" src="https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=3fe785a18e&view=att&th=140205996866367d&attid=0.11&disp=emb&realattid=d1f21557312af75a_0.1.3&zw&atsh=1" /></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">Nathuram's brother Gopal Godse fought a 60 years legal battle</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">after which the Supreme Court removed the ban.</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"><img align="bottom" alt="" border="0" hspace="0" src="https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=3fe785a18e&view=att&th=140205996866367d&attid=0.8&disp=emb&realattid=d1f21557312af75a_0.1.4&zw&atsh=1" /></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif; font-size: xx-small;"><u>Gopal Godse</u></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">Nathuram had given 150 reasons for killing Gandhi; </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">some of which are as follows:</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">1. In 1919 people of <span style="color: blue;">India</span></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"><span style="color: blue;">wanted General Dyer to be tried </span>for</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="font-family: comic sans ms, sans-serif;"><span style="color: blue;">the Massacre </span><span style="color: blue;">of innocent people at Jalianwalla Baugh .</span></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">Gandhi refused to support this demand.</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"><img align="bottom" alt="" border="0" hspace="0" src="https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=3fe785a18e&view=att&th=140205996866367d&attid=0.12&disp=emb&realattid=d1f21557312af75a_0.1.5&zw&atsh=1" /></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue;"><span style="font-family: comic sans ms, sans-serif;">2. Whole of India wanted Gandhi to intervene and save</span></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">Bhagat Singh,Rajguru and Sukhdev from the Gallows.</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">Gandhi stubbornly refused on the grounds</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">that they were misguided freedom fighters,</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">and theirs was an act of violence.</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"><img align="bottom" alt="" border="0" hspace="0" src="https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=3fe785a18e&view=att&th=140205996866367d&attid=0.9&disp=emb&realattid=d1f21557312af75a_0.1.6&zw&atsh=1" /></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: Arial;">3. On 6th May 1946 on public platform, Gandhi asked </span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: Arial;">Hindus to sacrifice and not fight the members of Muslim league.</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: Arial;">In Kerala Muslim league members killed over 1500 Hindus </span><span style="color: blue; font-family: Arial;">and converted</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: Arial;">2000 to Islam. Instead of protesting Gandhi </span><span style="color: blue; font-family: Arial;">expressed that it was a brave</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: Arial;">act of Allah's followers.</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<span style="font-family: Arial;">4. On several occasions Gandhi called Shivaji, Maha Rana pratap</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<span style="font-family: Arial;">and </span><span style="font-family: Arial;">Guru Govind Singh as misguided nationalists.</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<span style="font-family: Arial;"><span style="color: blue;"><b>5.</b></span> <span style="color: blue;">Gandhi advised Raja Harisingh of Kashmir to abdicate </span></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<span style="font-family: Arial;"><span style="color: blue;">as Kashmir had Muslim majority ,</span></span><span style="color: blue; font-family: Arial;">and settle down in Kashi.</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<img align="bottom" alt="" border="0" hspace="0" src="https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=3fe785a18e&view=att&th=140205996866367d&attid=0.1&disp=emb&realattid=d1f21557312af75a_0.1.7&zw&atsh=1" /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: Arial;"><span style="font-size: xx-small;"><u>Raja Harisingh</u></span></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: Arial;">on the other hand he supported the </span><span style="color: blue; font-family: Arial;">Nizam (Osman Ali Khan )</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: Arial;">of Hyderabad to join Pakistan , </span><span style="color: blue; font-family: Arial;">even though the state of </span><span style="color: blue; font-family: Arial;">Hyderabad</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: Arial;">(Andhra , Telangana ,Karnataka and Berar) </span><span style="color: blue; font-family: Arial;">had Hundu majority.</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
</div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue;"><img align="bottom" alt="" border="0" hspace="0" src="https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=3fe785a18e&view=att&th=140205996866367d&attid=0.7&disp=emb&realattid=d1f21557312af75a_0.1.8&zw&atsh=1" /></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue;"><span style="font-family: comic sans ms, sans-serif; font-size: xx-small;"><span style="font-size: xx-small;"><u>Nizam</u> </span><u>Osman Ali Khan</u></span></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">Sardar Vallabh bhai Patel however over ruled Gandhi .</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="font-family: comic sans ms, sans-serif;"><span style="color: blue;">When Nehru </span><span style="color: blue;">heard of Patel's police action in Hyderabad</span></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="font-family: comic sans ms, sans-serif;"><span style="color: blue;">(operation POLO) </span><span style="color: blue;">he disconnected his telephone with Patel.</span></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"><img align="bottom" alt="" border="0" hspace="0" src="https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=3fe785a18e&view=att&th=140205996866367d&attid=0.13&disp=emb&realattid=d1f21557312af75a_0.1.9&zw&atsh=1" /></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif; font-size: xx-small;"><u>Nizam surrendering to Patel</u></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">6. In 1931 the congress committee on designing of</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">Indian flag suggested that the flag be only in saffron.</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">Gandhi insisted changed it to a tri-colour flag.</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<b><span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"><img align="bottom" alt="" border="0" hspace="0" src="https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=3fe785a18e&view=att&th=140205996866367d&attid=0.5&disp=emb&realattid=d1f21557312af75a_0.1.10&zw&atsh=1" /></span></b></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"><b>7.</b> During the Tripura congress , Subhash Chandra Bose</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">was elected as president with majority however Gandhi</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">supported Pattabhai Sitaramayya forcing Bose to resign.</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">8. On 15th June 1947 during congress conclave it was decided to</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">resist the partition of India but Gandhi went to the meeting at the</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">last minute and supported the partition.</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<i><span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"><b>Infact it was Gandhi who had declared earlier </b><b>that partition</b></span></i></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"><i><b>will take place </b></i><b><i>only over my dead body.</i></b></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<b><span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"><img align="bottom" alt="" border="0" hspace="0" src="https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=3fe785a18e&view=att&th=140205996866367d&attid=0.10&disp=emb&realattid=d1f21557312af75a_0.1.11&zw&atsh=1" /></span></b></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif; font-size: xx-small;"><u>Patel and Nehru</u></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"><b>9.</b> Sardar Patel was elected by majority as the</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="font-family: comic sans ms, sans-serif;"><span style="color: blue;">first Prime Minister </span><span style="color: blue;">but Gandhi insisted on Nehru .</span></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">10. Nehru government had decided to reconstruct Somnath Mandir</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">at its cost but Gandhi without even being a member of the ministry</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">forced the Govt. to reject this proposal .</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"><img align="bottom" alt="" border="0" hspace="0" src="https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=3fe785a18e&view=att&th=140205996866367d&attid=0.3&disp=emb&realattid=d1f21557312af75a_0.1.12&zw&atsh=1" /></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">At the same time on 13th January 1948 he went on a fast to</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">allow Muslims to repair the mosque in Delhi at govt's cost.</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">11. When Hindus refugees returned to India after partition,</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">some of them took shelter in some mosques temporarily .</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="font-family: comic sans ms, sans-serif;"><span style="color: blue;">When Muslims objected ,Gandhi forced </span><span style="color: blue;">all such Hindus children,</span></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">ladies and the old to leave the mosque and live on the streets.</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">12. In October 1947 Pakistan attacked Kashmir ,</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">Gandhi went on a fast and forced the Indian Govt</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">to pay Pakistan a compensation of Rs.55 crore.</span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;"> </span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="font-family: comic sans ms, sans-serif;"><span style="color: blue;">Gandhi did not mind hurting Hindu </span><span style="color: blue;">feelings</span></span></div>
<div style="font-size: 13px;">
<span style="color: blue; font-family: comic sans ms, sans-serif;">to win over the Indian Muslims.</span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<span style="font-family: Arial;"><img align="bottom" alt="" border="0" hspace="0" src="https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=3fe785a18e&view=att&th=140205996866367d&attid=0.4&disp=emb&realattid=d1f21557312af75a_0.1.13&zw&atsh=1" /></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<b><span style="color: red; font-family: Arial;">Nathuram Godse and Narayan Apte</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<b><span style="color: red; font-family: Arial;">were hanged on 15th November 1949</span></b></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: 13px;">
<b><span style="color: red; font-family: Arial;">in the Ambala Jail in Punjab.</span></b></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-66988514228243076122013-09-06T21:28:00.000-07:002013-09-06T21:28:39.969-07:00गो -हत्या का अर्थशाश्त्र <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;">गो -हत्या का अर्थशाश्त्र : इसे बंद करना इतना आसान नहीं होगा जब एक पशु कटने से 34000 रुपये का मुनाफा मिलने लगे--</span><br />
<br />
<div>
<span style="color: #006600; font-size: medium;"><br />
</span></div>
<div>
<span style="color: #006600; font-size: medium;">भारत में गाय का मांस
120/- रुपये किलो खुलेआम बिक रहा है और एक गाय-भैंस-बैल को कटने पर 350
किलो मांस निकलता है. चमड़े और हड्डियों की अलग से कीमत मिलती है. जो पशु
औसतन 8000- 9000 में गाव मिल जा रहे हैं और सुखा वाले प्रदेशो में तो यह
3000/- में ही मिल जा रहे हैं.</span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;">पशु की कीमत 8000/-</span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;">उसे काटने से मिला मांस 350 किलो</span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;">भारत में उस मांस का दाम = 350 x 120/- = 42,000/- रुपये </span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;">चमड़े का दाम = 1000/-</span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;">विदेशो में निर्यात करने पर यही मांस 3 से 4 गुना दाम में बिकता है और यह निर्भर करता है की आप किस देश में भेज रहे हैं.</span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;">किसान को मिला सिर्फ 9000/- रुपया </span></div>
<div>
<span style="color: red; font-size: medium;">और गो-हत्या शाळा चलाने वाले को मिला 43000 - 9000 = 34,000/- रुपये </span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;">भारत में एक एक गो-वधशाला में 10000</span><span style="color: #6600cc; font-size: medium;"> से 15000 पशु रोज कट रहे हैं औसत 12000 पशु रोज का मानिए तो --</span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;">यानी एक मालिक को एक दिन में 34000/- x 12000 = 40,80,00,000/- (चालीस करोड़ रुपये रोज का मुनाफा)</span></div>
<div>
<span style="color: red; font-size: medium;">यदि साल में 320 दिन यह काम चले तो 40 करोड़ x 320 = 12800 करोड़ रुपये शुद्ध मुनाफा सालाना,</span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #006600; font-size: medium;">तो
सोचिये गाय का कत्लखाना चलाने वाला इसे क्यों बंद करेगा चाहे वह हिन्दू
ही क्यों न हो. कपिल सिब्बल की पत्नी का भी यही व्यापार है यह मुनाफा तब है
जब मांस भारत में बेचा जाए परन्तु निर्यात करने पर यह मुनाफा तीन गुना हो
जाता है यानि हर कत्लखाने का मालिक हर साल 12800 x 3 = 38,400 करोड़ रुपये
का शुद्ध मुनाफ़ा हर साल.</span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;">(यह गणना आप अपने हिसाब से स्वयम भी करे शायद कुछ अंतर आये कीमत में )</span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;">अब आप 250/- रुपये दिहाड़ी कमाने वाले इन ख़रबपतियों का क्या कर पायेंगे..इसीलिए इस काम को सिर्फ सरकार ही रोक सकती है </span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: medium;"><span style="color: red;">यानी गाय को कटने से रोकने के लिए आपको सरकार ही बदलनी पड़ेगी.</span></span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;"><br />
</span></div>
<div>
<span style="color: #ff6600; font-size: x-large;">और इस काम के लिए "नरेन्द्र मोदी" से अच्छा विकल्प भला कौन होगा जिसे बाबा और स्वामी का समर्थन मिल रहा हो.</span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;"><br />
</span></div>
<div>
<span style="color: #6600cc; font-size: medium;">जय भारत </span></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-17246798158944627512013-09-06T21:26:00.000-07:002013-09-06T21:26:08.241-07:00कांग्रेस की आभाव नीति <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: medium;"><span style="color: #ff6600;">कांग्रेस की आभाव
नीति : नौकरी वाले की वेतन बढोत्तरी और बेरोजगार को नौकरी नहीं – विदेशी
कंपनियों के 3 गुने महगे उत्पादों के लिए उपभोक्ता तैयार करने की गहरी
साजिश....</span></span><br />
<br />
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br />
</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;">अंग्रेजो की नीति थे की
आभाव पैदा करो और लोगो का दोहन करो...कम लोगो नौकरी देकर उन्हें ज्यादा लाभ
देकर नौकरी से चिपकाकर गुलाम बनाये रखिये जिससे वे लाभ पाते रहने के लिए
अंग्रेजो के लिए अपने ही भाइयो की हत्या करने से न हिचकिचाएं..</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;">ठीक
यही नीति सरकार 65 सालो से पनाए हुए है. भारत में 20 करोड सक्षम युवा
पूर्णकालिक बेरोजगार है जो 8000 से 15000 की भी नौकरी करने के लिए लालायित
है लेकिन अंग्रेजो की नीति पर चलते हुए पहले ही नौकरी कर रहे लोगो और लाभ-
और लाभ देते जा रहे है और उनकी श्रेष्ठता के हिसाब से काम भी नहीं हो रहा
है.</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;">हफ्ते
में 6 क्लास लेने वाले अध्यापक लोगो को 65000/- से 95000/- तक की वेतन
दिया जा रहा है, यही हाल हर जगह है और उन्हें बार वेतन वृद्धि भी दी जा
रही है, हाल में केंद्र के 7000 करोड सालाना वृद्धि से 10000 हजार रुपये
महीने वाली 583000, (7000x10000000/ (12 months x 10,000/-PM) = 583333
jobs यानी 5,83,333 नयी नौकरिया दी जा सकती थे और बुजुर्ग लोगो के सिर पर
काम का भार कम किया जा सकता था और जनता के काम में आसानी और तेजी आती
लेकिन ....</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;">.....इस
हरामखोरी के पीछे एक और दवाब विदेशियों की तरफ से है की समाज में एक ऐसा
पैसे वाला तबका पैदा किया जाना चाहिए जो विदेशी कंपनियों का माल तीन गुने
दाम में खरीदने में न हिचकिचाए....10000/- और 15000/- वाले तो अपना पेट ही
पालने में लगे रहेंगे, 95000/ की टीवी, 10 लाख की कार, 55000/- की मोबाइल,
8500/- का जूता, माल में शाप्पिंग, और अन्य विदेशी फर्नीचर कौन खरीदेगा.
सरकार सबको नौकरी देकर नौकरी पेशा वालो को आमजन के श्रेणी में नहीं रखना
चाहती है..</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;">.सरकार
को मालूम है धुप में जलने वाले किसान की औसत् आय मात्र 2050/- महीना है जो
चप्पल भी दिल्ली मेड प्लास्टिक का ही खरीदेगा.......तो इटालियन मार्बल
लगाने का दम रखने वालो की एक जमात इन्ही की कीमत पर पैदा करना होगा......और
खूब बढ़िया तनख्वाह देकर इनको जन सेवक नहीं जनता के साहब बना दिया जाये
जिससे इनसे किसी भी समय जन विरोधी काम कराये जा सके. ज्ञात हो कांग्रेस के
विदेशी दोस्त भारत में सबसे पुरानी तकनीक 3 गुना दाम में बेचते
हैं,,....अभी अभी हाल में एफ डी आई की अनुमति के पीछे यही विदेशी ईसाई
दोस्त है जो भारतीय गुलामो का तेल निकालने की तैयारी कर रहे है....</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;">सरकार
का यदि नौकरी देने का मंशा होती तो हमारे मेधावी वैज्ञानिको की टीम को
अनुसंधान में लगा कर हर चीज भारत में ही बनाकर हर हाथ को काम दे सकती थी
लेकिन ये ठहरे नेहरू की औलाद जिन्हें सिर्फ विदेशी पसंद हैं... किराना में
एफ डी आई से 4.4 करोड लोग और पैदल होने वाले हैं जब की 5000 हजार विदेशी
कम्पनिय पहले से ही 26 लाख करोड का बिजिनेस करके करीब 16 लाख करोड का
मुनाफा हर साल विदेश ले जा रही है तो भारत के लोगो को रोजगार कहा से
मिलेगा....और रुपये का अवमूल्यन हो रहा है...खुदरा किराना में एफ डी आई आने
से 23 लाख करोड रूपया और बाहर जायेगा तब रुपया कितना निचे जायेगा, क्या
नीच कांग्रेसियों को इसका अंदाजा भी है?</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #ff6600; font-size: medium;">सरकार
को संतुलित वेतन देकर उसी कोष 30% अतिरक्त लोगो को नौकरी दी जा सकती है और
सेवानिवृत्त की उम्र 62-60 से घटाकर 58 साल करके 14% और लोगो नौकरी दी जा
सकती है.</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;">लेकिन यह सोचेगा कौन??? सरकारे तो सेवक नहीं साहब पैदा करने में लगी हैं..????</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;">जय भारत </span></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-90890419568402677462013-09-06T21:23:00.000-07:002013-09-06T21:23:17.603-07:00HISTORY OF RIOTS - दंगो का इतिहास <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
Riot 1: 1947 Communal riots in Bengal | 5000-10000 Killed |<br />
Ruling party happened to be Congress<br />
<br />
Riot
2: 1969 | Communal riots in Ahmedabad | More than 512 Killed in the
city. 3000 to 15000 range in the entire state | Riots for 6 months]<br />
Ruling party happened to be Congress<br />
<br />
Riot 3: Oct 1984 | Communal riots in Delhi | 2733 Killed |<br />
Ruling
party Congress | Almost 100% casualty were Sikhs, which was Rajiv
Gandhi led genocide on India's minorities | Followed by “Big Tree falls”
justification too from the Prime Minister!<br />
<br />
Riot 4: Feb 1983 | Communal violence in Nellie, Assam | 2000-5000<br />
killed | PM – Indira Gandhi (Congress party) - India's worst slaughter of Muslims in any single riot (just 6 HOURS)<br />
<br />
Riot 5: 1964 Communal riots in Rourkela & Jamshedpur | 2000 Killed | <br />
Ruling party Congress<br />
<br />
Riot 6: August 1980 | Moradabad Communal riots | Approx 2000 Killed |<br />
Ruling Party Congress<br />
<br />
Riot 7: October 1989 | Bhagalpur, Bihar riots | 800 to 2000 killed |<br />
Ruling party Congress<br />
<br />
Riot 8: Dec 1992 - Jan 1993 | Mumbai, Maharashtra riots | 800 to 2000<br />
killed | Ruling party Congress<br />
<br />
Riot 9: April 1985 | Communal riots in Ahmedabad, Gujarat | At least<br />
300 Killed | Ruling party Congress<br />
<br />
Riot 10: Dec 1992 | Aligarh, UP | At least 176 killed |<br />
Ruling party Congress (President's rule)<br />
<br />
Riot 11: December 1992 | Surat, Gujarat | At least 175 killed |<br />
Ruling party Congress<br />
<br />
Riot 12: December 1990 | Hyderabad, AP | At least 132 killed |<br />
Ruling party Congress<br />
<br />
Riot 13: August 1967 | 200 Killed | Communal riots in Ranchi |<br />
Party ruling again Congress<br />
<br />
Riot 14: April 1979 | Communal riots in Jamshedpur, West Bengal | More<br />
than 125 killed | Ruling party CPIM (Communist Party)<br />
<br />
Riot 15: 1970 | Bhiwandi communal riots in Maharashtra | Around 80<br />
killed |Ruling party Congress<br />
<br />
Riot 16: May 1984 | Communal riots in Bhiwandi | 146 Killed, 611 Injured |<br />
Ruling party Congress | CM – Vasandada Patil*<br />
<br />
Riot 17: Apr-May 1987 | Communal violence in Meerut, UP | 81 killed |<br />
Ruling party Congress<br />
<br />
Riot 18: July 1986 | Communal violence in Ahmedabad, Gujarat | 59<br />
Killed | Ruling party Congress<br />
<br />
Why are<br />
we so obsessed with just 2002 Gujarat riots? So what's it - lets be honest,<br />
<br />
Do
we have problem with riots or with Modi? And Media Led by the puppets
of Congress which leaves no stone unturned in maligning the image of
Modi but no time for major issues of society.</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-74313791265990801032013-01-01T00:31:00.000-08:002013-01-01T00:31:08.001-08:00यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता- भाग 1<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: small;">आदरणीय मित्रों <br /><br />
संस्कृत का एक श्लोक है - </span><span style="font-size: small;"><b>यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता</b> - <br />अर्थात, जहाँ नारी का सम्मान
किया जाता है वहाँ देवता निवास करते हैं | बचपन से यह सुनते आ रहे हैं, इसी
पर विश्वास किया है | धैर्य, बलिदान, ममता, वात्सल्य, त्याग, लज्जा,
समर्पण, शील, माधुर्य, कोमलता और सौम्यता यही नारी सुलभ गुण माने गये और हर
आदर्श नारी को इन्हीं गुणों की कसौटी पर क़स कर परखा गया | लेकिन </span><span style="font-size: small;">अभी
कुछ दिनों से भारत देश को gang rape की एक घटना ने हिला कर रख दिया है | मैं बहुत से
विद्वानों को बोलते देख रहा हूँ, सुन रहा हूँ और पढ़ भी रहा हूँ लेकिन जो
असल बात है वो कोई बता नहीं रहा है | तो मैंने आज ये प्रयास किया है कि इस
बात की जड़ (मूल) में आप लोगों को ले जाऊं | कुछ एक ख़राब शब्दों का प्रयोग
इस पत्र में है उसके लिए आप मुझे क्षमा कर देंगे ऐसी मेरी विनती है आप सब
से, खास तौर से </span><span style="font-size: small;">माँ, बहन या बेटियों से मेरी ये विनती है </span><span style="font-size: small;">| <br />
<br /><span style="color: #ff6666;"></span></span><span style="font-size: small;">भारत में अंग्रेजों के बनाये गए 34735<span> </span>कानून आज भी चल रहे हैं लेकिन उसमे कुछ कानून ऐसे हैं जिसको उन्होंने अपने हित की रक्षा के लिए बनाया था | उसमे एक था Indian<span> </span>Motor<span> </span>Vehicle<span> </span></span><span style="font-size: small;">Act<span> </span>,<span> </span></span><span style="font-size: small;"><span>आज भी </span></span><span style="font-size: small;">Indian<span> </span>Motor<span> </span>Vehicle<span> </span></span><span style="font-size: small;">Act<span>
के तहत किसी भी आरोपी को कठोर सजा नहीं होती, क्यों ? क्योंकि ये कानून जब
बना था तो उस समय भारत में मोटर कार और जीप सिर्फ अंग्रेजों और उनके
चाटुकार राजाओं के पास ही हुआ करती थी इसलिए उनके हितों के ध्यान में रख कर
इस कानून को बनाया गया था | </span></span><span style="font-size: small;"><span></span><br />और
दूसरा था बलात्कार वाला कानून - जब अंग्रेजों की सरकार चल रही थी तो उनका
एक तरीका था भारतवासियों पर अत्याचार करने का, तो वो किसी किसान पर
अत्याचार करते थे लगान वसूल करने के लिए | किसानों से लगान वसूल किया जाता
था और वो उनके कुल उपज का नब्बे प्रतिशत होता था और जो किसान लगान दे देते
थे उनको अंग्रेज छोड़ देते थे लेकिन जो किसान लगान नहीं देते थे उनपर
अत्याचार किया करते थे | अत्याचार में पहला काम होता था किसानों को कोड़े से
पीटने का, 100<span></span>-100<span> </span> कोड़े किसानों को मारे जाते थे, 100<span> </span>
कोड़े खाते-खाते किसान मर जाते थे, फिर अंग्रेज वहीँ तक नहीं रुकते थे, वे
उसके बाद उस किसान के परिवार की माँ, बहन और बेटियों का शीलहरण करते थे | </span><span style="font-size: small;">माँ,
बहन और बेटियों के कपडे उतारे जाते थे, पुरे गाँव में उनको नंगा घुमाया
जाता था, फिर अंग्रेज अधिकारी उनका सबके सामने शीलभंग करते थे, बलात्कार
करते थे और सारे अंग्रेज अधिकारी इसमें शामिल होते थे | इससे अंग्रेज
अधिकारियों को अपनी वासना शांत करने का रास्ता तो खुलता ही था, उनको
अत्याचार करने और हैवानियत दिखाने का भी </span><span style="font-size: small;">रास्ता खुलता था |<br /><br />परिणाम
क्या होता था ? किसानों के घर से शिकायत आती थी इन बलात्कार की घटनाओं की |
अंग्रेज अधिकारियों की समस्या ये होती थी की अपने ही सहयोगियों के खिलाफ
वो कार्यवाही क्या करे ? मान लीजिये, एक अंग्रेज उच्च अधिकारी है, उसके पास
किसी किसान ने ये शिकायत की कि उसके नीचे के अधिकारी ने उस किसान के </span><span style="font-size: small;">माँ,
बहन या बेटियों से बलात्कार किया तो वो ऊपर वाला अधिकारी अपने नीचे वाले
अधिकारी को बचाने में लग जाता था और उसको बचाने के लिए फिर अंग्रेजों ने एक
रास्ता निकाला और उस रास्ते को कानून में बदल दिया | बलात्कार के खिलाफ
अंग्रेजों ने कानून बनाया सबसे पहला, इसमें उन्होंने एक हिस्सा जोड़ा, </span><span style="font-size: small;">इसका नाम था Reversal<span> </span>of<span> </span>Burden<span> </span>of<span> </span>Proof<span> | </span></span><span style="font-size: small;">और उस कानून में ये व्यवस्था की कि "जिस </span><span style="font-size: small;">माँ, बहन या बेटी के साथ बलात्कार होगा, उस </span><span style="font-size: small;">माँ,
बहन या बेटी को अंग्रेजों की अदालत में आकर सिद्ध करना पड़ेगा कि उसके साथ
बलात्कार हुआ है, जिस अंग्रेज ने बलात्कार किया है उसको कुछ भी सिद्ध नहीं
करना पड़ेगा और जब तक सिद्ध नहीं होगा तब तक वो अंग्रेज अभियुक्त नहीं माना
जाएगा, पापी नहीं माना जायेगा, अपराधी नहीं माना जाएगा, ये कानून बना दिया
अंग्रेजों ने | ये कानून बनते ही इस देश में बलात्कार की बाढ़ आ गयी | हर
गाँव में, हर शहर में </span><span style="font-size: small;">माँ, बहन और बेटियों की इज्जत से अंग्रेजों ने खेलना शुरू किया, क्योंकि अंग्रेजों को ये मालूम था कि कोई भी </span><span style="font-size: small;">माँ,
बहन या बेटी अदालत में ये सिद्ध कर ही नहीं सकती कि उसके साथ बलात्कार हुआ
है | कानून के गलियां ऐसी टेढ़ी-मेढ़ी बनाई गयी कि किसी भी </span><span style="font-size: small;">माँ, बहन या बेटी को ये सिद्ध करना एकदम असम्भव हो जाए कि उसके साथ बलात्कार हुआ है | <br /><br />आप
देखिये कि इससे बड़ा दुनिया में क्या अत्याचार हो सकता है कि जिसके ऊपर
अत्याचार हुआ, उसे सिद्ध करना है कि उसके ऊपर अत्याचार हुआ, जिसने अत्याचार
किया उसको कुछ भी सिद्ध नहीं करना है कि इसने अत्याचार किया | परिणाम ये
होता था कि 100<span> </span>अंग्रेज बलात्कार करते थे भारत की </span><span style="font-size: small;">माँ, बहन या बेटियों से तो उसमे से दो-तीन अंग्रेजों के खिलाफ ये साबित हो पाता था और उनको ही सजा हो पाती थी, 97<span></span>-98<span> </span>अंग्रेज
बाइज्जत बरी हो जाते थे और फिर वो दुबारा यही काम करते थे | हमारे पास
दस्तावेज हैं कई अंग्रेज अधिकारियों के, जिन्होंने अपनी पर्सनल डायरी में
ये लिखा है | एक अंग्रेज अधिकारी था, कर्नल नील, उसकी डायरी के कुछ पन्ने
हैं फोटो कॉपी के रूप में, उसकी नियुक्ति भारत के कई स्थानों पर हुई थी,
वाराणसी में वो रहा, इलाहाबाद में वो रहा, बरेली में वो रहा, दिल्ली में वो
रहा, बदायूँ में वो रहा, वो अपनी डायरी में लिख रहा है कि "कोई भी दिन ऐसा
बाकी नहीं रहा जब मैंने किसी भारतीय औरत के शीलहरण नहीं किया", ये नील की
डायरी में उसके लिखे हुए शब्द हैं | आप सोचिये के कितने हैवान थे वो
अंग्रेज और ध्यान दीजिये कि ये सब उन्होंने किया कानून की मदद से | एक बात
और, बलात्कार के केस में पीडिता से </span><span style="font-size: small;"><span>कोर्ट में
ऐसे भद्दे-भद्दे और बेहुदे प्रश्न किये जाते हैं कि सुनने वाला लजा जाए,
आपकी गर्दन शर्म से झुक जाए, आप सोचिये की पीडिता का क्या हाल होता होगा,
यही कारण है कि बलात्कार के 100<span> </span>मामलों में 95<span> </span>में तो कोई केस ही दर्ज नहीं होता और जो 5<span> </span>केस दर्ज भी होते हैं तो उसमे पीडिता को न्याय मिलता ही नहीं है |<br /><br />मुझे ये कहते हुए बहुत दुःख और अफ़सोस है कि आजादी के दिन यानि 15<span> </span>अगस्त 1947<span> </span>को जिस कानून को जला देना चाहिए था, ख़त्म कर देना चाहिए था, वो कानून आजादी के 65<span> </span>साल बाद भी चल रहा है और आज भी इस देश में </span></span><span style="font-size: small;">माँ, बहन
और बेटियों</span><span style="font-size: small;"><span> के साथ बलात्कार हो रहे हैं और </span></span><span style="font-size: small;">माँ, बहन और बेटियों</span><span style="font-size: small;"><span>
को अदालत में सिद्ध करना पड़ रहा है कि उनके खिलाफ अत्याचार हो रहा है,
अत्याचार करने वाले को कुछ भी सिद्ध नहीं करना पड़ता | आप जानते हैं कि किसी
भी </span></span><span style="font-size: small;">माँ, बहन या बेटी से खुले-आम, सरेआम ऐसे
सवाल पूछे कि "उसके साथ बलात्कार हुआ या नहीं हुआ", वो अगर सभ्य है, थोड़ी
भी सुसंस्कृत है तो जवाब नहीं दे सकती और उसके मौन का फायदा उठाकर ये कानून
हमारे देश की करोड़ों </span><span style="font-size: small;">माँ, बहन, बेटियों से खिलवाड़ करता है | <br /><br />दूसरी तरफ भारत के कानून हैं, हमारे देश में न्याय व्यवस्था का जो सबसे बड़ा कानून है, उसका नाम है इंडियन पिनल कोड (IPC<span></span>), दूसरा कानून है सिविल प्रोसीजर कोड (CPC<span></span>) और तीसरा कानून है क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (CrPC<span></span>) | ये तीनों कानून भारतीय न्याय व्यवस्था के आधार स्तम्भ हैं और ये तीनों कानून अंग्रेजों के बनाये
हुए हैं | </span><span style="font-size: small;">ये Indian
Penal Code अंग्रेजों के एक और गुलाम देश Ireland के Irish Penal Code की
फोटोकॉपी है, वहां भी ये IPC ही है लेकिन Ireland में जहाँ "I" का मतलब
Irish है वहीं भारत में इस "I" का मतलब Indian है, इन दोनों IPC में बस
इतना ही अंतर है बाकि कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है | अंग्रेजों
का एक अधिकारी था टी.वी.मैकोले, उसका कहना था कि भारत को हमेशा के लिए
गुलाम बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से
समाप्त करना होगा | Indian Education Act भी
मैकोले ने ही बनाया था और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी |
ये बनी 1840 में और भारत में लागू हुई 1860 में | ड्राफ्टिंग करते समय
मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि "मैंने
भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है
जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा | इस
कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं
सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे
ज्यादा तकलीफ देगी | और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है
उसे जडमूल से समाप्त कर देगा"| और वो आगे लिखता है कि " जब भारत के लोगों
को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा" | ये
हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है | <br /><br />सुनवाई के लिए सबूत इकट्ठे किये जाते हैं, उन सबूतों के लिए अंग्रेजों के ज़माने का ही एक कानून है इंडियन एविडेंस एक्ट | </span><span style="font-size: small;">Indian Evidence Act काम करता है गवाह और सबूत के आधार पर और ये दोनों ही
बदले जा सकते हैं | गवाह भी बदले जा सकते हैं और सबूत तो इतने आसानी से
मिटाए जाते हैं और नए बनाये जाते हैं इस देश में कि आप कल्पना नहीं कर सकते
हैं | इसी कारण से, चूकी गवाह बदले जाते हैं, गवाह कैसे बदलते हैं, पता है
आपको ? पुलिस बयान लेती है और अदालत में जैसे ही वो गवाह खड़ा होता है,
तुरंत मुकर जाता है और कहता है कि पुलिस ने जबरदस्ती ये बयान मुझसे लिया है
और जैसे ही वो ये कहता है, वो मुक़दमा, जो 20 मिनट में ख़त्म हो जाता, 10
साल तक चलता रहता है | और यही कारण है कि अंग्रेजी न्याय व्यवस्था में
conviction rate पाँच प्रतिशत है | Conviction Rate समझते हैं आप ? 100
लोगों के ऊपर मुक़दमा किया जाये तो सिर्फ पाँच लोगों को ही सजा होती है,
95 को सजा होती ही नहीं, वो अदालत से बाइज्जत बरी हो जाते हैं | तो इसका
मतलब है कि या तो 95 मुकदमे झूठे, या सरकार झूठी, या पुलिस व्यवस्था झूठी
या न्याय व्यवस्था कमजोर | ये इंडियन एविडेंस एक्ट ने ऐसा सत्यानाश कर रखा
है इस देश का कि सत्य महत्व का नहीं है बल्कि गवाह और सबूत महत्व का है, कई
बार पुलिस कहती है कि सत्य हमें मालूम है लेकिन गवाह नहीं, सबूत नहीं है,
क्या करे हम ? ना सजा दिलवा सकते हैं, ना किसी को न्याय दिलवा सकते हैं |
और न्यायाधीश को सत्य की पहचान करने के लिए बिठाया जाता है, वो न्यायाधीश
भी सबूत और गवाह के आधार पर सत्य की तलाश करता है, जब कि सच्चाई ये है कि
सत्य अपने आप में ही पूर्ण होता है, उसको कोई गवाह की जरूरत नहीं होती है,
उसको कोई सबूत की जरूरत नहीं होती | इस इंडियन एविडेंस एक्ट या कहें भारतीय
न्याय व्यवस्था का कैसा मजाक इस देश में हो रहा है उसका एक उदाहरण देता
हूँ | 26 नवम्बर को </span><span style="font-size: small;">जिन आतंकवादियों ने पाकिस्तान से आकर </span><span style="font-size: small;">मुंबई
में सैकड़ों निर्दोष लोगों को मार दिया | उनमे से एक पकड़ा गया और उसके ऊपर
नौटंकी चली कि नहीं | हम सब को सत्य मालूम है कि इसने सैकड़ों लोगों को
मारा, इस मामले में निर्णय देना 10 मिनट का काम था, अब उस पर सबूत ढूंढे
गए, गवाह ढूंढे गए और वो मक्कार आतंकवादी मजाक बना रहा है, हँस रहा है |
भारतीय न्याय व्यवस्था पर हँस रहा है और दुर्भाग्य से ये हमारी न्याय
व्यवस्था नहीं है, ये अंग्रेजों की है | <br /></span><span style="font-size: small;"><span style="color: #ff6666;"><span style="color: black;">एक और कानून है जो भारत की </span></span></span><span style="font-size: small;">माँ,
बहन बेटियों को बहुत परेशान कर रहा है, वो है गर्भपात का कानून | हमारे
देश में गर्भपात के लिए कानून है, किसी बच्चे को जन्म लेने के पहले मारेंगे
तो गर्भपात कह कर छोड़ देते हैं लेकिन उसे जन्म लेने के बाद मारे तो हत्या
हो जाती है और 302<span> </span>का मामला बनता है | बच्चे को जन्म के पहले
मारा तो भी हत्या है और जन्म लेने के बाद मारा तो वो भी हत्या ही है, दोनों
में सजा एक जैसी होनी चाहिए और वो फाँसी ही होनी चाहिए लेकिन जन्म से पहले
मारो तो गर्भपात है और जन्म के बाद मारो तो हत्या है, इसीलिए इस देश के
लाखों लालची डौक्टर करोड़ों बेटियों को गर्भ में भी मार डालते हैं क्योंकि
गर्भ में मार देने पर उनको फाँसी नहीं होती है | एक करोड़ बेटियों को हर साल
गर्भ में ही मार दिया जाता है इसी कानून की मदद से | अब आप बताइए कि बेटी
को गर्भ में मारो तो गर्भपात और गर्भ से बाहर आने पर मारो तो हत्या, अगर इस
तरह के कानून के आधार पर कोई फैसला होगा तो वो कोई न्याय दे सकता है ?
मुकदमे का फैसला होता है कानून के आधार पर और न्याय होता है धर्म के आधार
पर , सत्य के आधार पर | धर्म और सत्य से न्याय की स्थापना हो सकती है,
कानून से न्याय की स्थापना नहीं हुआ करती है | दुर्भाग्य से हमारे देश में
धर्म और सत्य की सत्ता नहीं है, कानून की सत्ता है, Law<span> </span>and<span> </span>Order<span> </span>की
बात होती है, धर्म और न्याय की बात नहीं होती है, सत्य की बात नहीं होती
है जो अंग्रेज छोड़ कर चले गए उस कानून व्यवस्था की बात होती है और हम ख़ुशी<span></span>-ख़ुशी ढो रहे हैं आजादी के 65<span> </span> साल बाद भी | </span><span style="font-size: small;"><span style="color: #ff6666;"><br /></span></span><br /><span style="font-size: small;">भारत में जो राष्ट्रीय महिला आयोग है या राष्ट्रीय
मानवाधिकार संगठन हैं, ये सब दिखावे के संगठन हैं, अंग्रेजी का एक शब्द
प्रयोग करूँ तो ये सब "Ornamental<span> </span>Organizations<span></span>"
हैं | राष्ट्रीय महिला आयोग के बारे में तो मेरा व्यक्तिगत अनुभव है लेकिन
उसका यहाँ जिक्र करना ठीक नहीं होगा, ये मरे हुए संगठन हैं, ये किनके लिए
काम करते हैं, भगवान जाने | </span><span style="font-size: small;">मैंने देखा है कि </span><span style="font-size: small;">इन
संगठनों में ज्यादातर राजनीति से जुड़े लोग ही रहते हैं और राजनेताओं की
जनता के प्रति क्या विचारधारा है, कहने की आवश्यकता नहीं हैं | इनकी
विचारधारा सही होती तो इस देश में गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी नहीं होती |
<br /></span><span style="font-size: small;">कैसे मिले न्याय माँ, बहन बेटियों को उस देश में जहाँ कहा गया है <b>-</b></span><span style="font-size: small;"><b>यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता- </b>आप ही बताइए ?<b> </b></span><span style="font-size: small;"> </span><br />
<span style="font-size: small;"><br /></span>
<span style="font-size: small;">लेखक </span><span style="font-size: small;"><b>भाई </b></span><span style="font-size: small;"><b>राजीव दीक्षित जी <br /><br />
</b></span></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-27774025148285393992012-10-04T06:36:00.000-07:002012-10-08T03:07:14.109-07:00गाँधी तथाकथित महात्मा .......... कुछ तथ्य<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="userContent">गाँधी तथाकथित महात्मा .......... कुछ तथ्य.............!! !<br />
एक बार एक वाल्मीकि बस्ती में मंदिर में गाँधी जी कुरान का पाठ करा रहे
थे.तभी भीड़ में से एक औरत ने उठकर गाँधी से ऐसा करने को मना किया. गाँधी
ने पूछा .. क्यों? तब उस औरत ने कहा कि ये हमारे धर्म के विरुद्ध है.गाँधी
ने कहा.... मै तो ऐसा नहीं मानता ,<br /> तो उस औरत ने जवाब दिया कि हम आपको धर्म में व्यवस्था देने योग्य नहीं मानते.<br /> गाँधी ने कहा कि इसमे</span><br />
<div class="text_exposed_show">
ं
यहाँ उपस्थित लोगों का मत ले लिया जाय.औरत ने जवाब दिया कि क्या धर्म के
विषय में वोटो से निर्णय लिया जा सकता है.गाँधी बोला कि आप मेरे धर्म में
बांधा डाल रही हैं.औरत ने जवाब दिया कि आप तो करोडो हिन्दुओ के धर्म में
नाजायज दखल दे रहे हैं.गाँधी बोला ..मै तो कुरान सुनुगा .औरत बोली ...मै
इसका विरोध करुँगी.<br />
और तभी औरत के पक्ष में सैकड़ो वाल्मीकि नवयुवक
खड़े हो गए.और कहने लगे कि मंदिर में कुरान पढवाने से पहले किसी मस्जिद में
गीता और रामायण का पाठ करके दिखाओ तो जाने.विरोध बढ़ते देखकर गाँधी ने
पुलिस को बुला लिया. पुलिस आई और विरोध करने वालों कोपकड़ कर ले गयी .और
उनके विरुद्ध दफा १०७ का मुकदमा दर्ज करा दिया गया .<br />
और इसके पश्चात गाँधी ने पुलिस सुरक्षा में उस मंदिर में कुरान पढ़ी </div>
<div class="text_exposed_show">
</div>
<div class="text_exposed_show">
पुस्तक : विश्वासघात </div>
<div class="text_exposed_show">
लेखक : गुरुदत्त<br />
------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
<span class="userContent">दोस्तों आपके लिए खास पुस्तक जो मुश्किल से मिलती है..... </span><br />
<span class="userContent">अदालत द्वारा बैन की गयी किताब "गाँधी वध क्यों ?"<br />लेखक : नत्थू राम गोडसे </span><br />
<span class="userContent">डाऊनलोड लिंक नीचे ( size 25 MB)<br /> <a href="http://www.transformingindians.com/gvkyun.pdf.zip" rel="nofollow nofollow" target="_blank">http://www.transformingindians.com/gvkyun.pdf.zip</a></span> </div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-51201644639615128202012-09-21T06:07:00.002-07:002012-09-21T06:18:17.562-07:00अंगेजी कानूनों के २ जबरदस्त पहलू जो आज भी बहुत कारगर हैं जनता को चुप करने के लिए, ये फंडे अंग्रेजो ने आयरलैंड में अजमा लिया था <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal" style="margin: 0cm 0cm 10pt; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="color: #990000;"><u><span lang="HI" style="font-family: 'Mangal','serif'; font-size: 14pt; line-height: 115%;">अंगेजी कानूनों के २ जबरदस्त पहलू जो आज भी बहुत कारगर हैं जनता को चुप करने के लिए, ये फंडे अंग्रेजो ने आयरलैंड में अजमा लिया था .</span><span style="font-size: 16pt; line-height: 115%;"></span></u></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin: 0cm 0cm 10pt; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Mangal','serif'; font-size: 14pt; line-height: 115%;"><span style="color: #6600cc;">भारत
के लगभग सभी कानून हुबहू वाही हैं जो अंग्रेजो ने सबसे पहले आयरलैंड को
गुलाम बनाने के लिए बनाये थे और उनका बहुत तगड़ा परिणाम मिला था. अंग्रेजी
कानून के दो मुख्या सिद्धांत हुआ करते थे:</span></span><span style="font-size: 16pt; line-height: 115%;"></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin: 0cm 0cm 10pt; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="color: #006600;"><span lang="HI" style="font-family: 'Mangal','serif'; font-size: 14pt; line-height: 115%;">१)कानून को इस तरह बनाया जाये की जनता आम जीवन में रोज इसका उल्लंघन करने के लिए बाध्य हो जाये.</span><span style="font-size: 16pt; line-height: 115%;"></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin: 0cm 0cm 10pt; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span style="color: #006600;"><span lang="HI" style="font-family: 'Mangal','serif'; font-size: 14pt; line-height: 115%;">२)कानून
का बार बार उल्लंघन करके जनता में इतना अपराध बोध हो जाये की वह हुकूमत
करने वालो के बड़े से बड़े अपराध की तरफ भी उंगली न उठा पाए.</span><span style="font-size: 16pt; line-height: 115%;"></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin: 0cm 0cm 10pt; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Mangal','serif'; font-size: 14pt; line-height: 115%;"><span style="color: #993399;">आयरलैंड
में आजमाए गए इस व्यवस्था की वजह से अंग्रेजो उन्ही कानूनों को बिना किसी
परिवर्तन के भारत में पूरी तरह लागू कर दिया था और वे भारत को इन्ही
कानूनों के बल पर बड़े मजे से २५० सालो तक बेख़ौफ़ होकर राज किया. उन्होंने हर
जरुरी काम के लिए परमिट और लाइसेंस का प्राविधान कर रखा था जिससे जब चाहे
जनता को फंसाया जा सके. </span></span><span style="font-size: 16pt; line-height: 115%;"></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin: 0cm 0cm 10pt; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Mangal','serif'; font-size: 14pt; line-height: 115%;"><span style="color: red;">सबसे
मजे की बात है की इन्ही कानूनों को भारत में स्वतंत्रता के बाद भी बिना
किसी फेर बदल के नेहरू ने “ट्रांसफर ऑफ पॉवर अग्रीमेंट” के तहत लागू कर
दिया जो आज भी चल रहे है. भारत के वर्तमान कानून में ऐसे ऐसे प्राविधान की
हम लोग उनका उल्लंघन करते हुए अपराधबोध से ग्रस्त हो चुके है और इसे वजह से
नेताओ के बड़े से बड़े अपराध पर भी उंगली नहीं उठा पाते है. अंगेजो ने
भारतीयों को छोटे से छोटे अपराध के लिए जेलों में डाला और स्वयं बड़े अपराध
करके बचते रहे. आज भी वाही हो रहा है. अंग्रेजो ने हर अपराध की एक ही सजा
बना रखी थे जिसमे सबसे पहले जनता ही उल्लंघन करके फंस जाती थी.</span> <span style="color: #6600cc;">इसमे अंग्रेजो ने काफी दिमाग खर्च किया था. जैसे चोरी छोटी या बड़ी, सब बराबर है.... और जनता उसे भुगत रही है.</span></span><span style="font-size: 16pt; line-height: 115%;"></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin: 0cm 0cm 10pt; text-align: justify; text-justify: inter-ideograph;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Mangal','serif'; font-size: 14pt; line-height: 115%;"><span style="color: #000099;">हमें
सबसे पहले अपराध का श्रेणीकरण करके उसका दंड निर्धारित करना होगा. १०००
रुपये और अरबो रुपये के भ्रष्टाचार में अंतर करके दंड बनाना होगा अदि....</span></span></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-10762656313332486882012-09-20T18:57:00.000-07:002012-09-20T18:59:25.442-07:00गुजरात में गावों के सोलर पॉवरहाउस <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #000099; font-size: medium;">भारत के गावों में खेतों में बने चक-रोड होंगे गावों के पॉवरहाउस - आवश्यकता से ४ गुना अधिक बिजली बनाकर उसकी बिक्री से गावों का विकास संभव- मोदी का एक और फंडा </span><br />
<div>
<br /></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><img alt="Inline image 1" src="https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=3fe785a18e&view=att&th=139e41780b06493c&attid=0.2&disp=emb&realattid=ii_139e415f11d8f31e&zw&atsh=1" /></span></div>
<div>
<br />
<span style="color: #000099; font-size: medium;"></span><br /></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;">भारत को विकसित बनाने के लिए मोदी के उपायों का जबाव नहीं है. यदि मोदी के फंडो को वास्तव में लागू किया गया तो गाव के लोग बिजली बेचकर गाव का विकास करेंगे. इसके लिए सोलर पैनलो से सोलर बिजली बनाकर सरकार को बेचकर पैसा कमाया जायेगा.</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;">लेकिन भारत में बिकने वाले सोलर पैनल ४ गुना अधिक महगे है, इसके लिए सरकार को प्रभावी और सस्ते सोलर पैनल बाज़ार में लाना होगा. भारत की कुल सोलर पैनल की आवश्यकता की भरपाई के लिए भारत में १०० सोलर पैनल उत्पादन इकाईया लगानी होगी जो २० रुपये प्रति वाट के हिसाब से बाज़ार में उपलब्ध हो. चीन की सरकार २५ रुपये प्रति वाट के हिसाब से बेतहाशा सोलर पैनलो का उत्पादन कर रही है जब की भारत की सरकार शांत बैठी है.</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><img alt="Inline image 2" src="https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=3fe785a18e&view=att&th=139e41780b06493c&attid=0.1&disp=emb&realattid=ii_139e416d29c67fd3&zw&atsh=1" /></span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;">सरकार गावो को सब्सिडी देकर सोलर पैनल लगाने के लिए उत्प्रेरित करे और उपयोग से अधिक बनी बिजली को खरीदने की व्यवस्था करे. इसके लिए सरकार को वास्तव में बहु ईमानदार होना होगा..कम से कम उतना जितना मोदी स्वयं हैं.</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;">भारत में दिन में बहुत बिजली बनाई जा सकती है जिससे की दिन में फैक्ट्री में काम करने बाद लोग रात में अपने घर पर बच्चो के साथ आराम कर पाए और रात में इन्वर्टर या कोयले की बिजली का उपयोग कर पाए. यह व्यवस्था भारत को "विकसित भारत " बनाने की ओर ले जायेगी लेकिन इसे असली जमा पहनने के लिए कम से कम ३ साल चाहिए.</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;">भारत में सोलर पैनल बनाने की तकनीक, आदमी, उसमे प्रयोग होने वाले सामान और धातु बहुत मात्रा में उपलब्ध है सिर्फ एक विवेक शील भारत माता के लाल को भारत की गद्दी पर बैठने की देर भर है,</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;">विकसित भारत को चाहिए ५ लाख मेगावाट बिजली जिसमे अकेले ४ लाख मेगावाट बिजली सिर्फ सोलर पैनलो से बनाई जा सकती है बाकि सबको मालूम है हम दुनिया के सबसे बड़े "थोरियम" भण्डार के मालिक हैं.</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br /></span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;">लेकिन कांग्रेस ने हमें दरिद्र बना दिया है.</span></div>
<div>
<span style="color: #000099; font-size: medium;"><br /></span></div>
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<span style="color: #000099; font-size: medium;">अब एक ही विकल्प- सिर्फ मोदी </span></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-65312752691201666622012-08-23T03:51:00.000-07:002012-08-23T03:51:31.611-07:00वन्दे मातरम Vs जन-गण-मन <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: small;"><b>वन्दे मातरम</b></span> <span style="font-size: small;"> <b>की कहानी</b> <br />
ये वन्दे मातरम नाम का जो गान है जिसे हम राष्ट्रगीत के रूप में जानते हैं उसे बंकिम चन्द्र चटर्जी ने 7 नवम्बर 1875 को लिखा था | बंकिम चन्द्र चटर्जी बहुत ही क्रन्तिकारी विचारधारा के व्यक्ति थे | देश के साथ-साथ पुरे बंगाल में उस समय अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त आन्दोलन चल रहा था और एक बार ऐसे ही विरोध आन्दोलन में भाग लेते समय इन्हें बहुत चोट लगी और बहुत से उनके दोस्तों की मृत्यु भी हो गयी | इस एक घटना ने उनके मन में ऐसा गहरा घाव किया कि उन्होंने आजीवन अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का संकल्प ले लिया उन्होंने | बाद में उन्होंने एक उपन्यास लिखा जिसका नाम था "आनंदमठ", जिसमे उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बहुत कुछ लिखा, उन्होंने बताया कि अंग्रेज देश को कैसे लुट रहे हैं, ईस्ट इंडिया कंपनी भारत से कितना पैसा ले के जा रही है, भारत के लोगों को वो कैसे मुर्ख बना रहे हैं, ये सब बातें उन्होंने उस किताब में लिखी | वो उपन्यास उन्होंने जब लिखा तब अंग्रेजी सरकार ने उसे प्रतिबंधित कर दिया | जिस प्रेस में छपने के लिए वो गया वहां अंग्रेजों ने ताला लगवा दिया | तो बंकिम दा ने उस उपन्यास को कई टुकड़ों में बांटा और अलग-अलग जगह उसे छपवाया औए फिर सब को जोड़ के प्रकाशित करवाया | अंग्रेजों ने उन सभी प्रतियों को जलवा दिया फिर छपा और फिर जला दिया गया, ऐसे करते करते सात वर्ष के बाद 1882 में वो ठीक से छ्प के बाजार में आया और उसमे उन्होंने जो कुछ भी लिखा उसने पुरे देश में एक लहर पैदा किया | शुरू में तो ये बंगला में लिखा गया था, उसके बाद ये हिंदी में अनुवादित हुआ और उसके बाद, मराठी, गुजराती और अन्य भारतीय भाषाओँ में ये छपी और वो भारत की ऐसी पुस्तक बन गया जिसे रखना हर क्रन्तिकारी के लिए गौरव की बात हो गयी थी | इसी पुस्तक में उन्होंने जगह जगह वन्दे मातरम का घोष किया है और ये उनकी भावना थी कि लोग भी ऐसा करेंगे | बंकिम बाबु की एक बेटी थी जो ये कहती थी कि आपने इसमें बहुत कठिन शब्द डाले है और ये लोगों को पसंद नहीं आयेगी तो बंकिम बाबु कहते थे कि अभी तुमको शायद समझ में नहीं आ रहा है लेकिन ये गान कुछ दिन में देश के हर जबान पर होगा, लोगों में जज्बा पैदा करेगा और ये एक दिन इस देश का राष्ट्रगान बनेगा | ये गान देश का राष्ट्रगान बना लेकिन ये देखने के लिए बंकिम बाबु जिन्दा नहीं थे लेकिन जो उनकी सोच थी वो बिलकुल सही साबित हुई| 1905 में ये वन्दे मातरम इस देश का राष्ट्रगान बन गया | 1905 में क्या हुआ था कि अंग्रेजों की सरकार ने बंगाल का बटवारा कर दिया था | अंग्रेजों का एक अधिकारी था कर्जन जिसने बंगाल को दो हिस्सों में बाट दिया था, एक पूर्वी बंगाल और एक पश्चिमी बंगाल | इस बटवारे का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये था कि ये धर्म के नाम पर हुआ था, पूर्वी बंगाल मुसलमानों के लिए था और पश्चिमी बंगाल हिन्दुओं के लिए, इसी को हमारे देश में बंग-भंग के नाम से जाना जाता है | ये देश में धर्म के नाम पर पहला बटवारा था उसके पहले कभी भी इस देश में ऐसा नहीं हुआ था, मुसलमान शासकों के समय भी ऐसा नहीं हुआ था | खैर ...............इस बंगाल बटवारे का पुरे देश में जम के विरोध हुआ था , उस समय देश के तीन बड़े क्रांतिकारियों लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पल ने इसका जम के विरोध किया और इस विरोध के लिए उन्होंने वन्दे मातरम को आधार बनाया | और 1905 से हर सभा में, हर कार्यक्रम में ये वन्देमातरम गाया जाने लगा | कार्यक्रम के शुरू में भी और अंत में भी | धीरे धीरे ये इतना प्रचलित हुआ कि अंग्रेज सरकार इस वन्दे मातरम से चिढने लगी | अंग्रेज जहाँ इस गीत को सुनते, बंद करा देते थे और और गाने वालों को जेल में डाल देते थे, इससे भारत के क्रांतिकारियों को और ज्यादा जोश आता था और वो इसे और जोश से गाते थे | एक क्रन्तिकारी थे इस देश में जिनका नाम था खुदीराम बोस, ये पहले क्रन्तिकारी थे जिन्हें सबसे कम उम्र में फाँसी की सजा दी गयी थी | मात्र 14 साल की उम्र में उसे फाँसी के फंदे पर लटकाया गया था और हुआ ये कि जब खुदीराम बोस को फाँसी के फंदे पर लटकाया जा रहा था तो उन्होंने फाँसी के फंदे को अपने गले में वन्दे मातरम कहते हुए पहना था | इस एक घटना ने इस गीत को और लोकप्रिय कर दिया था और इस घटना के बाद जितने भी क्रन्तिकारी हुए उन सब ने जहाँ मौका मिला वहीं ये घोष करना शुरू किया चाहे वो भगत सिंह हों, राजगुरु हों, अशफाकुल्लाह हों, चंद्रशेखर हों सब के जबान पर मंत्र हुआ करता था | ये वन्दे मातरम इतना आगे बढ़ा कि आज इसे देश का बच्चा बच्चा जानता है | <br />
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<b>जन-गण-मन की कहानी</b></span> <span style="font-size: small;"><br />
सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था | सन 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया | पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये | इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया | रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में लिखना ही होगा | उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन के निदेशक (Director) रहे | उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी में लगा हुआ था | और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों के लिए | रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है "जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता" | इस गीत के सारे के सारे शब्दों में अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि ये तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था | इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है <span style="color: #3333ff;">"भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है | हे अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो | तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है | तुम्हारी ही हम गाथा गाते है | हे भारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो | </span>"<br style="color: #ff6666;" /><br />
जोर्ज पंचम भारत आया 1911 में और उसके स्वागत में ये गीत गाया गया | जब वो इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया | क्योंकि जब भारत में उसका इस गीत से स्वागत हुआ था तब उसके समझ में नहीं आया था कि ये गीत क्यों गाया गया और इसका अर्थ क्या है | जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की | वह बहुत खुश हुआ | उसने आदेश दिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये | रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए | जोर्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था | उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया | टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है | जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया |<br />
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रविन्द्र नाथ टैगोर की अंग्रेजों के प्रति ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला कांड हुआ और गाँधी जी ने उनको पत्र लिखा और कहा क़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए ? फिर गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और कहा कि अभी तक तुम अंग्रेजो की अंध भक्ति में डूबे हुए हो ? तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली | इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया | सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे थे | रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और ICS ऑफिसर थे | अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के बाद की घटना है) | इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत 'जन गण मन' अंग्रेजो के द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है | इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है | इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है | लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे | 7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये | <br />
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1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी | लेकिन वह दो खेमो में बट गई | जिसमे एक खेमे में बाल गंगाधर तिलक के समर्थक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल नेहरु के समर्थक थे | मतभेद था सरकार बनाने को लेकर | मोती लाल नेहरु वाला गुट चाहता था कि स्वतंत्र भारत की क्या जरूरत है, अंग्रेज तो कोई ख़राब काम कर नहीं रहे है, अगर बहुत जरूरी हुआ तो यहाँ के कुछ लोगों को साथ लेकर अंग्रेज साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition Government) बने | जबकि बालगंगाधर तिलक गुट वाले कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है | इस मतभेद के कारण कोंग्रेस के दो हिस्से हो गए | एक नरम दल और दूसरा गरम दल | गरम दल के नेता हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे | (यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे) | लेकिन नरम दल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे, उनके साथ रहना, उनको सुनना, उनकी बैठकों में शामिल होना, हर समय अंग्रेजो से समझौते में रहते थे | वन्देमातरम से अंग्रेजो को बहुत चिढ होती थी | नरम दल वाले गरम दल को चिढाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत "जन गण मन" गाया करते थे और गरम दल वाले "वन्दे मातरम" | नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था तो अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती (मूर्ति पूजा) है | उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे, उन्होंने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया | जब भारत सन 1947 में स्वतंत्र हो गया तो संविधान सभा की बहस चली | संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थे जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर सहमति जताई | बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना | और उस एक सांसद का नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरु | अब इस झगडे का फैसला कौन करे, तो वे पहुचे गाँधी जी के पास | गाँधी जी ने कहा कि जन गन मन के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये | तो महात्मा गाँधी ने तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा" | लेकिन नेहरु जी उस पर भी तैयार नहीं हुए | नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन-गण-मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है | उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु जी ने जन-गण-मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानी प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गाया नहीं गया | नेहरु जी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे | जन-गण-मन को इसलिए प्राथमिकता दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और वन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था | </span> <span style="font-size: small;"><br />
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तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का | अब ये आप को तय करना है कि आपको क्या गाना है ? </span> <span style="font-size: small;"><br />
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इतने लम्बे पत्र को आपने धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए आपका धन्यवाद् | और अच्छा लगा हो तो इसे फॉरवर्ड कीजिये, आप अगर और भारतीय भाषाएँ जानते हों तो इसे उस भाषा में अनुवादित कीजिये (अंग्रेजी छोड़ कर), अपने अपने ब्लॉग पर डालिए, मेरा नाम हटाइए अपना नाम डालिए मुझे कोई आपत्ति नहीं है | मतलब बस इतना ही है की ज्ञान का प्रवाह होते रहने दीजिये | <br />
<b>जय हिंद <br />
राजीव दीक्षित </b></span> <span style="font-size: small;"><br />
</span></div>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-31566319453252228192012-08-23T03:49:00.000-07:002012-08-23T03:49:42.876-07:00भारत के कानून <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: small;"><span style="font-weight: bold;"></span>भारत में 1857 के पहले ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन हुआ करता था वो अंग्रेजी सरकार का सीधा शासन नहीं था | 1857 में एक क्रांति हुई जिसमे इस देश में मौजूद 99 % अंग्रेजों को भारत के लोगों ने चुन चुन के मार डाला था और 1% इसलिए बच गए क्योंकि उन्होंने अपने को बचाने के लिए अपने शरीर को काला रंग लिया था | लोग इतने गुस्से में थे कि उन्हें जहाँ अंग्रेजों के होने की भनक लगती थी तो वहां पहुँच के वो उन्हें काट डालते थे | हमारे देश के इतिहास की किताबों में उस क्रांति को सिपाही विद्रोह के नाम से पढाया जाता है | Mutiny और Revolution में अंतर होता है लेकिन इस क्रांति को विद्रोह के नाम से ही पढाया गया हमारे इतिहास में | 1857 की गर्मी में मेरठ से शुरू हुई ये क्रांति जिसे सैनिकों ने शुरू किया था, लेकिन एक आम आदमी का आन्दोलन बन गया और इसकी आग पुरे देश में फैली और 1 सितम्बर तक पूरा देश अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हो गया था | भारत अंग्रेजों और अंग्रेजी अत्याचार से पूरी तरह मुक्त हो गया था | लेकिन नवम्बर 1857 में इस देश के कुछ गद्दार रजवाड़ों ने अंग्रेजों को वापस बुलाया और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित करने में हर तरह से योगदान दिया | धन बल, सैनिक बल, खुफिया जानकारी, जो भी सुविधा हो सकती थी उन्होंने दिया और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित किया | और आप इस देश का दुर्भाग्य देखिये कि वो रजवाड़े आज भी भारत की राजनीति में सक्रिय हैं | अंग्रेज जब वापस आये तो उन्होंने क्रांति के उद्गम स्थल बिठुर (जो कानपुर के नजदीक है) पहुँच कर सभी 24000 लोगों का मार दिया चाहे वो नवजात हो या मरणासन्न | बिठुर के ही नाना जी पेशवा थे और इस क्रांति की सारी योजना यहीं बनी थी इसलिए अंग्रेजों ने ये बदला लिया था | उसके बाद उन्होंने अपनी सत्ता को भारत में पुनर्स्थापित किया और जैसे एक सरकार के लिए जरूरी होता है वैसे ही उन्होंने कानून बनाना शुरू किया | अंग्रेजों ने कानून तो 1840 से ही बनाना शुरू किया था और मोटे तौर पर उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया था, लेकिन 1857 से उन्होंने भारत के लिए ऐसे-ऐसे कानून बनाये जो एक सरकार के शासन करने के लिए जरूरी होता है | आप देखेंगे कि हमारे यहाँ जितने कानून हैं वो सब के सब 1857 से लेकर 1946 तक के हैं | <br />
1840 तक का भारत जो था उसका विश्व व्यापार में हिस्सा 33% था, दुनिया के कुल उत्पादन का 43% भारत में पैदा होता था और दुनिया के कुल कमाई में भारत का हिस्सा 27% था | ये अंग्रेजों को बहुत खटकती थी, इसलिए आधिकारिक तौर पर भारत को लुटने के लिए अंग्रेजों ने कुछ कानून बनाये थे और वो कानून अंग्रेजों के संसद में बहस के बाद तैयार हुई थी, उस बहस में ये तय हुआ कि "भारत में होने वाले उत्पादन पर टैक्स लगा दिया जाये क्योंकि सारी दुनिया में सबसे ज्यादा उत्पादन यहीं होता है और ऐसा हम करते हैं तो हमें टैक्स के रूप में बहुत पैसा मिलेगा" | तो अंग्रेजों ने सबसे पहला कानून बनाया Central Excise Duty Act और टैक्स तय किया गया 350% मतलब 100 रूपये का उत्पादन होगा तो 350 रुपया Excise Duty देना होगा | फिर अंग्रेजों ने समान के बेचने पर Sales Tax लगाया और वो तय किया गया 120% मतलब 100 रुपया का माल बेचो तो 120 रुपया CST दो | फिर एक और टैक्स आया Income Tax और वो था 97% मतलब 100 रुपया कमाया तो 97 रुपया अंग्रेजों को दे दो | ऐसे ही Road Tax, Toll Tax, Municipal Corporation tax, Octroi, House Tax, Property Tax लगाया और ऐसे करते-करते 23 प्रकार का टैक्स लगाया अंग्रेजों ने और खूब लुटा इस देश को | 1840 से लेकर 1947 तक टैक्स लगाकर अंग्रेजों ने जो भारत को लुटा उसके सारे रिकार्ड बताते हैं कि करीब 300 लाख करोड़ रुपया लुटा अंग्रेजों ने इस देश से | तो भारत की जो गरीबी आयी है वो लुट में से आयी गरीबी है | विश्व व्यापार में जो हमारी हिस्सेदारी उस समय 33% थी वो घटकर 5% रह गयी, हमारे कारखाने बंद हो गए, लोगों ने खेतों में काम करना बंद कर दिया, हमारे मजदूर बेरोजगार हो गए | इस तरीके से बेरोजगारी पैदा हुई, गरीबी-बेरोजगारी से भुखमरी पैदा हुई और आपने पढ़ा होगा कि हमारे देश में उस समय कई अकाल पड़े, ये अकाल प्राकृतिक नहीं था बल्कि अंग्रेजों के ख़राब कानून से पैदा हुए अकाल थे, और इन कानूनों की वजह से 1840 से लेकर 1947 तक इस देश में साढ़े चार करोड़ लोग भूख से मरे | तो हमारी गरीबी का कारण ऐतिहासिक है कोई प्राकृतिक,अध्यात्मिक या सामाजिक कारण नहीं है | <br />
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1857 की क्रांति की बाद अंग्रेजों ने भारत के ही कुछ गद्दार राजाओं के सहयोग से अपनी खोयी सत्ता को पुनर्स्थापित किया और 1 नवम्बर 1858 को भारत में प्रकाशित होने वाले कुछ अंग्रेजो अख़बारों में ब्रिटेन की तत्कालीन महारानी का ये पत्र छपा जिसमे कहा गया था "आज से भारत में कंपनी (ईस्ट इंडिया कंपनी) की सरकार नहीं बल्कि कानून की सरकार की स्थापना होगी"| लेकिन वो कानून कौन बनाएगा ? तो वो कानून अंग्रेजों की संसद बनाएगी, ब्रिटिश पार्लियामेंट बनाएगी और उसके हिसाब से भारत को चलाया जायेगा | अब ब्रिटिश पार्लियामेंट में बहस इस बात को लेकर हुई कि "कानून ऐसे बनाये जाने चाहिए कि भारतवासी कभी भी दुबारा खड़े न हो सकें और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत न कर सकें" | इस तरह अंग्रेजों ने हमारे देश में कानून की सरकार बनाई और हमारे देश में अंग्रेजों ने 34735 कानून बनाये शासन करने के लिए, सब का जिक्र करना तो मुश्किल है लेकिन कुछ मुख्य कानूनों के बारे में मैं संक्षेप में लिख रहा हूँ | </span><span style="border-collapse: separate; font-family: 'Times New Roman'; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; word-spacing: 0px;"><span style="font-family: arial; line-height: 25px;"><span style="font-size: small;">हमेशा की तरह ये लेख भी<span> </span><b>परम सम्मानीय राजीव दीक्षित भाई<span> </span></b>के विभिन्न व्याख्यानों में से जोड़ के मैंने बनाया है, उम्मीद है कि आप लोगों के ये पसंद आएगी |<span> </span><br />
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<ul><li><span style="font-size: small;"><b> Licensing of Arms Act -</b> सबसे पहला कानून जानते हैं क्या आया ? सबसे पहला कानून ? आपको ये जानकार हैरानी होगी | अंग्रेजों के खिलाफ जो बगावत हुई थी वो सशस्त्र बगावत थी, उसमे हथियारों का इस्तेमाल हुआ था तो अंग्रेजों ने सबसे पहला कानून यही बनाया कि "हथियार वही रख सकेगा जिसके पास लाइसेंस होगा, लाइसेंस जिसके पास नहीं होगा वो हथियार रखने का अधिकारी नहीं होगा", तो अंग्रेजों ने क्या किया ? लाइसेंसिंग ऑफ़ आर्म्स एक्ट नामक पहला कानून बनाया और इस कानून के आधार पर क्या किया गया कि घर-घर की तलाशी ली गयी कि किसके घर में बन्दूक है, किसके घर में चाकू है, किसके घर में छुरा है, किसके घर में हसिया है और वो सब अंग्रेजों ने छीन लिया क्योंकि अंग्रेजों को डर था कि इन्ही हथियारों की मदद से भारतवासी फिर से बगावत कर सकते हैं | और इस कानून के आधार पर जब भारतवासियों के हर्थियर छीन लिए गए तब भारतवासी कमजोर हो गए और वो कमजोरी इतनी भारी पड़ी कि अगले 90 साल तक फिर अंग्रेजों की गुलामी हमको सहन करनी पड़ी | और इस देश का दुर्भाग्य ये कि ये कानून आज भी चल रहा है इस देश में | आपको मालूम है कि इस देश में हथियार वही रख सकता है जिसके पास लाइसेंस होगा और हथियार देने का काम पहले गोरे अंग्रेज करते थे आज लाइसेंस देने का काम काले अंग्रेज कर रहे हैं | </span></li>
</ul><ul><li><span style="font-size: small;"><b>Indian Education Act -</b> 1858 में Indian Education Act बनाया गया | इसकी ड्राफ्टिंग लोर्ड मैकोले ने की थी | लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी | अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W.Litnar और दूसरा था Thomas Munro, दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था | 1823 के आसपास की बात है ये | Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है, और उस समय जब भारत में इतनी साक्षरता है | और मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे, और मैकोले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है "कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी " | इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया, जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज के तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी, फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया, और इस देश के गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया उनमे आग लगा दी, उसमे पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा-पीटा, जेल में डाला | 1850 तक इस देश में 7 लाख 32 हजार गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे 7 लाख 50 हजार, मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में Higher Learning Institute हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था, और ये गुरुकुल समाज के लोग मिल के चलाते थे न कि राजा, महाराजा, और इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी | इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे फ्री स्कूल कहा जाता था, इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं | और मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमे वो लिखता है कि "इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी " और उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है | और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा | लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है | </span><span style="font-size: small;">शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है | इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे | ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी | अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी | संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है | जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी | <span style="color: red;"></span></span></li>
<li><span style="font-size: small;"><b>Indian Police Act</b> - </span><span style="font-size: small;">10 मई 1857 को जब देश में क्रांति हो गई और भारतवासियों ने पूरे देश में 3 लाख अंग्रेजो को मार डाला । उस समय क्रांतिकारी थे मंगल पांडे, तात्या टोपे, नाना साहब पेशवा आदि । लेकिन कुछ गद्दार राजाओ के वजह से अंग्रेज दुबारा भारत में वापिस आयें । तब उन्होने फ़ैसला किया कि अब हम भारतवासियों को सीधे मारे पीटेंगे नहीं, अब हम इनको कानून बना कर गुलाम रखेंगे । </span><span style="font-size: small;">भारतवासी कभी भी अंग्रेजों के खिलाफ बगावत न कर सके इसके लिए भारतवासियों को दबाने-कुचलने के लिए एक ऐसा तंत्र चाहिए जो ये काम बखूबी कर सके तो पुलिस नाम की एक व्यवस्था उन्होंने खड़ी की | क्या आपको मालूम है कि 1858 के पहले इस देश में पुलिस नाम की कोई व्यस्था नहीं हुआ करती थी? भारत के किसी भी राजा ने पुलिस व्यवस्था नहीं रखी थी, सैनिक और सेना था लेकिन पुलिस नहीं होती थी, क्योंकि पुलिस की जरूरत नहीं होती थी, अपने ही लोगों को मारना, पीटना और धमकाना ये कौन करता है ? तो 1860 में इंडियन पुलिस एक्ट बनाया गया | 1857 के पहले अंग्रेजों की कोई पुलिस नहीं थी इस देश में लेकिन 1857 में जो विद्रोह हुआ उससे डरकर उन्होंने ये कानून बनाया ताकि ऐसे किसी विद्रोह/क्रांति को दबाया जा सके | अंग्रेजों ने इसे बनाया था भारतीयों का दमन और अत्याचार करने के लिए, </span><span style="font-size: small;">उनको डर था कि 1857 जैसी क्रंति दुबारा न हो जाये, तब अंग्रेजो ने इंडियन पुलिस एक्ट बनाया, और पुलिस बनायी, </span><span style="font-size: small;">उस पुलिस को विशेष अधिकार दिया गया | </span><span style="font-size: small;">उसमे एक धारा बनाई गई right to offence की, मतलब पुलिस वाला आप पर जितनी मर्जी लाठियां मारे पर आप कुछ नहीं कर सकते और अगर आपने लाठी पकड़ने की कोशिश की तो आप पर मुकद्दमा चलेगा और इसी कानून के आधार पर सरकार अंदोलन करने वालो पर लाठियां बरसाया करती थी, फ़िर धारा 144 बनाई गई ताकि लोग इकठे न हो सके </span><span style="font-size: small;">और बेचारे पुलिस की हालत देखिये कि ये 24 घंटे के कर्मचारी हैं उतने ही तनख्वाह में, तनख्वाह मिलती है 8 घंटे की और ड्यूटी रहती है 24 घंटे की | <br />
</span><span style="font-size: small;"> जब साईमन कमीशन भारत आने वाला था तो क्रान्तिकारी लाला लाजपत राय जी उसका शंतिप्रिय विद्रोह कर रहे थे । अंग्रेजी पुलिस के एक अफ़सर सांडर्स ने उन पर लाठिया बरसानी शुरु कर दी । एक लाठी मारी, दो मारी, तीन, चार, पांच, करते करते 14 लाठिया मारी । नतीजा ये हुआ लाला जी के सर से खून ही खून बहने लगा, उनको अस्तपताल ले जाया गया जहाँ उनकी</span> <span style="font-size: small;">मृत्यु हो गई । अब सांडर्स को सज़ा मिलनी चाहिए, इसके लिये शहीदेआजम भगत सिंह ने अदालत में मुकदमा कर दिया, सुनवाई हुई और अदालत ने फैसला दिया कि लाला जी पर जो लाठिया मारी गई है वो कानून के आधार पर मारी गई है अब इसमे उनकी मौत हो गई तो हम क्या करे इसमे कुछ भी गलत नहीं है, क्योंकि सांडर्स अपनी ड्यूटी कर रहा था, नतीजा सांडर्स को बाइज्जत बरी किया जाता है ।<br />
तब भगत सिंह को गुस्सा आया उसने कहा जिस अंग्रेजी न्याय व्यवस्था ने लाला जी के हत्यारे को बाईज्जत बरी कर दिया, उसको सज़ा मैं दुंगा और इसे वहीं पहुँचाउगा जहाँ इसने लाला जी को पहुँचाया है और जैसा आप सब जानते हैं कि फ़िर भगत सिंह ने सांडर्स को गोली से उड़ा दिया और फ़िर भगत सिंह को इसके लिये फ़ांसी की सज़ा हुई । जिंदगी के अंतिम दिनो में जब भगत सिंह लाहौर जेल में बंद थे तो बहुत से पत्रकार उनसे मिलने जाया करते थे और उसी बातचीत में किसी पत्रकार ने भगत सिंह से उनकी आख़िरी इच्छा पूछी । शहीदे आजम भगत सिंह ने कहा कि " मैं देश के नौजवानो से उम्मीद करता हूँ कि जिस</span> <span style="font-size: small;"><br />
इंडियन पुलिस एक्ट के कारण लाला जी की जान गई, जिस इंडियन पुलिस एक्ट के आधार पर मैं फ़ांसी चढ़ रहा हूँ, इस देश के नौजवान आजादी मिलने से पहले पहले इसको खत्म करवा देगें, यही मेरे दिल की इच्छा है ।" <br />
लेकिन ये बहुत शर्म की बात है कि आजादी के 64 साल के बाद आज भी इस कानून को हम खत्म नहीं करवा पाये । आज भी आप देखिये कि उसी इंडियन पुलिस एक्ट के आधार पर पुलिस देशवासियो पर कितना जूल्म करती है । कभी आन्दोलन करने वाले किसानों को डंडे मारती है, कभी औरत को डंडे मारती है और सैकड़ों लोग उसमे घायल होते हैं । हम हर साल 23 मार्च को भगत सिंह का शहीदी दिवस मानाते हैं । लाला लाजपत राय का शहीदी दिवस मानाते हैं । किस मुँह से हम उनको श्रद्धांजलि अर्पित करे कि "लाला लाजपत राय जी जिस कानून के आधार आपको लाठिया मारी गई और आपकी मौत हुई उस कानून को हम आजादी के 64 साल बाद भी हम खत्म नहीं करवा पाये, किस मुँह से हम भगत सिंह को श्रद्धांजलि दे कि भगत सिंह जी जिस अंग्रेजी कानून के आधार पर आपको फाँसी की सज़ा हुई, आजादी के 64 साल बाद भी हम उसको सिर पर ढो रहे हैं ।" आजादी के 64 साल बाद आज भी पुलिस आन्दोलन करने वाले भारतवासियो को वैसे ही डंडे मारे जैसे अंग्रेजो की पुलिस मारती तो थी तो हम कैसे कहें कि हम आजाद हो गए हैं ?</span> </li>
<li><span style="font-size: small;"><b>I</b><b>ndian Civil Services Act</b> - 1860 में ही इंडियन सिविल सर्विसेस एक्ट बनाया गया | ये जो Collector हैं वो इसी कानून की देन हैं | भारत के Civil Servant जो हैं उन्हें Constitutional Protection है, क्योंकि जब ये कानून बना था उस समय सारे ICS अधिकारी अंग्रेज थे और उन्होंने अपने बचाव के लिए ऐसा कानून बनाया था, ऐसा विश्व के किसी देश में नहीं है, और वो कानून चुकी आज भी लागू है इसलिए भारत के IAS अधिकारी सबसे निरंकुश हैं | अभी आपने CVC थोमस का मामला देखा होगा | इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता | और इन अधिकारियों का हर तीन साल पर तबादला हो जाता था क्योंकि अंग्रेजों को ये डर था कि अगर ज्यादा दिन तक कोई अधिकारी एक जगह रह गया तो उसके स्थानीय लोगों से अच्छे सम्बन्ध हो जायेंगे और वो ड्यूटी उतनी तत्परता से नहीं कर पायेगा या उसके काम काज में ढीलापन आ जायेगा | और वो ट्रान्सफर और पोस्टिंग का सिलसिला आज भी वैसे ही जारी है और हमारे यहाँ के कलक्टरों की जिंदगी इसी में कट जाती है | और ये जो Collector होते थे उनका काम था Revenue, Tax, लगान और लुट के माल को Collect करना इसीलिए ये Collector कहलाये और जो Commissioner होते थे वो commission पर काम करते थे उनकी कोई तनख्वाह तय नहीं होती थी और वो जो लुटते थे उसी के आधार पर उनका कमीशन होता था | ये मजाक की बात या बनावटी कहानी नहीं है ये सच्चाई है इसलिए ये दोनों पदाधिकारी जम के लूटपाट और अत्याचार मचाते थे उस समय | अब इस कानून का नाम Indian Civil Services Act से बदल कर Indian Civil Administrative Act हो गया है, 64 सालों में बस इतना ही बदलाव हुआ है | <br />
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<li><span style="font-size: small;"><b>Indian Income Tax Act -</b> इस एक्ट पर जब ब्रिटिश संसद में चर्चा हो रही थी तो एक सदस्य ने कहा कि "ये तो बड़ा confusing है, कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है", तो दुसरे ने कहा कि हाँ इसे जानबूझ कर ऐसा रखा गया है ताकि जब भी भारत के लोगों को कोई दिक्कत हो तो वो हमसे ही संपर्क करें | आज भी भारत के आम आदमी को छोडिये, इनकम टैक्स के वकील भी इसके नियमों को लेकर दुविधा की स्थिति में रहते हैं | और इनकम टैक्स की दर रखी गयी 97% यानि 100 रुपया कमाओ तो 97 रुपया टैक्स में दे दो और उसी समय ब्रिटेन से आने वाले सामानों पर हर तरीके के टैक्स की छुट दी जाती है ताकि ब्रिटेन के माल इस देश के गाँव-गाँव में पहुँच सके | और इसी चर्चा में एक सांसद कहता है कि "हमारे तो दोनों हाथों में लड्डू है, अगर भारत के लोग इतना टैक्स देते हैं तो वो बर्बाद हो जायेंगे या टैक्स की चोरी करते हैं तो बेईमान हो जायेंगे और अगर बेईमान हो गए तो हमारी गुलामी में आ जायेंगे और अगर बरबाद हुए तो हमारी गुलामी में आने ही वाले है" | तो ध्यान दीजिये कि इस देश में टैक्स का कानून क्यों लाया जा रहा है ? क्योंकि इस देश के व्यापारियों को, पूंजीपतियों को, उत्पादकों को, उद्योगपतियों को, काम करने वालों को या तो बेईमान बनाया जाये या फिर बर्बाद कर दिया जाये, ईमानदारी से काम करें तो ख़त्म हो जाएँ और अगर बेईमानी करें तो हमेशा ब्रिटिश सरकार के अधीन रहें | अंग्रेजों ने इनकम टैक्स की दर रखी थी 97% और इस व्यवस्था को 1947 में ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आपको जान के ये आश्चर्य होगा कि 1970-71 तक इस देश में इनकम टैक्स की दर 97% ही हुआ करती थी | और इसी देश में भगवान श्रीराम जब अपने भाई भरत से संवाद कर रहे हैं तो उनसे कह रहे है कि प्रजा पर ज्यादा टैक्स नहीं लगाया जाना चाहिए और चाणक्य ने भी कहा है कि टैक्स ज्यादा नहीं होना चाहिए नहीं तो प्रजा हमेशा गरीब रहेगी, अगर सरकार की आमदनी बढ़ानी है तो लोगों का उत्पादन और व्यापार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करो | अंग्रेजों ने तो 23 प्रकार के टैक्स लगाये थे उस समय इस देश को लुटने के लिए, अब तो इस देश में VAT को मिला के 64 प्रकार के टैक्स हो गए हैं | महात्मा गाँधी के देश में नमक पर भी टैक्स हो गया है और नमक भी विदेशी कंपनियां बेंच रही हैं, आज अगर गाँधी जी की आत्मा स्वर्ग से ये देखती होगी तो आठ-आठ आंसू रोती होगी कि जिस देश में मैंने नमक सत्याग्रह किया कि विदेशी कंपनी का नमक न खाया जाये आज उस देश में लोग विदेश कंपनी का नमक खरीद रहे हैं और नमक पर टैक्स लगाया जा रहा है | शायद हमको मालूम नहीं है कि हम कितना बड़ा National Crime कर रहे हैं | <br />
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<li><span style="font-size: small;"><b>Indian Forest Act -</b> 1865 में Indian Forest Act बनाया गया और ये लागू हुआ 1872 में | इस कानून के बनने के पहले जंगल गाँव की सम्पति माने जाते थे और गाँव के लोगों की सामूहिक हिस्सेदारी होती थी इन जंगलों में, वो ही इसकी देखभाल किया करते थे, इनके संरक्षण के लिए हर तरह का उपाय करते थे, नए पेड़ लगाते थे और इन्ही जंगलों से जलावन की लकड़ी इस्तेमाल कर के वो खाना बनाते थे | अंग्रेजों ने इस कानून को लागू कर के जंगल के लकड़ी के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया | साधारण आदमी अपने घर का खाना बनाने के लिए लकड़ी नहीं काट सकता और अगर काटे तो वो अपराध है और उसे जेल हो जाएगी, अंग्रेजों ने इस कानून में ये प्रावधान किया कि भारत का कोई भी आदिवासी या दूसरा कोई भी नागरिक पेड़ नहीं काट सकता और आम लोगों को लकड़ी काटने से रोकने के लिए उन्होंने एक पोस्ट बनाया District Forest Officer जो उन लोगों को तत्काल सजा दे सके, उसपर केस करे, उसको मारे-पीटे | लेकिन दूसरी तरफ जंगलों के लकड़ी की कटाई के लिए ठेकेदारी प्रथा लागू की गयी जो आज भी लागू है और कोई ठेकेदार जंगल के जंगल साफ़ कर दे तो कोई फर्क नहीं पड़ता | अंग्रेजों द्वारा नियुक्त ठेकेदार जब चाहे, जितनी चाहे लकड़ी काट सकते हैं | हमारे देश में एक अमेरिकी कंपनी है जो वर्षों से ये काम कर रही है, उसका नाम है ITC पूरा नाम है Indian Tobacco Company इसका असली नाम है American Tobacco Company, और ये कंपनी हर साल 200 अरब सिगरेट बनाती है और इसके लिए 14 करोड़ पेड़ हर साल काटती है | इस कंपनी के किसी अधिकारी या कर्मचारी को आज तक जेल की सजा नहीं हुई क्योंकि ये इंडियन फोरेस्ट एक्ट ऐसा है जिसमे सरकार के द्वारा अधिकृत ठेकेदार तो पेड़ काट सकते हैं लेकिन आप और हम चूल्हा जलाने के लिए, रोटी बनाने के लिए लकड़ी नहीं ले सकते और उससे भी ज्यादा ख़राब स्थिति अब हो गयी है, आप अपने जमीन पर के पेड़ भी नहीं काट सकते | तो कानून ऐसे बने हुए हैं कि साधारण आदमी को आप जितनी प्रताड़ना दे सकते हैं, दुःख दे सकते है, दे दो विशेष आदमी को आप छू भीं नहीं सकते | और जंगलों की कटाई से घाटा ये हुआ कि मिटटी बह-बह के नदियों में आ गयी और नदियों की गहराई को इसने कम कर दिया और बाढ़ का प्रकोप बढ़ता गया | <br />
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<li><span style="font-size: small;"><b>I</b><b>ndian Penal Code </b>- अंग्रेजों ने एक कानून हमारे देश में लागू किया था जिसका नाम है Indian Penal Code (IPC ) | ये Indian Penal Code अंग्रेजों के एक और गुलाम देश Ireland के Irish Penal Code की फोटोकॉपी है, वहां भी ये IPC ही है लेकिन Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वहीं भारत में इस "I" का मतलब Indian है, इन दोनों IPC में बस इतना ही अंतर है बाकि कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है | अंग्रेजों का एक अधिकारी था टी.वी.मैकोले, उसका कहना था कि भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करना होगा | और आपने अभी ऊपर Indian Education Act पढ़ा होगा, वो भी मैकोले ने ही बनाया था और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी | ये बनी 1840 में और भारत में लागू हुई 1860 में | ड्राफ्टिंग करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि "मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा | इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे ज्यादा तकलीफ देगी | और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जडमूल से समाप्त कर देगा"| और वो आगे लिखता है कि " जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा" | ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है | और आजादी के 64 साल बाद हमारी न्याय व्यवस्था का हाल देखिये कि लगभग 4 करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं, उनके फैसले नहीं हो पा रहे हैं | 10 करोड़ से ज्यादा लोग न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं लेकिन न्याय मिलने की दूर-दूर तक सम्भावना नजर नहीं आ रही है, कारण क्या है ? कारण यही IPC है | IPC का आधार ही ऐसा है | और मैकोले ने लिखा था कि "भारत के लोगों के मुकदमों का फैसला होगा, न्याय नहीं मिलेगा" | मुक़दमे का निपटारा होना अलग बात है, केस का डिसीजन आना अलग बात है, केस का जजमेंट आना अलग बात है और न्याय मिलना बिलकुल अलग बात है | अब इतनी साफ़ बात जिस मैकोले ने IPC के बारे में लिखी हो उस IPC को भारत की संसद ने 64 साल बाद भी नहीं बदला है और ना कभी कोशिश ही की है | <br />
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<li><span style="font-size: small;"> <b>Land Acquisition Act -</b> एक अंग्रेज आया इस देश में उसका नाम था डलहौजी | ब्रिटिश पार्लियामेंट ने उसे एक ही काम के लिए भारत भेजा था कि तुम जाओ और भारत के किसानों के पास जितनी जमीन है उसे छिनकर अंग्रेजों के हवाले करो | डलहौजी ने इस "जमीन को हड़पने के कानून" को भारत में लागू करवाया, इस कानून को लागू कर के किसानों से जमीने छिनी गयी | जो जमीन किसानों की थी वो ईस्ट इंडिया कंपनी की हो गयी | डलहौजी ने अपनी डायरी में लिखा है कि " मैं गाँव गाँव जाता था और अदालतें लगवाता था और लोगों से जमीन के कागज मांगता था" | और आप जानते हैं कि हमारे यहाँ किसी के पास उस समय जमीन के कागज नहीं होते थे क्योंकि ये हमारे यहाँ परंपरा से चला आ रहा था या आज भी है कि पिता की जमीन या जायदाद बेटे की हो जाती है, बेटे की जमीन उसके बेटे की हो जाती है | सब जबानी होता था, जबान की कीमत होती थी या आज भी है आप देखते होंगे कि हमारे यहाँ जो शादियाँ होती हैं वो सिर्फ और सिर्फ जबानी समझौते से होती है कोई लिखित समझौता नहीं होता है, एक दिन /तारीख तय हो जाती है और लड़की और लड़का दोनों पक्ष शादी की तैयारी में लग जाते है लड़के वाले निर्धारित तिथि को बारात ले के लड़की वालों के यहाँ पहुँच जाते है, शादी हो जाती है | तो कागज तो किसी के पास था नहीं इसलिए सब की जमीनें उस अत्याचारी डलहौजी ने हड़प ली | एक दिन में पच्चीस-पच्चीस हजार किसानों से जमीनें छिनी गयी | परिणाम क्या हुआ कि इस देश के करोड़ों किसान भूमिहीन हो गए | डलहौजी के आने के पहले इस देश का किसान भूमिहीन नहीं था, एक-एक किसान के पास कम से कम 10 एकड़ जमीन थी, ये अंग्रेजों के रिकॉर्ड बताते हैं | डलहौजी ने आकर इस देश के 20 करोड़ किसानों को भूमिहीन बना दिया और वो जमीने अंग्रेजी सरकार की हो गयीं | 1947 की आजादी के बाद ये कानून ख़त्म होना चाहिए था लेकिन नहीं, इस देश में ये कानून आज भी चल रहा है | हम आज भी अपनी खुद की जमीन पर मात्र किरायेदार हैं, अगर सरकार का मन हुआ कि आपके जमीन से हो के रोड निकाला जाये तो आपको एक नोटिस दी जाएगी और आपको कुछ पैसा दे के आपकी घर और जमीन ले ली जाएगी | आज भी इस देश में किसानों की जमीन छिनी जा रही है बस अंतर इतना ही है कि पहले जो काम अंग्रेज सरकार करती थी वो काम आज भारत सरकार करती है | पहले जमीन छीन कर अंग्रेजों के अधिकारी अंग्रेज सरकार को वो जमीनें भेंट करते थे, अब भारत सरकार वो जमीनें छिनकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भेंट कर रही है और Special Economic Zone उन्हीं जमीनों पर बनाये जा रहे हैं और ये जमीन बहुत बेदर्दी से लिए जा रहे हैं | भारतीय या बहुराष्ट्रीय कंपनी को कोई जमीन पसंद आ गयी तो सरकार एक नोटिस देकर वो जमीन किसानों से ले लेती है और वही जमीन वो कंपनी वाले महंगे दाम पर दूसरों को बेचते हैं | जिसकी जमीन है उसके हाँ या ना का प्रश्न ही नहीं है, जमीन की कीमत और मुआवजा सरकार तय करती है, जमीन वाले नहीं | एक पार्टी की सरकार वहां पर है तो दूसरी पार्टी का नेता वहां पहुँच के घडियाली आंसू बहाता है और दूसरी पार्टी की सरकार है तो पहले वाला पहुँच के घडियाली आंसू बहाता है लेकिन दोनों पार्टियाँ मिल के इस कानून को ख़त्म करने की कवायद नहीं करते और 1894 का ये अंग्रेजों का कानून बिना किसी परेशानी के इस देश में आज भी चल रहा है | इसी देश में नंदीग्राम होते हैं, इसी देश में सिंगुर होते हैं और अब नोएडा हो रहा है | जहाँ लोग नहीं चाहते कि हम हमारी जमीन छोड़े, वहां लाठियां चलती हैं, गोलियां चलती है | आपको लगता है कि ये देश आजाद हो गया है ? मुझे तो नहीं लगता | <br />
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<li><span style="font-size: small;"><b>Indian Citizenship Act -</b> अंग्रेजों ने एक कानून लाया था Indian Citizenship Act, आप और हम भारत के नागरिक हैं तो कैसे हैं, उसके Terms और Condition अंग्रेज तय कर के गए हैं | अंग्रेजों ने ये कानून इसलिए बनाया था कि अंग्रेज भी इस देश के नागरिक हो सकें | तो इसलिए इस कानून में ऐसा प्रावधान है कि कोई व्यक्ति (पुरुष या महिला) एक खास अवधि तक इस देश में रह ले तो उसे भारत की नागरिकता मिल सकती है (जैसे बंगलादेशी शरणार्थी) | लेकिन हमने इसमें आज 2011 तक के 64 सालों में रत्ती भर का भी संशोधन नहीं किया | इस कानून के अनुसार कोई भी विदेशी आकर भारत का नागरिक हो सकता है, नागरिक हो सकता है तो चुनाव लड़ सकता है, और चुनाव लड़ सकता है तो विधायक और सांसद भी हो सकता है, और विधायक और सांसद बन सकता है तो मंत्री भी बन सकता है, मंत्री बन सकता है तो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी बन सकता है | ये भारत की आजादी का माखौल नहीं तो और क्या है ? दुनिया के किसी भी देश में ये व्यवस्था नहीं है | आप अमेरिका जायेंगे और रहना शुरू करेंगे तो आपको ग्रीन कार्ड मिलेगा लेकिन आप अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं बन सकते, जब तक आपका जन्म अमेरिका में नहीं हुआ होगा | ऐसा ही कनाडा में है, ब्रिटेन में है, फ़्रांस में है, जर्मनी में है | दुनिया में 204 देश हैं लेकिन दो-तीन देश को छोड़ के हर देश में ये कानून है कि आप जब तक उस देश में पैदा नहीं हुए तब तक आप किसी संवैधानिक पद पर नहीं बैठ सकते, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है | कोई भी विदेशी इस देश की नागरिकता ले सकता है और इस देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन हो सकता है और आप उसे रोक नहीं सकते, क्योंकि कानून है, Indian Citizenship Act , उसमे ये व्यवस्था है | ये अंग्रेजों के समय का कानून है, हम उसी को चला रहे हैं, उसी को ढो रहे हैं आज भी, आजादी के 64 साल बाद भी | आप समझते हैं कि हमारी एकता और अखंडता सुरक्षित रहेगी ? <br />
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<li><span style="font-size: small;"><b>Indian Advocates Act -</b> हमारे देश में जो अंग्रेज जज होते थे वो काला टोपा लगाते थे और उसपर नकली बालों का विग लगाते थे | ये व्यवस्था आजादी के 40-50 साल बाद तक चलता रहा था | हमारे यहाँ वकीलों का जो ड्रेस कोड है वो इसी कानून के आधार पर है, काला कोट, उजला शर्ट और बो ये हैं वकीलों का ड्रेस कोड | काला कोट जो होता है वो आप जानते हैं कि गर्मी को सोखता है, और अन्दर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देता, और इंग्लैंड में चुकी साल में 8-9 महीने भयंकर ठण्ड पड़ती है तो उन्होंने ऐसा ड्रेस अपनाया, अब हम भारत में भी ऐसा ही ड्रेस पहन रहे हैं ये समझ से बाहर की बात है | हमारे यहाँ का मौसम गर्म है और साल में नौ महीने तो बहुत गर्मी रहती है और अप्रैल से अगस्त तक तो तापमान 40-50 डिग्री तक हो जाता है फिर ऐसे ड्रेस को पहनने से क्या फायदा जो शरीर को कष्ट दे, कोई और रंग भी तो हम चुन सकते थे काला रंग की जगह, लेकिन नहीं | हमारे देश में आजादी के पहले के जो वकील हुआ करते थे वो ज्यादा हिम्मत वाले थे | लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक हमेशा मराठी पगड़ी पहन कर अदालत में बहस करते थे और गाँधी जी ने कभी काला कोट नहीं पहना और इसके लिए कई बार उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन लोगों ने कभी समझौता नहीं किया |</span></li>
<li><span style="font-size: small;"><b>Indian Motor Vehicle Act -</b> उस ज़माने में कार/मोटर जो था वो सिर्फ अंग्रेजों, रजवाड़ों और पैसे वालों के पास होता था तो इस कानून में प्रावधान डाला गया कि अगर किसी को मोटर से धक्का लगे या धक्के से मौत हो जाये तो सजा नहीं होनी चाहिए या हो भी तो कम से कम | साल डेढ़ साल की सजा हो ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए उसको हत्या नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि हत्या में तो धारा 302 लग जाएगी और वहां हो जाएगी फाँसी या आजीवन कारावास, तो अंग्रेजों ने इस एक्ट में ये प्रावधान रखा कि अगर कोई (अंग्रेजों के) मोटर के नीचे दब के मरा तो उसे कठोर और लम्बी सजा ना मिले | ये व्यवस्था आज भी जारी है और इसीलिए मोटर के धक्के से होने वाली मौत में किसी को सजा नहीं होती | और सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस देश में हर साल डेढ़ लाख लोग गाड़ियों के धक्के से या उसके नीचे आ के मरते हैं लेकिन आज तक किसी को फाँसी या आजीवन कारावास नहीं हुआ | </span></li>
<li><span style="font-size: small;"><b>Indian Agricultural Price Commission Act -</b> ये भी अंग्रेजों के ज़माने का कानून है | पहले ये होता था कि किसान, जो फसल उगाते थे तो उनको ले के मंडियों में बेचने जाते थे और अपने लागत के हिसाब से उसका दाम तय करते थे | अंग्रेजों ने हमारे कृषि व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए ये कानून लाया और किसानों को उनके फसल का दाम तय करने का अधिकार समाप्त कर दिया | अंग्रेज अधिकारी मंडियों में जाते थे और वो किसानों के फसल का मूल्य तय करते थे कि आज ये अनाज इस मूल्य में बिकेगा और ये अनाज इस मूल्य में बिकेगा, ऐसे ही हर अनाज का दाम वो तय करते थे | आप हर साल समाचारों में सुनते होंगे कि "सरकार ने गेंहू का,धान का, खरीफ का, रबी का समर्थन मूल्य तय किया" | ये किसानों के फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य होता है, मतलब किसानों के फसलों का आधिकारिक मूल्य होता है | इससे ज्यादा आपके फसल का दाम नहीं होगा | किसानों को अपने उपजाए अनाजों का दाम तय करने का अधिकार आज भी नहीं है इस आजाद भारत में | उनका मूल्य तय करना सरकार के हाथ में होता है | और आज दिल्ली के AC Room में बैठ कर वो लोग किसानों के फसलों का दाम तय करते हैं जिन्होंने खेतों में कभी पसीना नहीं बहाया और जो खेतों में पसीना बहाते हैं, वो अपने उत्पाद का दाम नहीं तय कर सकते | <br />
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<li><span style="font-size: small;"><b>Indian Patent Act - </b>अंग्रेजों ने एक कानून लाया Patent Act , और वो बना था 1911 | Patent मतलब होता है एक तरह का Legal Right, कोई व्यक्ति, वैज्ञानिक या कंपनी अगर किसी चीज का आविष्कार करती है तो उसे उस आविष्कार पर एक खास अवधि के लिए अधिकार दिया जाता है | ये जा के 1970 में ख़त्म हुआ श्रीमती इंदिरा गाँधी के प्रयासों से लेकिन इसे अब फिर से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में बदल दिया गया है | अभी विस्तार से नहीं लिखूंगा मतलब इस देश के लोगों के हित से ज्यादा जरूरी है बहुराष्ट्रीय कंपनियों का हित |</span></li>
<li><span style="font-size: small;"><b>Indian Evidence Act -</b> Indian Evidence Act काम करता है गवाह और सबूत के आधार पर और ये दोनों ही बदले जा सकते हैं | गवाह भी बदले जा सकते हैं और सबूत तो इतने आसानी से मिटाए जाते हैं और नए बनाये जाते हैं इस देश में कि आप कल्पना नहीं कर सकते हैं | इसी कारण से, चूकी गवाह बदले जाते हैं, गवाह कैसे बदलते हैं, पता है आपको ? पुलिस बयान लेती है और अदालत में जैसे ही वो गवाह खड़ा होता है, तुरंत मुकर जाता है और कहता है कि पुलिस ने जबरदस्ती ये बयान मुझसे लिया है और जैसे ही वो ये कहता है, वो मुक़दमा, जो 20 मिनट में ख़त्म हो जाता, 10 साल तक चलता रहता है | और यही कारण है कि अंग्रेजी न्याय व्यवस्था में conviction rate पाँच प्रतिशत है | Conviction Rate समझते हैं आप ? 100 लोगों के ऊपर मुक़दमा किया जाये तो सिर्फ पाँच लोगों को ही सजा होती है, 95 को सजा होती ही नहीं, वो अदालत से बाइज्जत बरी हो जाते हैं | तो इसका मतलब है कि या तो 95 मुकदमे झूठे, या सरकार झूठी, या पुलिस व्यवस्था झूठी या न्याय व्यवस्था कमजोर | ये इंडियन एविडेंस एक्ट ने ऐसा सत्यानाश कर रखा है इस देश का कि सत्य महत्व का नहीं है बल्कि गवाह और सबूत महत्व का है, कई बार पुलिस कहती है कि सत्य हमें मालूम है लेकिन गवाह नहीं, सबूत नहीं है, क्या करे हम ? ना सजा दिलवा सकते हैं, ना किसी को न्याय दिलवा सकते हैं | और न्यायाधीश को सत्य की पहचान करने के लिए बिठाया जाता है, वो न्यायाधीश भी सबूत और गवाह के आधार पर सत्य की तलाश करता है, जब कि सच्चाई ये है कि सत्य अपने आप में ही पूर्ण होता है, उसको कोई गवाह की जरूरत नहीं होती है, उसको कोई सबूत की जरूरत नहीं होती | इस इंडियन एविडेंस एक्ट या कहें भारतीय न्याय व्यवस्था का कैसा मजाक इस देश में हो रहा है उसका एक उदाहरण देता हूँ | 26 नवम्बर को </span><span style="font-size: small;">जिन आतंकवादियों ने पाकिस्तान से आकर </span><span style="font-size: small;">मुंबई में सैकड़ों निर्दोष लोगों को मार दिया | उनमे से एक पकड़ा गया और उसके ऊपर नौटंकी चली कि नहीं | हम सब को सत्य मालूम है कि इसने सैकड़ों लोगों को मारा, इस मामले में निर्णय देना 10 मिनट का काम था, अब उस पर सबूत ढूंढे गए, गवाह ढूंढे गए और वो मक्कार आतंकवादी मजाक बना रहा है, हँस रहा है | भारतीय न्याय व्यवस्था पर हँस रहा है और दुर्भाग्य से ये हमारी न्याय व्यवस्था नहीं है, ये अंग्रेजों की है | </span></li>
</ul><span style="font-size: small;">ये हैं भारत के विचित्र कानून, सब पर लिखना संभव नहीं है और ज्यादा बोझिल न हो जाये इसलिए यहीं विराम देता हूँ | इन कानूनों के किताब बाज़ार में उपलब्ध हैं लेकिन मैंने इनके इतिहास को वर्तमान के साथ जोड़ के आपके सामने प्रस्तुत किया है, और इन कानूनों का इतिहास, उन पर हुई चर्चा को ब्रिटेन के संसद House of Commons की library से लिया गया हैं | अब कुछ छोटे-छोटे कानूनों की चर्चा करता हूँ |<br />
</span> <ul><li><span style="font-size: small;">अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था कि गाय को, बैल को, भैंस को डंडे से मारोगे तो जेल होगी लेकिन उसे गर्दन से काट कर उसका माँस निकल कर बेचोगे तो गोल्ड मेडल मिलेगा क्योंकि आप Export Income बढ़ा रहे हैं | ये कानून अंग्रेजों ने हमारी कृषि व्यवस्था को बर्बाद करने के लिए लाया था | लेकिन आज भी भारत में हजारों कत्लखाने गायों को काटने के लिए चल रहे हैं | <br />
</span> </li>
<li><span style="font-size: small;">1935 में अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था उसका नाम था Government of India Act , ये अंग्रेजों ने भारत को 1000 साल गुलाम बनाने के लिए बनाया था और यही कानून हमारे संविधान का आधार बना | <br />
</span></li>
<li><span style="font-size: small;">1939 में राशन कार्ड का कानून बनाया गया क्योंकि उसी साल द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हुआ और अंग्रेजों को धन के साथ-साथ भोजन की भी आवश्यकता थी तो उन्होंने भारत से धन भी लिया और अनाज भी लिया और इसी समय राशन कार्ड की शुरुआत की गयी | और जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें सस्ते दाम पर अनाज मिलता था और जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें ही वोट देने का अधिकार था | और अंग्रेजों ने उस द्वितीय विश्वयुद्ध में 1732 करोड़ स्टर्लिंग पोंड का कर्ज लिया था भारत से जो आज भी उन्होंने नहीं चुकाया है और ना ही किसी भारतीय सरकार ने उनसे ये मांगने की हिम्मत की पिछले 64 सालों में | <br />
</span> </li>
<li><span style="font-size: small;">अंग्रेजों को यहाँ से चीनी की आपूर्ति होती थी | और भारत के लोग चीनी के बजाय गुड (Jaggary) बनाना पसंद करते थे और गन्ना चीनी मीलों को नहीं देते थे | तो अंग्रेजों ने गन्ना उत्पादक इलाकों में गुड बनाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया और गुड बनाना गैरकानूनी घोषित कर दिया था और वो काननों आज भी इस देश में चल रहा है | <br />
</span> </li>
<li><span style="font-size: small;">पहले गाँव का विकास गाँव के लोगों के जिम्मे होता था और वही लोग इसकी योजना बनाते थे | किसी गाँव की क्या आवश्यकता है, ये उस गाँव के रहने वालों से बेहतर कौन जान सकता है लेकिन गाँव के उस व्यवस्था को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने PWD की स्थापना की | वो PWD आज भी है | NGO भी इसीलिए लाया गया था, ये भी अंग्रेजों ने ही शुरू किया था | <br />
</span> </li>
<li><span style="font-size: small;"> हमारे देश में सीमेंट नहीं होता था बल्कि चुना और दूध को मिला कर जो लेप तैयार होता था उसी से ईंटों को जोड़ा जाता था | अंग्रेजों ने अपने देश का सीमेंट बेचने के लिए 1850 में इस कला को प्रतिबंधित कर दिया और सीमेंट को भारत के बाजार में उतारा | हमारे देश के किलों (Forts) को आप देखते होंगे सब के सब इसी भारतीय विधि से खड़े हुए थे और आज भी कई सौ सालों से खड़े हैं | और सीमेंट से बने घरों की अधिकतम उम्र होती है 100 साल और चुने से बने घरों की न्यूनतम उम्र होती है 500 साल | <br />
</span> </li>
<li><span style="font-size: small;">आप दक्षिण भारत में भव्य मंदिरों की एक परमपरा देखते होंगे, इन मंदिरों को पेरियार जाती के लोग बनाते थे आज की भाषा में वो सब के सब सिविल इंजिनियर थे, बहुत अद्भुत मंदिरों का निर्माण किया उन्होंने | एक अंग्रेज अधिकारी था A.O.Hume, इसी ने 1885 में कांग्रेस की स्थापना की थी, जब ये 1890 में मद्रास प्रेसिडेंसी में अधिकारी बन के गया तो इसने वहां इस जाति को मंदिरों के निर्माण करने से प्रतिबंधित कर दिया, गैरकानूनी घोषित कर दिया | नतीजा क्या हुआ कि वो भव्य मंदिरों की परंपरा तो ख़त्म हुई ही साथ ही साथ वो सभी कारीगर बेरोजगार हो गए और हमारी एक भवन निर्माण कला समाप्त हो गयी | वो कानून आज भी है |</span></li>
<li><span style="font-size: small;">उड़ीसा में नहर के माध्यम से खेतों में पानी तब छोड़ा जाता था जब उसकी जरूरत नहीं होती थी और जब जरूरत होती थी यानि गर्मियों में तो उस समय नहरों में पानी नहीं दिया जाता था | आप भारत के पूर्वी इलाकों को देखते होंगे, जिसमे शामिल हैं पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड और उड़ीसा, ये इलाके पिछड़े हुए हैं | कभी आपने सोचा है कि ये इलाके क्यों पिछड़े हुए हैं ? जब कि भारत के 90% Minerals इसी इलाके में होते हैं | ये सब अंग्रेजों की गलत नीतियों की वजह से है और हमारे केंद्र की सरकार ने कभी ये प्रयास नहीं किया कि ऐसा क्यों है | <br />
</span> </li>
<li><span style="font-size: small;">एक कानून के हिसाब से बच्चे को पेट में मारोगे तो Abhortion और पैदा होने पर मारोगे तो हत्या | Abhortion हुआ तो कुछ नहीं लेकिन उसे पैदा होने के बाद मारा तो हत्या का मामला बनेगा | (भारत स्वाभिमान इस भ्रूण हत्या को धारा 302 के तहत लाना चाहता है |) </span></li>
<li><span style="font-size: small;">जेल मैनुअल के अनुसार आपको पुरे कपडे उतारने पड़ेंगे आपकी बॉडी मार्क दिखाने के लिए भले ही आपका बॉडी मार्क आपके चेहरे पर क्यों न हो | क्योंकि कपडे उतरवाने के पीछे का मकसद ये था कि आपका (मतलब भारत के लोगों का) कदम-कदम पर अपमान किया जाये, नीचा दिखाया जाये | और जेल के कैदियों को अल्युमिनियम के बर्तन में खाना दिया जाता था ताकि वो जल्दी मरे, वो अल्युमिनियम के बर्तन में खाना देना आज भी जारी हैं हमारे जेलों में, क्योंकि वो अंग्रेजों के इस कानून में है | </span></li>
<li><span style="font-size: small;">अंग्रेजों ने सेना के लिए कानून बनाया था | इसके सैनिकों को मूंछ (mustache) रखने पर अतिरिक्त भत्ता मिलता था | सेना में आज भी मूंछ रखने पर उसके देख रेख और maintenance के लिए भत्ता मिलता है | <br />
</span> </li>
<li><span style="font-size: small;">आपमें से बहुतों ने क़ुतुब मीनार के पास एक लोहे का स्तम्भ देखा होगा जो सैकड़ों साल से खुले में है लेकिन आज तक उसमे जंग (Rust) नहीं लगा है | ये स्टील बनाने की जो कला थी वो हमारे देश के आदिवासियों के पास थी जो कि आज के झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और ओड़िसा के इलाकों में रहते थे और वो कच्चा लोहा वहीं के खदानों से निकाल के लाते थे और इस तरीके के उन्नत किस्म का लोहा बनाते थे | आज दुनिया में इतनी उच्च तकनीक होने के बावजूद ऐसा लोहा कोई देश नहीं बना पाया है जिस पर जंग न लगे | तो अंग्रेजों ने इस तकनीक को बर्बाद करने के लिए एक कानून बनाया कि कोई भी आदिवासी खदानों से कच्चे लोहे नहीं निकालेगा, और कोई ऐसा करते हुए पकड़ा गया तो उसे 40 कोड़े पड़ेंगे और अगर फिर भी बच गया तो उसको गोली मार दी जाएगी | इस तरह से ये तकनीक इस देश में अंग्रेजों ने ख़त्म की | और वो कानून आज भी चल रहा है और ध्यान दीजियेगा कि इन्ही इलाकों में माओवाद और नक्सलवाद चल रहा है |</span></li>
</ul><span style="font-size: small;">अजीब अजीब कानून है इस देश में | आप ध्यान देंगे कि अंग्रेजों ने जो भी कानून बनाया था उससे वे भारत के अर्थव्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था को ख़त्म करना चाहते थे और ख़त्म भी किया था, मैं कहना ये चाहता हूँ कि अंग्रेजों ने जो भी कानून बनाये थे वो अपने फायदे और हमारे नुकसान के लिए था और हमें आजादी के बाद इसे ख़त्म कर देना चाहिए था लेकिन अंग्रेजों के गुलामी की एक भी निशानी को हमने 64 सालों में मिटाया नहीं | सब को संभाल के और सहेज के रखा है और हर साल अपने को मुर्ख बनाने के लिए 15 अगस्त और 26 जनवरी को झंडा फहराते है, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मनाते हैं | स्वतंत्रता का मतलब होता है अपना तंत्र/अपनी व्यवस्था | ये स्वतंत्रता है या परतंत्रता ? हमने अपना कौन सा तंत्र विकसित किया है इन 64 सालों में ? सब तो अंग्रेजों का ही है | अगर झंडा फहराना ही स्वतंत्रता है तो भीकाजी कामा ने बहुत पहले तिरंगा फहरा दिया था तो क्या हम आजाद हो गए थे | स्वतंत्रता का मतलब है अपनी व्यवस्था जिसमे आप गुलामी की एक एक निशानी को, एक एक व्यवस्था को उखाड़ फेंकते हैं, उन सब चीजों को अपने समाज से हटाते हैं जिससे गुलामी आयी थी, वो तो हम नहीं कर पाए हैं, इसलिए मैं मानता हूँ कि आजादी अधूरी है, इस अधूरी आजादी को पूर्ण आजादी में बदलना है, अपनी व्यवस्था लानी है, स्वराज्य लाना है, इसके लिए आपको और हमको ही आगे आना होगा | गुलामी के कानूनों को ही अगर हमारी संसद आगे बढाती जाये और चलाती जाये इसके लिए संसद नहीं बनाई हमने और इसके लिए चुनाव नहीं होते और करोडो रूपये खर्च नहीं किये जाते | हमने हमारी अपनी व्यवस्थाओं को चलाने के लिए संसद बनाई है | ये जो गुलामी की व्यवस्था आजादी के 64 साल बाद भी चल रही है तो उसे तो ख़त्म करना ही पड़ेगा | आज नहीं तो कल किसी को तो ये सवाल करना ही होगा | भारत की राजनितिक पार्टियाँ ये सवाल नहीं उठाती है, ये मंदिर-मस्जिद के सवाल उठाती हैं और हमको उसी में उलझाये रखती है, इन कानूनों को जो गुलामी की निशानी है उनका सवाल नहीं उठती हैं | समाज को बाँट देने वाले जितने प्रश्न है वो ये उठाती हैं लेकिन गुलामी वाले कानूनों के सवाल नहीं उठाती हैं | <br />
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यकीन मानिये हमारे देश की आजादी की लड़ाई के समय जितने भी देशभक्त शहीद हुए, जैसे खुदीराम बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, वीर सावरकर, सुभाष चन्द्र बोस, उधम सिंह आदि आदि, ये तो कुछ नाम हैं ऐसे 7 लाख से ऊपर देशभक्त थे, उन सब की आत्मा आज भी भटक रही होगी, और वो आपस में एक दुसरे से यही सवाल कर रहे होंगे कि हम कितने मुर्ख थे जो ऐसे देश के लिए जान दिए | या तो वो मुर्ख थे या फिर हम महामूर्ख हैं जो इन सब व्यवस्थाओं को सहेज के और संभाल के रखे हुए हैं | <br />
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हमारे सारे दुखों का कारण ये व्यवस्था है जब हम इस व्यवस्था को हटायेंगे तभी हमें सुख की प्राप्ति होगी | जिस देश में धर्मग्रन्थ गीता की रचना हुई और जिसमे कर्म करने को कहा गया और कर्म की प्रधानता बताई गयी, उसी देश के लोग भाग्यवादी हो गए | भाग्य के भरोसे बैठने से कुछ नहीं होगा, उठिए, जागिये और इस व्यवस्था को बदलिए क्योंकि दुःख हमें है नेताओं को नहीं | <br />
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</span><span style="border-collapse: separate; font-family: 'Times New Roman'; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; word-spacing: 0px;"><span style="font-family: arial; line-height: 25px;"><span style="font-size: small;"><b>जय हिंद<span> </span><br />
राजीव दीक्षित</b><span> </span></span></span></span></div>Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-58984126858487880312012-08-23T03:47:00.000-07:002012-08-23T03:47:08.014-07:00हिंदी का दुर्भाग्य या कहें भारत का दुर्भाग्य <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: small;"><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">मैंने यहाँ हिंदी का दुर्भाग्य लिखा है लेकिन आप इसे भारत की कोई भी प्रादेशिक भाषा भी पढ़ सकते हैं जैसे मराठी, गुजराती, बंगाली, ओडिया, तेलगु, तमिल, मलयालम, कन्नड़, आदि आदि | चलिए आगे बढ़ता हूँ ..........</span></span></span><br />
<div style="margin-bottom: 12pt; margin-right: 0cm; margin-top: 0cm;"><span style="font-size: small;"><span style="font-family: Arial;"><b style="color: red;">हिंदी का </b><b style="color: red;">दुर्भाग्य या कहें भारत का दुर्भाग्य </b></span></span><span style="font-size: small;"><span style="font-family: Arial;"><br />
</span></span></div><div style="margin-bottom: 12pt; margin-right: 0cm; margin-top: 0cm;"><span style="font-size: small;"><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">भारत</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">की</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">जो</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">तथाकथित</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">आज़ादी</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">है</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">वो</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">एक</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> agreement </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">के</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">तहत</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;">/</span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">अन्तर्गत</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">है</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;">, </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">वो</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> agreement </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">है</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> Transfer of power agreement (</span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">सत्ता</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">के</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">हस्तांतरण</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">की</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">संधि</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;">) | </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">भारत</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">में</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">जो</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">कुछ</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">भी</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">आप</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">देख</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">रहे</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">हैं</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">वो</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">सब</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">इसी</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> agreement </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">के</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">शर्तों</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">के</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">हिसाब</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">से</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">चल</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">रहा</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">है</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> | </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">और</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">आज</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">अगर</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">ब्रिटेन</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">इस</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">संधि</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">को</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">नकार</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">दे</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">तो</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">भारत</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">फिर</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">से</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">गुलाम</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">हो</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">जायेगा</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;">, </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">ये</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">मजाक</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">की </span></span><span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">बात</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">मैं</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">नहीं</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">कर</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">रहा</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">हूँ</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;">, </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">इस</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">मसले</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">पर</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">बड़े</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">बड़े</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">वकील</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">चुप</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">हो</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">जाते</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">हैं</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">और</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">कहते</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">हैं</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">की </span></span><span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">हो</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">सकता</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">है</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> | </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">खैर</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;">, </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">भारत</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">का</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">दुर्भाग्य</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">ये</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">रहा</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">कि</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">भारत</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">के</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">पहले</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">प्रधानमंत्री</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">जवाहर</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">लाल</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">नेहरु</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">बन</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">गए</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> या कहें अंग्रेजों द्वारा स्थापित किये गए प्रधानमंत्री थे वो | </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">मैं</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">आप</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">लोगों</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">को</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">एक</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">सच्ची</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">घटना</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">बताता</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">हूँ</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> .....</span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">ब्रिटेन</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">की</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">संसद</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">जिसे</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> House of Commons </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">कहा</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">जाता</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">है</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;">, </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">वहां</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">भारत</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">की</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">आज़ादी</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> <span></span>- </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"></span>स्वतंत्रता <span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">को</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">लेकर</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">जब</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">विचार</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">विमर्श</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">हो</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">रहा</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">था</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">तो</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">एक</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">मेम्बर</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">ने</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">कहा</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">कि</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">नेहरु</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">को</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">क्यों</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">चुना</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">जा</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">रहा</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">है</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">प्रधानमंत्री</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">के</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">तौर</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">पर</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;">, </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">तो</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">दुसरे</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">ने</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">कहा</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">कि</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">नेहरु</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">देखने</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">में</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">तो</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">भारतीय</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">है</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">लेकिन</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">रहन</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">सहन</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">और</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">सोच</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">में</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">बिलकुल</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">हम</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">जैसा</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">है</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> | </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"></span>इस <span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">वाकये का सारा दस्तावेज इंग्लैंड के <span>संसद</span> </span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;">House of Commons </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">की</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> library </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">में</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"></span><span></span><span style="font-family: Mangal;"></span><span></span><span style="font-family: Mangal;"></span><span></span><span style="font-family: Mangal;"></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">उपलब्ध</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">है</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> | </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">और</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">ये</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">जो</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">अंग्रेजी</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">है</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">वो</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">उसी</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> Transfer of power agreement (</span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">सत्ता</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">के</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">हस्तांतरण</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">की</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">संधि</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;">) </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">के</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">तहत</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">हमारे</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">ऊपर</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">थोपी</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">गयी</span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> | </span>अंग्रेजी हटाना और हिंदी को स्थापित करना भारत में मुश्किल लग रहा है |</span></span> मैं यहाँ कुछ तथ्य आप सब के सामने रखता हूँ कि क्यों इस देश से अंग्रेजी हटाना मुश्किल है |<br />
<b style="color: red;">भारत में अंग्रेजी का इतिहास </b><br />
भारत में जहाँगीर के समय पहली बार अँगरेज़ भारत में आये और व्यापार के नाम पर उन्होंने जो कुछ किया वो सब को मालूम है | उस समय भारत में <span>565</span> रजवाड़े हुआ करते थे और अंग्रेजों ने उन सभी राज्यों से अंग्रेजी में <span>agreement</span> कर के उस सभी का राज्य एक एक कर के हड़प लिया | क्योंकि अँगरेज़ जो agreement करते थे वो अंग्रेजी में होता था और सभी agreement के अंत में एक ऐसी बात होती थी जिसकी वजह से सब के सब राज्य अंग्रेजो के हो गए (वो agreement के बारे में मैं यहाँ कुछ विशेष नहीं लिखूंगा) | हमारे यहाँ जो राजा थे उन लोगों को अंग्रेजी नहीं आती थी, जो क़ि स्वाभाविक था, इस लिए वो इन संधियों के मकडजाल में फंस गए लेकिन आजादी के बाद वाले नेताओं को तो अच्छी अंग्रेजी आती थी वो कैसे फंस गए ? जब हमें आज़ादी मिली तो हमारे देश में सब कुछ बदल जाना चाहिए था लेकिन सत्ता जिन लोगों के हाथ में आयी वो भारत को इंग्लैंड की तरह बनाना चाहते थे | आज़ादी की लड़ाई के समय सभी दौर के क्रांतिकारियों का एक विचार था कि भारत अंग्रेज़ और अंग्रेजी दोनों से आज़ाद हो और राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी स्थापित हो | जून 1946 में महात्मा गाँधी ने कहा था कि आज़ादी मिलने के 6 महीने के बाद पुरे देश की भाषा हिंदी हो जाएगी और सरकार के सारे काम काज की भाषा हिंदी हो जाएगी | संसद और विधानसभाओं की भाषा हिंदी हो जाएगी | और गाँधी जी ने घोषणा कर दी थी कि जो संसद और विधानसभाओं में हिंदी में बात नहीं करेगा तो सबसे पहला आदमी मैं होऊंगा जो उसके खिलाफ आन्दोलन करेगा और उनको जेल भेजवाऊंगा | भारत का कोई सांसद या विधायक अंग्रेजी में बात करे उस से बड़ी शर्म की बात क्या हो सकती है | लेकिन आज़ादी के बाद सत्ता गाँधी जी के परम शिष्यों के हाथ में आयी तो वो बिलकुल उलटी बात करने लगे | वो कहने लगे कि भारत में अंग्रेजी के बिना कोई काम नहीं हो सकता है| भारत में विज्ञान और तकनिकी को आगे बढ़ाना है तो अंग्रेजी के बिना कुछ नहीं हो सकता, भारत का विकास अंग्रेजी के बिना नहीं हो सकता, भारत को विश्व के मानचित्र पर बिना अंग्रेजी के नहीं लाया जा सकता | भारत को यूरोप और अमेरिका बिना अंग्रेजी के नहीं बनाया जा सकता | अंग्रेजी विश्व की भाषा है आदि आदि | गाँधी जी का सपना गाँधी जी के जाने के बाद वहीं ख़तम हो गया | भारत में आज हर कहीं अंग्रेजी का बोलबाला है | भारत की शासन व्यवस्था अंग्रेजी में चलती है, न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी है, दवा अंग्रेजी में होती है, डॉक्टर पुर्जा अंग्रेजी में लिखते हैं, हमारे शीर्ष वैज्ञानिक संस्थानों में अंग्रेजी है, कृषि शोध संस्थानों में अंग्रेजी है | भारत में ऊपर से ले के नीचे के स्तर पर सिर्फ अंग्रेजी, अंग्रेजी और अंग्रेजी है | <br />
<b style="color: red;">भारत का संविधान (अंग्रेजी के सम्बन्ध में ) </b><br />
<span>26</span> जनवरी 1950 को जो संविधान इस देश में लागू हुआ उसका एक अनुच्छेद है <span>343</span> | इस अनुच्छेद 343 में लिखा गया है कि अगले 15 वर्षों तक अंग्रेजी इस देश में संघ (<span>Union</span>) सरकार की भाषा रहेगी और राज्य सरकारें चाहे तो ऐसा कर सकती हैं | 15 वर्ष पूरा होने पर यानि 1965 से अंग्रेजी को हटाने की बात की जाएगी | एक संसदीय समिति बनाई जाएगी जो अपना विचार देगी अंग्रेजी के बारे में और फिर राष्ट्रपति के अनुशंसा के बाद एक विधेयक बनेगा और फिर इस देश से अंग्रेजी को हटा दिया जायेगा और उसके स्थान पर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ को स्थापित किया जायेगा | ये जो बात है वो अनुच्छेद 343 के पहले पैरा ग्राफ में हैं लेकिन उसी अनुच्छेद के तीसरे पैरा ग्राफ में लिखा गया है कि भारत के विभिन्न राज्यों में से किसी ने भी हिंदी का विरोध किया तो फिर अंग्रेजी को नहीं हटाया जायेगा | फिर उसके आगे अनुच्छेद 348 में लिखा गया है कि भारत में भले ही आम बोलचाल कि भाषा हिंदी रहे लेकिन Supreme Court में, High Court में अंग्रेजी ही प्रमाणिक भाषा रहेगी | <br />
1955 में एक समिति बनाई गयी सरकार द्वारा, उस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कह दिया कि देश में अंग्रेजी हटाने का अभी अनुकूल समय नहीं है | 1963 में संसद में हिंदी को लेकर बहस हुई कि अंग्रेजी हटाया जाये और हिंदी लाया जाये | 1965 में 15 वर्ष पुरे होने पर राष्ट्रभाषा हिंदी बनाने की बात हुई तो दक्षिण में दंगे शुरू हो गए और यहाँ मैं बताता चलूँ कि भारत सरकार के ख़ुफ़िया विभाग कि ये रिपोर्ट है कि वो दंगे प्रायोजित थे सरकार की तरफ से | ये उन नेताओं द्वारा करवाया गया था जो नहीं चाहते थे कि अंग्रेजी को हटाया जाये | </span><span style="font-size: small;"><span style="font-family: Mangal;"></span><span></span><span style="font-family: Mangal;"></span><span></span><span style="font-family: Mangal;"></span><span></span><span style="font-family: Mangal;"></span><span></span><span style="font-family: Mangal;"></span><span></span><span style="font-family: Mangal;">(ये </span><span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">ठीक</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">वैसा </span></span><span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">ही</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> था </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">जैसे</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">वन्दे</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">मातरम</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">के</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">सवाल</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">पर</span></span><span></span><span style="font-family: Mangal;"></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">मुसलमानों</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">को</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">गलत</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">सन्देश</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">देकर</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">भड़काया</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">गया</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">था</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;">) </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"></span></span><span style="font-family: Arial; font-size: small;"><span style="font-family: Times New Roman;"><span></span></span></span><span style="font-size: small;"> तो यहाँ केंद्र सरकार को मौका मिल गया और उसने कहना शुरू किया कि हिंदी की वजह से दंगे हो रहे हैं तो अंग्रेजी को नहीं हटाया जायेगा | इस बात को लेकर 1967 में एक विधेयक पास कर दिया गया | इतना ही नहीं 1968 में उस विधेयक में एक संसोधन कर दिया गया जिसमे कहा गया कि भारत के जितने भी राज्य हैं उनमे से एक भी राज्य अगर अंग्रेजी का समर्थन करेगा तो भारत में अंग्रेजी ही लागू रहेगी, और आपकी जानकारी के लिए मैं यहाँ बता दूँ क़ि भारत में एक राज्य है नागालैंड वहां अंग्रेजी को राजकीय भाषा घोषित कर दिया गया है | </span><span style="font-size: small;"><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">ये जो गन्दी राजनीति इस देश में आप देख रहे हैं वो </span></span><span></span><span style="font-family: Mangal;"></span><span></span><span style="font-family: Mangal;"></span><span></span><span style="font-family: Mangal;"></span><span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">अभी</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">गन्दी</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">नहीं</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">हुई</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">है</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">ये</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">अंग्रेजों</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">से</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">अनुवांशिक</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">तौर</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">पर</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">हमारे</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">नेताओं</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">ने</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">ग्रहण</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">किया</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">था</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">और</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">वो</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">आज</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">भी</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">चल</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">रहा</span></span><span><span style="font-family: Arial;"><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span></span><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Arial;">है</span></span></span><span style="font-family: Arial; font-size: small;"><span style="font-family: Times New Roman;"><span> | </span></span></span><span style="font-size: small;">अभी तो ये बिलकुल असंभव लग रहा है कि हम अंग्रेजी को इस देश से हटा सकें | इसके लिए सत्ता नहीं व्यवस्था परिवर्तन की जरूरत है | <br />
</span></div><div style="margin-bottom: 12pt; margin-right: 0cm; margin-top: 0cm;"><span style="font-size: small;"><br />
मौलिकता आती है मातृभाषा से आप खुद के ऊपर प्रयोग कर के देखिएगा | अंग्रेजी या विदेशी भाषा में हम केवल Copy Pasting कर सकते है | और मातृभाषा छोड़ के हम अंग्रेजी के पीछे पड़े हैं तो मैं आपको बता दूँ क़ि अंग्रेजी में हमें छः गुना ज्यादा मेहनत लगता है | हम लोगों ने बचपन में पहाडा याद किया था गणित में आपने भी </span><span style="font-size: small;">किया</span><span style="font-size: small;"> होगा और मुझे विश्वास है क़ि वो आपको आज भी याद होगा लेकिन हमारे बच्चे क्या पढ़ रहे हैं आज भारत में वो पहाडा नहीं टेबल याद कर रहे हैं | और मैं आपको ये बता दूँ क़ि इनका जो टेबल है वो कभी भी इनके लिए फायदेमंद नहीं हो सकता | जो पढाई हम B.Tech या MBBS की करते हैं अगर वो हमारी मातृभाषा में हो जाये तो हमारे यहाँ विद्यार्थियों को छः गुना कम समय लगेगा मतलब M .Tech </span><span style="font-size: small;">तक </span><span style="font-size: small;">की पढाई हम 4 साल तक पूरा कर लेंगे और वैसे ही </span><span style="font-size: small;">MBBS </span><span style="font-size: small;">में भी हमें आधा वक़्त लगेगा | इस विदेशी भाषा से हम हमेशा पिछलग्गू ही बन के रहेंगे | दुनिया का इतिहास उठा के आप देख लीजिये, वही देश दुनिया में विकसित हैं जिन्होंने अपनी मातृभाषा का उपयोग अपने पढाई लिखाई में किया | </span></div><div style="margin-bottom: 12pt; margin-right: 0cm; margin-top: 0cm;"><span style="font-size: small;"><b style="color: red;">कुछ और तथ्य</b></span></div><ul type="disc"><span style="font-family: Arial; font-size: small;"><span style="font-family: Arial;">
<li style="margin: 0cm 0cm 0pt;"><span style="font-family: Mangal;">भारत</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">में</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">जो</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">राज्यों</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">का</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">बटवारा</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">भाषा</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">के</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">हिसाब</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">से</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">हुआ</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">वो</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">गलत</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">था</span><span style="font-family: Times New Roman;"><span> | </span><span></span></span> </li>
<li style="margin: 0cm 0cm 0pt;"><span style="font-family: Mangal;">भारत</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">क़ी</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">तरह</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">पाकिस्तान</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">में</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">भी</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">कई</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">भाषाएँ</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">हैं</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">और</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">वहां</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">पंजाबी</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">सबसे</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">लोकप्रिय</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">भाषा</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">है</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> | </span></span><span style="font-family: Mangal;">इसके</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">अलावा</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">वहां</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">पश्तो</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">है</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> , </span></span><span style="font-family: Mangal;">सिन्धी</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">है</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> , </span></span><span style="font-family: Mangal;">बलूच</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">है</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">लेकिन</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">उर्दू</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">मुख्य</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">जोड़ने</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">वाली</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">भाषा</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">है</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> | </span></span><span style="font-family: Mangal;">ये</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">जो</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">इच्छा</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">शक्ति</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">पाकिस्तान</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">ने</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">दिखाई</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">थी</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">वो</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">भारत</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">के</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">नेताओं</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">ने</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">नहीं</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">दिखाया</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;"></span><span style="font-family: Mangal;"></span><span style="font-family: Times New Roman;"><span> | </span><span></span></span> </li>
<li style="margin: 0cm 0cm 0pt;"><span style="font-family: Mangal;">आज़ादी</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">के</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">पहले</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">भारत</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">में</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">जो</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> collector </span></span><span style="font-family: Mangal;">हुआ</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">करते</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">थे</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">उनकी</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">पोस्टिंग</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">किसी</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">जिले</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">में</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">इसी</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">आधार</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">पर</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">होती</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">थी</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">क़ि </span><span></span><span style="font-family: Mangal;">वो</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> वहां की भाषा </span></span><span style="font-family: Mangal;"></span><span></span><span style="font-family: Mangal;">जानते</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">हैं</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">क़ी</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">नहीं</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> | </span></span><span style="font-family: Mangal;">लेकिन</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">अब</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">इस</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">देश</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">में</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">ऐसा</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">कोई</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">नियम</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">नहीं</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">है</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> | </span></span><span style="font-family: Mangal;">आपको</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">कोई</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">भाषा</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">आती</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">हो</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">या</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">नहीं</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">आती</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">है</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">अंग्रेजी</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">आनी</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">चाहिए</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">किसी</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">जिले</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">का</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> collector </span></span><span style="font-family: Mangal;">बनने</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">के</span><span><span style="font-family: Times New Roman;"> </span></span><span style="font-family: Mangal;">लिए</span><span style="font-family: Times New Roman;"><span> |</span></span></li>
</span></span></ul><div style="margin-bottom: 12pt; margin-right: 0cm; margin-top: 0cm;"><span style="font-size: small;"><b style="color: red;">अंग्रेजी को ले के लोगों में भ्रांतियां </b><br />
अंग्रेजी को ले के लोगों के मन में तरह तरह कि भ्रांतियां हैं मसलन </span></div><ul><li><span style="font-size: small;">अंग्रेजी विश्व भाषा है </span></li>
<li><span style="font-size: small;">अंग्रेजी सबसे समृद्ध भाषा है </span></li>
<li><span style="font-size: small;">अंग्रेजी विज्ञान और तकनीकी कि भाषा है </span></li>
</ul><span style="font-size: small;"><b style="color: red;">क्या वाकई अंग्रेजी विश्व भाषा है ?</b> पूरी दुनिया में लगभग 200 देश हैं और उसमे सिर्फ 11 देशों में अंग्रेजी है यानि दुनिया का लगभग 5 % | अब बताइए कि ये विश्व भाषा कैसे है? अगर आबादी के हिसाब से देखा जाये तो सिर्फ 4 % लोग पुरे विश्व में अंग्रेजी जानते और बोलते हैं | विश्व में सबसे ज्यादा भाषा जो बोली जाती है वो है मंदारिन (Chinese) और दुसरे स्थान पर है हिंदी और तीसरे स्थान पर है रुसी (Russian) और फिर स्पनिश इत्यादि लेकिन अंग्रेजी टॉप 10 में नहीं है | अरे UNO जो कि अमेरिका में है वहां भी काम काज की भाषा अंग्रेजी नहीं है बल्कि फ्रेंच में काम होता है वहां | <br />
<b style="color: red;">क्या वाकई अंग्रेजी समृद्ध भाषा है ?</b> किसी भी भाषा की समृद्धि उसमे मौजूद शब्दों से मानी जाती है | अंग्रेजी में मूल शब्दों की संख्या मात्र 65,000 है | वो शब्दकोष (dictionary) में जो आप शब्द देखते हैं वो दूसरी भाषाओँ से उधार लिए गए शब्द हैं | हमारे बिहार में भोजपुरी, मैथिली और मगही के शब्दों को ही मिला दे तो अकेले इनके शब्दों की संख्या 60 लाख है| शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है | इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे | ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी | अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी | <br />
<b style="color: red;">क्या वाकई अंग्रेजी विज्ञान और तकनीकी की भाषा है ?</b><span style="color: red;"> </span>आप दुनिया में देखेंगे कि सबसे ज्यादा विज्ञानं और तकनिकी की किताबे (Russian ) रुसी भाषा में प्रकाशित हुई हैं और सबसे ज्यादा विज्ञान और तकनीकी में research paper भी Russian में प्रकाशित हुई हैं | मतलब ये हुआ कि विज्ञान और तकनीकी की भाषा Russian है न कि अंग्रेजी | दर्शन शास्त्र में सबसे ज्यादा किताबें छपी हैं वो German में हैं | मार्क्स और कांट एक दो उदहारण हैं | चित्रकारी , भवन निर्माण, कला और संगीत कि सबसे ज्यादा किताबें हैं वो French में हैं | अंग्रेजी में विज्ञान और तकनीकी पर सबसे कम शोध हुए हैं | जितने अविष्कार अंग्रेजों के नाम से दुनिया जानती है उसमे आधे से ज्यादा दुसरे देशों के लोगों का अविष्कार है जिसे अंग्रेजों ने अपने नाम से प्रकाशित कर दिया था | अब इन्टरनेट के ज़माने में सब बातों की सच्चाई सामने आ रही है धीरे धीरे | <br />
<b><span style="color: red;"><br />
सारांश ये है कि अगर आपमें व्यवस्था परिवर्तन की हिम्मत है तो आप हिंदी ला सकते हैं अन्यथा बस चुपचाप देखते रहिये और अपने काम में लगे रहिये | कुछ नहीं होने वाला | विश्व में दूसरी सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा होने के बावजूद हिंदी लौंडी ही बन के रहने के लिए बाध्य है अपने ही देश में | </span><br />
</b>इतने लम्बे पत्र को आपने धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए आपका धन्यवाद् | और अच्छा लगा हो तो इसे फॉरवर्ड कीजिये, आप अगर और भारतीय भाषाएँ जानते हों तो इसे उस भाषा में अनुवादित कीजिये (अंग्रेजी छोड़ कर), अपने अपने ब्लॉग पर डालिए, मेरा नाम हटाइए अपना नाम डालिए मुझे कोई आपत्ति नहीं है | मतलब बस इतना ही है की ज्ञान का प्रवाह होते रहने दीजिये | <br />
<b>जय हिंद <br />
राजीव दीक्षित </b></span></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-23227330764860070772012-08-23T03:44:00.000-07:002012-08-23T03:44:49.135-07:00वैश्वीकरण और भारत (Globalisation and Bharat)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: small;">मैं स्पष्ट कर दूँ कि मैं अर्थशास्त्र का विद्यार्थी कभी नहीं रहा लेकिन एक आम आदमी के तौर पर इस वैश्वीकरण के बारे में मेरी जो समझ बनी है उसे आपको बताने की कोशिश करूँगा | भाषा आसान रहेगी ताकि किसी को समझने में परेशानी न हो | एक बात और कि इस लेख में जो आंकड़े हैं वो 1991 से लेकर 1997 तक के हैं, ऐसा इसलिए है कि इसी दौर में सबसे ज्यादा हल्ला मचाया गया था इस Globalisation /वैश्वीकरण का |<br />
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1991 के वर्ष से इस देश में Globalisation शुरू हुआ और इसका बहुत शोर भी मचाया गया | भारत से पहले साउथ ईस्ट एशिया में ये उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण (Globalisation, Liberalization, Privatization ) आदि शुरू किया गया था, उसके पहले ये उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण लैटिन अमेरिका और सोवियत संघ में भी शुरू किया गया था | ये उदारीकरण/ वैश्वीकरण का जो पॅकेज या प्रेस्क्रिप्सन है वो अगर कोई देश अपने अंतर्ज्ञान से तैयार करें तो बात समझ में आती है लेकिन ये पॅकेज dictated होता है वर्ल्ड बैंक और IMF द्वारा | मुझे कभी-कभी हँसी आती है कि 1991 के पहले हम ग्लोबल नहीं थे और 1991 के बाद हम ग्लोबल हो गए | खैर, ये जो वर्ल्ड बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का प्रेस्क्रिसन होता है वो हर तरह के मरीज (देश) के लिए एक ही होता है | उनके प्रेस्क्रिप्सन में सब मरीजों के लिए समान इलाज होता है, जैसे....</span> <span style="font-size: small;"><br />
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<ul><li><span style="font-size: small;">पहले वो कहते हैं कि आप अपने मुद्रा का अवमूल्यन कीजिये |</span></li>
<li><span style="font-size: small;">उसके बाद कहते हैं कि इम्पोर्ट ड्यूटी ख़त्म कीजिये |</span></li>
<li><span style="font-size: small;">उसके बाद कहते हैं कि Social Expenditure कम करते-करते इसको ख़त्म कीजिये, क्योंकि उनका कहना है कि सरकार को Social Expenditure से कोई मतलब नहीं होता है |</span></li>
</ul><span style="font-size: small;">उसके बाद विदेशी पूंजी निवेशकों के लिए दरवाजा खोल दिया गया | उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण के कुछ तर्क हैं, जैसे .......<br />
</span> <ul><li><span style="font-size: small;">पहला तर्क है कि भारत को पूंजी की बहुत जरूरत है और जब तक विदेशी पूंजी निवेश नहीं होगा, FDI (Foreign Direct Investment) नहीं आएगा तो देश का भला नहीं होगा |</span></li>
<li><span style="font-size: small;">इस देश में तकनीक की बहुत कमी है और वो तभी आएगा जब आप अपना दरवाजा विदेशी पूंजी निवेश के लिए खोलेंगे |</span></li>
<li><span style="font-size: small;">आपके देश का एक्सपोर्ट कम है, जब तक आप बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नहीं बुलाएँगे तब तक आपका निर्यात नहीं बढेगा |</span></li>
<li><span style="font-size: small;">आप उनको खुल कर खेलने की छुट दीजिये, उनपर कोई पाबन्दी मत लगाइए |</span></li>
<li><span style="font-size: small;">यहाँ भारत में बहुत बेरोजगारी है, विदेशी कंपनियां आएँगी तो वो यहाँ रोजगार पैदा करेंगी, वगैरह, वगैरह |</span></li>
</ul><span style="font-size: small;">अब मैं इस अवधि में पूंजी निवेश के आंकड़ों के ऊपर आता हूँ, 1991 से लेकर जून 1997 तक कितना विदेशी पूंजी निवेश हुआ भारत में ? जब ये प्रश्न किया गया लोकसभा में तो इस प्रश्न के जवाब में लोकसभा में सरकार का कहना था कि हमने जो विभिन्न MoU sign किये हैं इस अवधि में वो 94 हजार करोड़ का है | ये जवाब बहुत भ्रामक था, तो फिर इस प्रश्न को थोडा specific बना के पूछा गया कि Actual inflow कितना है इस अवधि में ? MoU तो आपने sign किये 94 हजार करोड़ के, लेकिन असल पूंजी आयी कितनी है ? तो पता चला कि उन्नीस हजार सात सौ करोड़ का असल निवेश हुआ है और ये डाटा रूपये में हैं न कि डौलर में | और ये मेरा जवाब नहीं है, वित्त मंत्री का लोकसभा में दिया हुआ जवाब है ये | और ये पूंजी आयी कितने सालों में है, तो 1991 से 1997 के बीच में, मतलब छः सालों में | मतलब इतना हल्ला मचाने के बाद आया क्या तो उन्नीस हजार सात सौ करोड़ | यानि प्रति वर्ष लगभग तीन, सवा तीन हजार करोड़ रुपया आया | और जो निवेश हुआ उसमे ज्यादा कैपिटल मार्केट में हुआ निवेश था, ये Financial capital से किसी देश में उत्पादकता नहीं बढ़ता, Financial capital से किसी देश में कारखाने नहीं खुलते, Financial capital से किसी देश में उत्पादन नहीं बढ़ता, Financial capital से कोई रोजगार पैदा नहीं होता, Financial capital से कभी अर्थव्यवस्था में कोई असर नहीं पड़ता | Financial capital तो आता है शेयर मार्केट में शेयरों का दाम बढ़ाने के लिए | और शेयर मार्केट में जो निवेश होता है वो स्थाई नहीं होता है, आज वो भारत में है, कल उसे पाकिस्तान में फायदा दिखेगा तो वहां चला जायेगा, परसों सिंगापूर चला जायेगा | <br />
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और इसी दौरान हमारे देश के लोगों का बचत कितना था तो वित्त मंत्री का ही कहना था कि हमारे GDP का 24% बचत है भारत के लोगों के द्वारा | मतलब, लगभग 2 लाख करोड़ रुपया बचत था हमारा प्रतिवर्ष जब हमारी GDP 8 लाख करोड़ रूपये की थी | जिस देश की नेट सेविंग इतनी ज्यादा हो उस देश को विदेशी पूंजी निवेश की जरूरत क्या है ? मतलब हम हर साल 2 लाख करोड़ रूपये बचत करते थे उस अवधि में घरेलु बचत के रूप में, और छः साल में आया मात्र 20 हजार करोड़ रुपया या हर साल तीन, सवा तीन हजार करोड़ रूपये और ढोल पीट-पीट कर हल्ला हो रहा था कि देश में उदारीकरण हो रहा है, वैश्वीकरण हो रहा है | किसको बेवकूफ बना रहे हैं आप |</span> <span style="font-size: small;"><br />
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विदेशी पूँजी आती है तो वो आपके फायदे के लिए नहीं आती है वो उनके फायदे के लिए आती है और दुनिया में कोई देश ऐसा नहीं है जो आपके फायदे के लिए अपनी पूँजी आपके देश में लगाये | एक तो सच्चाई ये है कि 1980 से यूरोपियन और अमरीकी बाजार में भयंकर मंदी है और जितना मैं अर्थशास्त्र जानता हूँ उसके अनुसार उनको पूँजी की जरूरत है, अपनी मंदी दूर करने के लिए ना कि वो यहाँ पूँजी ले कर आयेंगे | ये छोटी सी बात समझ में आनी चाहिए और अमेरिका और यूरोप वाले इतने दयावान और साधू-महात्मा नहीं हो गए कि अपना घाटा सह कर भारत का भला करने आयेंगे | इतने भले वो ना थे और ना भविष्य में होंगे | और दुसरे हिस्से की बात कीजिये, मतलब 1991 -1997 तक विदेशी पूंजी आयी 20 हजार करोड़ लेकिन इसी अवधि में हमारे यहाँ से कितनी पूंजी चली गयी विदेश ? तो पता चला कि इसी अवधि में हमारे यहाँ से 34 हजार करोड़ रूपये विदेश चले गए | 20 हजार करोड़ रुपया आया और 34 हजार करोड़ रुपया चला गया तो ये बताइए कि कौन किसको पूंजी दे रहा है |<br />
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दुनिया में एक South South Commission है जो गुट निरपेक्ष देशों (NAM) के लिए बनाया गया था 1986 में | और 1986 से 1989 तक डॉक्टर मनमोहन सिंह इस South South Commission के सेक्रेटरी जेनेरल थे | उनकी वेबसाइट पर आज भी मनमोहन सिंह को ही सेक्रेटरी जेनरल बताया जाता है, और भारत के वित्त मंत्री बनने के पहले भारत के तीन-तीन सरकारों के वित्तीय सलाहकार रह चुके थे, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रह चुके थे, दुनिया में उनकी एक अर्थशास्त्री के रूप में खासी इज्ज़त है | जब डॉक्टर मनमोहन सिंह इस South South Commission के सेक्रेटरी जेनरल थे तो इन्होने एक केस स्टडी किया था, उस में उन्होंने दुनिया के 17 गरीब देशों के आंकड़े दिए थे जिसमे भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, म्यांमार, इंडोनेशिया वगैरह शामिल थे | ये अध्ययन इस विषय पर था कि 1986 से 1989 के बीच में इन गरीब देशों में अमीर देशों से कितनी पूंजी आयी है और इन गरीब देशों से अमीर देशों में कितनी पूंजी चली गयी है, तो उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इन 17 देशों में 1986 से 1989 तक 215 Billion Dollars की पूंजी आयी जिसमे FDI ,Foreign Loan , Foreign Assistance और Foreign Aid शामिल है और जो चली गयी वो राशि है 345 Billion Dollars | अब जो आदमी एक अर्थशास्त्री के रूप में अपने केस स्टडी में ये कह रहा है कि विदेशों से पूंजी आती नहीं बल्कि पूंजी यहाँ से चली जाती है और जब इस देश का वित्त मंत्री बनता है तो 180 डिग्री पर घूम के उलटी बात करता है, ये समझ में नहीं आता | ऐसा क्यों हुआ, इसको समझिये ......</span> <span style="font-size: small;"><br />
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मई 1991 में फ्रांस के एक अख़बार La Monde में ये खबर छपी थी कि "हमारे विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि भारत में जो भी सरकार बने मनमोहन सिंह भारत के अगले वित्त मंत्री होंगे" | यहाँ मैं ये स्पष्ट कर दूँ कि उस समय हमारे देश में चुनाव की प्रक्रिया चल रही थी चुनाव संपन्न नहीं हुए थे और राजीव गाँधी जिन्दा थे | ये मनमोहन सिंह, और मोंटेक सिंह अहलुवालिया वर्ल्ड बैंक के बैठाये हुए आदमी थे और अब प्रधानमंत्री कैसे बने हैं आप समझ सकते हैं | आप लोगों को याद होगा कि एक बार मनमोहन सिंह वित्त मंत्री के पोस्ट से इस्तीफा दिए थे लेकिन वो इस्तीफा वर्ल्ड बैंक के दबाव में मंजूर नहीं किया गया था | वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह मात्र एक रुपया और पच्चीस पैसा टोकन मनी के तौर पर लेते थे | अब कौन वित्त मंत्री बनता है, कौन प्रधान मंत्री बनता है इससे मतलब नहीं है, लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि हमारी राजनैतिक संप्रुभता को क्या हो गया है कि अमेरिका, यूरोप और वर्ल्ड बैंक तय कर रहा है कि वित्त मंत्री कौन होगा, प्रधानमंत्री कौन होगा | और जब वर्ल्ड बैंक या अमेरिका अपना आदमी आपके यहाँ बैठायेगा तो काम भी अपने लिए ही करवाएगा और वही मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलुवालिया और उनके बाद चिदंबरम ने किया है | FDI, Foreign Loan, Foreign Assistance और Foreign Aid का खूब हल्ला मचाया गया लेकिन हुआ क्या ? भारत और गरीब हो गया | उस समय मनमोहन सिंह और उनके साथ-साथ भारत के अखबार चिल्ला चिल्ला कर इंडोनेशिया, थाईलैंड और दक्षिण कोरिया को Asian Tigers कहते थे और जब इंडोनेशिया, थाईलैंड और दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था धराशायी हो गयी तो इनकी बोलती बंद हो गयी | और अभी वालमार्ट को लाने का निर्णय कर लिया है तो उसे भी लायेंगे ही, अभी वो रुक गए है तो सिर्फ इसलिए कि पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले है | और इसीलिए ये लोग महंगाई बढ़ने पर इनके दिल में दर्द नहीं होता बल्कि खुश होते हैं, मोंटेक सिंह, मनमोहन सिंह, प्रणव मुख़र्जी और सारे मंत्रिमंडल के बयान पढ़ लीजियेगा |</span> <span style="font-size: small;"><br />
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फिर से मैं उसी वैश्वीकरण पर आता हूँ ........और इसी दौरान जब इस देश में वैश्वीकरण के नाम पर उन्नीस हजार सात सौ करोड़ रूपये का निवेश हुआ, हमारे देश में शेयर मार्केट के माध्यम से 70 हजार करोड़ रूपये की खुले-आम डकैती हो गयी और हमने FIR तक दर्ज नहीं कराई | शेयर मार्केट का वो घोटाला हर्षद मेहता स्कैम के नाम से हम सब भारतीय जाने हैं, लेकिन ये जान लीजिये कि हर्षद मेहता तो महज एक मोहरा था, असल खिलाडी तो अमेरिका का सिटी बैंक था और ये मैं नहीं कह रहा, रामनिवास मिर्धा की अध्यक्षता में गठित Joint Parliamentary Committee का ये कहना था, और रामनिवास मिर्धा कमिटी का कहना था कि जितनी जल्दी हो सके इस देश से सिटी बैंक का बोरिया-बिस्तर समेटिये और इसको भगाइए, लेकिन भारत सरकार की हिम्मत नहीं हुई कि सिटी बैंक पर कोई कार्यवाही करे और सिटी बैंक को छोड़ दिया गया और हमारा 70 हजार करोड़ रुपया डूब गया | </span> <span style="font-size: small;"><br />
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आपने ध्यान दिया होगा या आप अगर याद करेंगे तो पाएंगे कि उस globalization के समय (1991 -1997 ) भारत में कई बदलाव हुए थे जैसे ....</span> <span style="font-size: small;"><br />
</span> <ul><li><span style="font-size: small;">शेयर बाज़ार बहुत तेजी से बढ़ा और बहुत से लोगों ने उस दौर में शेयर में पैसा लगाया था और कुछ लोगों ने पैसा भी बनाया लेकिन ज्यादा मध्य वर्ग के लोग बर्बाद हुए | और market manipulation और media management कैसे किया जाता है ये थोडा सा दिमाग लगायेंगे तो आपको पता लग जायेगा |</span></li>
<li><span style="font-size: small;">Satellite Television Channel आना शुरू हुए, हमारे मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि प्रचार दिखा कर दिमाग में बकवास भरने के लिए और आपको याद होगा कि दूरदर्शन के दिनों में हम बिना ब्रेक के सीरियल और फिल्म देखा करते थे | लुभावने प्रचार दिखा-दिखा कर भारत के लोगों को प्रेरित करने की कोशिश की गयी ताकि हम बचत पर नहीं खरीदारी पर ध्यान दे और ज्यादा से ज्यादा पैसा बाज़ार में आये और वो पैसा विदेशों में जाये |</span></li>
<li><span style="font-size: small;">बैंकों ने बचत पर इंटेरेस्ट रेट कम कर दिया ताकि लोग बैंक में पैसा जमा नहीं कर के खरीदारी करे, पैसा बाज़ार में इन्वेस्ट करें | क़र्ज़ लेने पर इंटेरेस्ट रेट बढ़ा दिया गया |</span></li>
<li><span style="font-size: small;">इसी दौर में कई city developer और builder पैदा हुए जो घर और फ्लैट का सपना दिखा कर लोगों का पैसा बाहर निकालना शुरू किये और अगर पैसा नहीं है तो बैंकों ने होम लोन का सपना दिखाना शुरू किया | </span></li>
<li><span style="font-size: small;">बैंकों के मार्फ़त हाऊसिंग लोन और कार लोन को बढ़ावा दिया गया, ताकि लोग कर्ज लेकर गाड़ी और घर खरीदें | </span></li>
</ul><span style="font-size: small;">इन सब के पीछे एक ही मकसद था कि पैसा ज्यादा से ज्यादा बाहर निकले, बचत की भावना कम हो लेकिन भारतीय संस्कृति ऐसी है जहाँ लोग निवेश भी करते हैं तो बचत करने के बाद | अमेरिका और भारत में ये मूल अंतर है जो समझना होगा | हमारे देश में ऐसे ही एक महात्मा हुए थे जिनका नाम था "चारवाक" और उनका कहना था यावत् जीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्वा घृतं पीबेत, .........अर्थात जब तक जियो सुख से जियो और जरूरत पड़े तो कर्ज लेकर भी घी पियो मतलब मौज मस्ती करो........ और ये भारत का उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण भी हमें यही सिखाता है |<br />
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भारत के बुद्धिजीवियों द्वारा विदेशी निवेश को लेकर भारत में भ्रम फैलाया जाता है, तो मैं आपको बता दूँ कि विदेशी कम्पनियाँ आज भी निवेश नहीं करती है, क्योंकि उनके पास निवेश करने के लिए कुछ भी नहीं है | यूरोप और अमेरिका के बाजारों में 1980 से मंदी चल रही है और ये मंदी इतना जबरदस्त है कि खुद उनको अपनी मंदी दूर करने के लिए पूँजी की जरूरत है | जब कोई कंपनी निवेश करती है तो उनका जो Initial paid -up capital होता है उसका सिर्फ 5% ही वो लेकर आती हैं और बाकी 95% पूँजी वो यहीं के बाजार से उठाती हैं, बैंक लोन के रूप में और अपने शेयर बाजार में उतार कर | इसलिए उनके निवेश पर भरोसा करना दुनिया की सबसे बड़ी बेवकूफी है | एक बात को दिमाग में बैठा लीजिये कि कोई भी देश, विदेशी पूँजी निवेश से विकास नहीं करता चाहे वो जापान हो या चीन | जापान और चीन ने भी अपने घरेलु बचत बढ़ाये थे, तब वो कुछ कर सके | हमारी सालाना घरेलु बचत जब 2 लाख करोड़ की है तो हमें विदेशी पूँजी निवेश की जरूरत कहाँ है ? और उन्होंने 6 -7 सालों में जो 20 हजार करोड़ का निवेश किया उसके बदले में हमने कितना गवाँ दिया इसकी चर्चा ये बुद्धिजीवी कभी नहीं करते |</span> <span style="font-size: small;"><br />
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बुद्धिजीवियों का ये भी तर्क है कि वैश्वीकरण से हमारा निर्यात बढ़ा है और आयात कम हुआ है | उसे भी समझ लीजिये, ऐसा इसलिए दिखता है क्यों कि हमारे रूपये का अवमूल्यन बहुत हो गया है, जब वैश्वीकरण इस देश में शुरू हुआ तो हमारे 17 -18 रूपये में एक डौलर मिलता था और आज 2011 के अंत में ये लगभग 55 रूपये हो गया है | इसको उदाहरण से समझ लीजिये, अभी कुछ महीने पहले एक डौलर की कीमत 44 रूपये थी तो 11 रूपये प्रतिकिलो के हिसाब से हमने 4 किलो प्याज निर्यात किया तो हमें एक डौलर मिला, अब उसी एक डौलर को पाने के लिए आज हमें 11 रूपये प्रति किलो के हिसाब से 5 किलो प्याज देना होगा, जब एक डौलर की कीमत 55 रूपये हो गयी है | समझ रहे हैं आप ? मतलब हमारा volume of export तो बढ़ा लेकिन आया एक ही डौलर, तो नुकसान किसका हो रहा है ? हमारी निर्यात से होने वाली आय ख़त्म होती जा रही है और जितना निर्यात नहीं बढ़ रहा है उससे ज्यादा आयात बढ़ रहा है, नहीं तो हमारा व्यापार घाटा (trade deficit ) इतना क्यों है ? 1991 के बजट में भारत सरकार का 3000 करोड़ का व्यापार घाटा था और 1997 में ये 18000 करोड़ का हो गया | अगर हमारा निर्यात बढ़ रहा है तो फिर ये व्यापार घाटा क्यों है ? विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी कितनी है ये भी जान लीजिये, आंकड़े तो मेरे पास हर वर्ष के हैं, लेकिन मैं उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण के दौर की ही बात करूँगा, 1990 में हमारी विश्व व्यापार में हिस्सेदारी थी 0.05%, 1991 में ये हो गया 0.045%, 1992 में ये हो गया 0.042%, 1993 में ये हो गया 0.041%, 1994 में ये हो गया 0.038% और ये घटते-घटते आज 2011 में लगभग आधा प्रतिशत रह गया है | हमारी कितनी बड़ी हिस्सेदारी है विश्व व्यापार में कि हम निर्यात के पीछे पड़े हैं ? </span> <span style="font-size: small;"><br />
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हमारे यहाँ Export Oriented Growth का मंत्र बुद्धिजीवियों द्वारा जपा जाता है, जब कि हमारे जैसे विकासशील देशों को Export Oriented Growth के चक्कर में पड़ना ही नहीं चाहिए | हमको development oriented growth पर ध्यान देना चाहिए, Growth oriented Export करना होगा, नीतियाँ बदलनी होगी हमें | अभी क्या है कि हम export oriented growth में फंसे हैं | मैं कहना ये चाहता हूँ कि growth oriented export कीजिये, तो इसके लिए पहले उत्पादन बढाइये, मतलब उत्पादन को भारत में इतना surplus कीजिये कि आपके पास निर्यात करने के लिए अलग से बचे, हम तो अपने trade को ख़त्म करते जा रहे हैं, market को ख़त्म करते जा रहे हैं, मतलब trading activity धीरे-धीरे ख़त्म होती जा रही है | आपके पास बचा क्या है निर्यात करने के लिए जो आप निर्यात करेंगे ? <br />
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और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बारे में भ्रम फैलाया जाता है कि उनके आने से बाजार में प्रतियोगिता होती है | सच्चाई ये है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ कभी प्रतियोगिता नहीं करती हैं बल्कि प्रतियोगियों को उखाड़ फेंकती हैं | पेप्सी और कोका कोला को देखिये, इनके आने के पहले भारत में थम्स-अप, कैम्पा कोला, गोल्ड स्पोट, लिम्का, आदि ब्रांड थे लेकिन पेप्सी और कोका कोला के आने के बाद या तो इन्होने इनका अपने में विलय कर लिया या ये बंद हो गयी | ऐसे अलग-अलग क्षेत्रों में कई उदहारण हैं | तो ये भ्रम दिमाग से निकालना होगा, उनके आने से competition नहीं monopoly होती है |</span> <span style="font-size: small;"><br />
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ये उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण हो रहा है तो किसको ध्यान में रखकर तो जवाब है बहुराष्ट्रीय कंपनियों को ध्यान में रखकर, देश की आबादी के 70 प्रतिशत किसानों को ध्यान में रखकर ये होता तो समझ में भी आता | भारत का किसान अपना गेंहू और कपास लेकर एक प्रदेश से दुसरे प्रदेश में बेंच नहीं सकता लेकिन अमेरिका की कारगिल कंपनी उसी गेंहू को भारत के किसी भी गाँव में बेच देगी क्योंकि उसे अधिकार मिला हुआ है | पहले हमें अपने देश के अन्दर Liberalization करना होगा | पहले हमें घरेलु या आतंरिक उदारीकरण (Internal Liberalization) करना होगा और उसको 10-15 साल चलाना होगा | यही नीति जापान ने चलाई, यही नीति चीन ने चलाई, यही नीति अमेरिका ने चलाया, यही नीति फ़्रांस ने चलाया | मैं कहना ये चाहता हूँ कि अच्छी बातें तो हम सीखते नहीं और सीखेंगे क्या तो जिसे दुनिया में हमने फेल होते देखा, भारत में जो उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण की नीति अपनाई गयी है वही नीति दक्षिण कोरिया ने अपनाया था, रूस ने अपनाया था, थाईलैंड ने अपनाया था , ब्राजील ने अपनाया था और सब के सब डूबे थे | </span> <span style="font-size: small;"><br />
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भारत में एक प्रधानमंत्री हुए मोरारजी देसाई उनकी सरकार ने भारत में जितने भी Zero Technology के क्षेत्र में MNC (Multi National Company) काम कर रहे थे उनमे से अधिकांश को भारत से भगाया था | ये Zero Technology वाले उत्पादों की संख्या लगभग 700 थी | और आप ध्यान दीजियेगा कि ये जितने भी MNC आये हैं वो उन्हीं क्षेत्रों में निवेश कर रहे हैं जिस क्षेत्र को मोरारजी देसाई की सरकार ने प्रतिबंधित किया था | मतलब जिन कंपनियों को मोरारजी देसाई की सरकार ने भगाया था सब की सब वापस आ गयी हैं | दूसरी बात, जितने भी MNC हैं वो कभी भी हमारे देश में आ के कोई technology के क्षेत्र में निवेश नहीं करते हैं | क्या कभी किसी कंपनी ने आ के यहाँ satellite बनाया या किसी ने मिसाइल बनाने में मदद की ? Technology इस देश में बाहर से जो भी आती है वो outdated /redundant होती है | 1991 में उदारीकरण (जिसे मैं उधारीकरण कहता हूँ ) के बाद जितने भी MoU (Memorandum of Understanding) sign हुए इस देश में सब के सब zero technology के क्षेत्र में हुए हैं | आप देखिएगा कि ये क्या बनाती हैं और बेचती हैं, ये बनाती है - साबुन,वाशिंग पावडर, आलू का चिप्स, टमाटर की चटनी, आम का आचार, बोतल का पानी, चोकलेट, बिस्कुट, पावरोटी, आदि, आदि | एक भी उदहारण कोई दे दे जब इन विदेशी कंपनियों ने तकनीक के क्षेत्र में निवेश किया हो | भारत ने अपने स्वदेशी तकनीक से सुपर कंप्यूटर बनाया, भारत ने अपने बूते मिसाइल बनाया, भारत ने अपने दम पर क्रायोजनिक इंजन बनाया, एक भी कंपनी ने भारत को तकनीक तो दूर सहयोग तक नहीं दिया | मारुती में जो सुजुकी का इंजन लगता है वो इंजन यहाँ नहीं जापान में बनता है, हीरो होंडा में जो इंजन लगता था वो जापान से बन के आता था , मतलब ये है कि अपने तकनीक को ये कम्पनियाँ शेयर नहीं करती वो कोई तकनीक जानते हैं तो आपको देते नहीं हैं और जब वही तकनीक उनके लिए पुरानी या बेकार हो जाती है तो वो उसे भारत में ला के dump कर देती हैं और हम खुश हो जाते हैं कि नयी तकनीक आयी है |</span> <span style="font-size: small;"><br />
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आप दुनिया में जितने भी विकसित देश देखेंगे वो सब स्वदेशी के बल पर आगे आये हैं | भारत को भी खड़ा करना है तो स्वदेशी के माध्यम से ही खड़ा किया जा सकता है | अगर आप विदेशियों पर निर्भर हैं या परावलम्बी है तो आप दुनिया में कभी कोई ताकत हासिल नहीं कर सकते | विदेशी वैसाखी पर, परावलम्बी होकर, विदेशी चिंतन से, विदेशी अर्थव्यवस्था की नीतियों की नक़ल से कोई देश कभी आगे नहीं आता, हर देश को आगे आने के लिए स्वदेशी का चिंतन, स्वदेशी का मनन और स्वदेशी का अनुपालन करना पड़ता है | </span> <span style="font-size: small;"><br />
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15 अगस्त 1947 को भारत ऐसा नहीं था, भारत के ऊपर एक रूपये का विदेशी कर्ज नहीं था, भारत का व्यापार घाटा एक रूपये का नहीं था | एक डौलर की कीमत भारत के एक रुपया के बराबर थी, एक पोंड की कीमत एक रुपया के बराबर थी और एक जर्मन मार्क की कीमत भी एक रुपया थी, भारत आजाद हुआ तो भारत को आगे की तरफ बढ़ना चाहिए था लेकिन हुआ उल्टा | हमारे नीति निर्धारकों ने भारत को पश्चिम के रास्ते आगे बढ़ाने का प्रयास किया जो कि किसी भी दृष्टिकोण से बुद्धिमत्ता नहीं कही जा सकती है | आज का भारत कर्ज में डूबा हुआ भारत है, भारत की हर प्राकृतिक चीज विदेशियों के हाथ में चली गयी है, अब तो भारत के लोग भी भारतीय नहीं रहे, जब कोई राष्ट्र की बात करता है तो लोग उसे ही गालिया देने लगते हैं | मैं भारत में पैदा हुआ और भारत की संस्कृति में पला-बढ़ा, और हमारे भारत की संस्कृति में मरने वाले के आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है लेकिन मैं भगवान से ये प्रार्थना करता हूँ कि इन 64 सालों में जिन-जिन शासकों ने भारत को इस दुष्चक्र में पहुँचाया है, उनकी आत्मा को कभी शांति प्रदान ना करें | </span> <span style="font-size: small;"><br />
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<b>जय हिंद<br />
राजीव दीक्षित</b></span> <span style="font-size: small;"><br />
</span></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-31033699551337826052012-08-23T03:40:00.000-07:002012-08-23T03:40:16.035-07:00भूमि अधिग्रहण कानून का इतिहास <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: small;">एक बात मैं स्पष्ट कर दूँ कि यहाँ इस लेख में जो आंकड़े दिए गए हैं वो वर्ष 2009 तक के हैं | और इस लेख को पढने के पहले इस सूचि को पढ़ लीजिये तब जा के आपको बात ज्यादा बेहतर तरीके से समझ में आएगी, हमारे यहाँ जमीन की पैमाइश ऐसे ही की जाती है और 1260 sq . feet जो दिया गया है वो भारत के ज्यादातर राज्यों में एक ही है, किसी किसी राज्य में थोडा ज्यादा है |<br />
1260 Sq. Feet = एक कट्ठा <br />
20 कट्ठा = एक बीघा <br />
ढाई बीघा = एक एकड़ और <br />
5 एकड़ = एक हेक्टेयर <br />
(ये पैमाना अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है) <br />
<b>भूमि अधिग्रहण कानून का इतिहास </b> भारत में सबसे पहले भूमि अधिग्रहण कानून अंग्रेजों ने लाया था 1839 में लेकिन इसे लागू किया 1852 में और वो भी बम्बई प्रेसिडेसी में | बम्बई प्रेसिडेंसी जो थी उसमे शामिल था आज का महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, गोवा और मध्य प्रदेश का वो इलाका जो नागपुर से लगा हुआ है | भारत की पहली क्रांति जो 1857 में हुई थी उस समय भारत से सारे अंग्रेज चले गए थे और जब इस देश के कुछ गद्दार राजाओं के बुलावे पर वापस आये तो उन्होंने इस कानून को पुरे देश में लागू कर दिया | फिर 1870 में इसमें एक संशोधन कर दिया गया और वो संसोधन ये था कि "जमीन के अधिग्रहण का नोटिस एक बार अंग्रेज सरकार ने जारी कर दिया तो उस नोटिस को भारत के किसी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती और कोई भी अदालत इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकता", मतलब अंग्रेज सरकार की जो नीति है वो अंतिम रहेगी, उसमे कोई फेरबदल नहीं होगा, कोई किसान अपनी जमीन छिनने की शिकायत किसी से नहीं कर सकता और इसी संसोधन में ये भी हुआ कि जमीन का मुआवजा सरकार तय करेगी और ये संसोधन सारे राज्यों में लागू हुआ | आखरी बार इसमें जो संसोधन हुआ वो 1894 में हुआ और वही संसोधित कानून आज भी इस देश में लागू हैं आजादी के 64 साल बाद भी | इस कानून में व्यवस्था क्या है ? व्यवस्था ये है कि केंद्र की सरकार हो, राज्य की सरकार हो, नगरपालिका की सरकार हो या जिले की सरकार हो, हर सरकार को, इस कानून के आधार पर किसी की जमीन को लेने का अधिकार है | <br />
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शहीदे आजम भगत सिंह को जब फाँसी की सजा हुई थी और उनको जेल में रखा गया था उस समय उन्होंने जितने इंटरव्यू दिए या पत्रकारों से बातचीत की हर बार वो कहा करते थे कि अंग्रेजों के सबसे ज्यादा दमनकारी कोई कानून भारत में है तो उसमे से एक है "भूमि अधिग्रहण कानून" और दूसरा है "पुलिस का कानून (इंडियन पुलिस एक्ट)" और भगत सिंह का कहना था कि आजादी के बाद ये कानून ख़त्म होना चाहिए, ऐसे ही चंद्रशेखर आजाद ने भी इस कानून के खिलाफ पर्चे बटवाए थे | ऐसे एक नहीं, दो नहीं, हजारों, लाखों क्रांतिकारियों का ये मानना था कि ये भूमि अधिग्रहण का कानून सबसे दमनकारी कानून है और अंग्रेजों के बाद इस कानून को समाप्त हो जाना चाहिए | हमारे सारे शहीदों का एक ही सपना था चाहे वो हिंसा वाले शहीद हो या अहिंसा वाले शहीद हो कि ये भूमि अधिग्रहण का जो कानून है वो अत्याचारी है, बहुत ज्यादा अन्याय करने वाला है, शोषण करने वाला है, इसलिए इस कानून को तो रद्द होना ही चाहिए, ख़त्म होना ही चाहिए | अब 15 अगस्त 1947 को जब ये देश आजाद हुआ तो ये अंग्रेजों का अत्याचारी कानून ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन ये बहुत दुःख और दुर्भाग्य से मुझे कहना पड़ता है कि ये कानून आज आजादी के 64 साल बाद भी इस देश में चल रहा है और इस कानून के आधार पर किसानों से जमीने आज भी छिनी जा रही है और इस कानून के आधार पर आज भी हमारे किसानों को भूमिहीन किया जा रहा है | मुझे बहुत दुःख और दुर्भाग्य से ये कहना पड रहा है कि जिस तरह से अंग्रेजों की सरकार किसानों से जमीन छिना करती थी ठीक वैसे ही आजाद भारत की सरकार किसानों से जमीन छिना करती है | इसी कानून का सेक्सन 4 है इसी कानून का पैरा 1 है, उसके आधार पर अंग्रेज जमीन छिनने के लिए नोटिस जारी करते थे वही सेक्सन 4 और पैरा 1 का इस्तेमाल कर के आज भारत सरकार भी नोटिस जारी करती है और उसी तरीके से नोटिस आता है जिलाधिकारी के माध्यम से और जमीन छिनने के लिए आदेश थमा दिया जाता है और जिसका जमीन है उसके हाँ या ना का कोई प्रश्न ही नहीं है | और जमीन का भाव सरकार वैसे ही तय करती है जैसे अंग्रेज किया करते थे | कोर्ट इसमें हस्तक्षेप न करे इसके लिए इसमें चालाकी ये की गयी है कि इस भूमि अधिग्रहण कानून को संविधान के 9th Schedule में डाल दिया गया है जिसमे कोई petition भी नहीं दी जा सकती | भूमि अधिग्रहण का पूरा मामला हमारे संविधान के 9th Schedule में है और संविधान के 9th Schedule बारे में स्पष्ट है कि कोई भी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में केस नहीं कर सकता |</span> <span style="font-size: small;"><br />
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<b>जमीनों का बंदरबांट</b></span> <span style="font-size: small;"><br />
अब देखिये ये अधिग्रहित जमीन किसके पास कितनी है | भारत में एक रेल मंत्रालय है, उसके देश भर में रेलवे स्टेशन है, यार्ड है जहाँ डिब्बे खड़े रहते हैं, इसके अलावा रेल के चलने के लिए रेलवे लाइन हैं | करीब 70 हजार डिब्बे यार्ड में खड़ा करने के लिए जो जगह चाहिए, 6909 रेलवे स्टेशन बनाने के लिए जो जमीन ली गयी है, और 64 हजार किलोमीटर रेलवे लाइन बिछाने के लिए जो जमीन किसानों से ली गयी है या छिनी गयी है इस कानून के आधार पर वो बेशुमार है, आप कल्पना नहीं कर सकते है, आपके मन में ये सपने में भी नहीं आ सकता है कि इतनी जमीन ली जा सकती है | जो जमीन हमारी सरकार ने किसानों से छिनी है इस रेलवे विभाग के लिए वो 21 लाख 50 हज़ार एकड़ जमीन है | हमारे रेल मंत्रालय के दस्तावेजों में से निकले गए आंकड़े हैं ये | 21 लाख 50 हजार एकड़ जमीन रेल मंत्रालय ने इस कानून के तहत हमारे किसानों से छीन कर अपने कब्जे में ली है, अपनी सम्पति बनाई है जिस पर 64 हजार किलोमीटर रेलवे लाइन हैं,70 हजार डिब्बे यार्ड में खड़े होते हैं और 6909 रेलवे स्टेशन खड़े हैं | अब आप तुरत ये सवाल करेंगे कि रेल मंत्रालय ने ये जमीन ली है वो लोगों के हित के लिए है | आपकी बात ठीक है कि लोगों के हित के लिए ये जमीन ली गयी है लेकिन लोगों के हित में उन किसानों का हित भी तो शामिल है जिनसे ये जमीन ली गयी हैं | आप दस्तावेज देखेंगे तो पाएंगे कि आजादी के बाद 1947-48 में जो जमीन किसानों से ली गयी है उसकी कीमत है एक रुपया बीघा, दो रूपये बीघा, ढाई रूपये बीघा, तीन रूपये बीघा और आज उन जमीनों की कीमत है एक करोड़ रूपये बीघा, दो करोड़ रूपये बीघा | किसानों से एक,दो,तीन रूपये बीघा ली गयी जमीन करोड़ों रूपये बीघा है तो जिन किसानों से ये जमीन ली गयी उनके साथ कितना अन्याय हुआ, इसकी कल्पना आप कर सकते हैं | अब रेलवे विभाग इस जमीन का इस्तेमाल कर के एक साल में 93 हजार 159 करोड़ रुपया कमाता है | आप सोचिये कि किसानों से जो 21 लाख 50 हजार एकड़ जमीन ली गयी भूमि अधिग्रहण कानून के आधार पर और उस जमीन का इस्तेमाल कर के रेल विभाग एक साल में 93 हजार 159 करोड़ रुपया कमाता है तो क्या रेल मंत्रालय का ये दायित्व नहीं बनता, ये नैतिक कर्त्तव्य नहीं बनता कि इस कमाए हुए धन का कुछ हिस्सा उन किसानों को हर साल मिलना चाहिए जिनसे ये जमीने छिनी गयी हैं और जिनकी ये जमीने कौड़ी के भाव में ली गयी हैं | मैं मानता हूँ कि किसानों की बराबर की हिस्सेदारी होनी चाहिए इस फायदे में, इस लाभ के धंधे में | रेलवे विभाग इस देश में कोई घाटा देने वाला विभाग नहीं है | उसका हर साल का नेट प्रोफिट 19 हजार 320 करोड़ रुपया है | अगर शुद्ध आमदनी में से ही 10 या 15 प्रतिशत हिस्सा उन किसानों के लिए निकल दिया जाये तो उन करोड़ों किसानों के जिंदगी का आधार तय हो जायेगा जिन्होंने आज से 50 -60 साल पहले कौड़ी के भाव में अपनी जमीन गवां दी थी रेलवे के हाथों में | <br />
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इसी तरह सरकार का एक दूसरा महत्वपूर्ण विभाग है जिसने किसानों से जमीन ली है भूमि अधिग्रहण के नाम पर, उस विभाग का नाम है भूतल परिवहन मंत्रालय | ये भूतल परिवहन परिवहन मंत्रालय रोड और यातायात का काम देखती है | भारत में दो तरह के रोड होते हैं एक नेशनल हाइवे और दूसरा स्टेट हाइवे | आजादी के बाद इस देश में 70 हजार 5 सौ अड़तालीस किलोमीटर नेशनल हाइवे बनाया गया है और इस 70 हजार 5 सौ 48 किलोमीटर लम्बे सड़क के लिए किसानों से 17 लाख एकड़ जमीन छिनी गयी और इस जमीन पर सड़क जो बनती है उस पर ठेकेदार किलोमीटर के हिसाब से पैसा वसूलते हैं, लेकिन जिन किसानों ने हजारों एकड़ जमीन अपनी दे दी है उन्हें उस कमाई में से एक पैसा भी नहीं दिया जाता, इतना बड़ा अत्याचार इस देश में कैसे बर्दास्त किया जा सकता है | आप जानते हैं कि इस देश के नेशनल हाइवे पर जब हम चलते हैं तो हर पचास किलोमीटर पर टोल टैक्स हमको भरना पड़ता है और गाड़ी खरीदने के समय पूरी जिंदगी भर का रोड टैक्स हमको भरना पड़ता है | सरकार उस जमीन पर रोड बनवाकर टैक्स का पैसा तो अपने खाते में जमा करा लेती है लेकिन उन किसानों को टैक्स के पैसे में से कुछ नहीं दिया जाता जिनसे ये 17 लाख एकड़ जमीन छिनी गयी हैं भूमि अधिग्रहण कानून के हिसाब से और इन सड़कों पर कारें, ट्रक, बस आदि चलते हैं, देश की आमदनी उससे होती है और ये आमदनी हमारे GDP में जुड़ जाती है लेकिन उन किसानों का क्या जिन्होंने अपने खून-पसीने की कमाई की 17 लाख एकड़ जमीन एक झटके में हमारी सरकार को दे दी भूमि अधिग्रहण कानून के आधार पर, देश के लोगों का भला हों इस आधार पर | किसानों को कुछ तो नहीं मिल रहा है | इसी तरह से स्टेट हाइवे है, आप जानते हैं कि भारत में 29 राज्य हैं और एक एक राज्य में 10 से 12 हजार किलोमीटर का स्टेट हाइवे है | उत्तर प्रदेश में 14 हजार किलोमीटर, मध्य प्रदेश में 12 हजार किलोमीटर है और ऐसे ही हर राज्य में है और कुल मिलकर एक लाख किलोमीटर से ज्यादा स्टेट हाइवे है और इसमें किसानों की लाखों एकड़ जमीन जा चुकी हैं |</span> <span style="font-size: small;"><br />
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ऐसे ही स्कूल, कॉलेज बनवाने के लिए सरकार द्वारा जमीने ली गयी हैं | हमारे भारत में 13 लाख प्राइमरी, मिडिल और इंटर स्तर के स्कूल हैं और करीब 14 हजार डिग्री स्तर के कॉलेज है और 450 विश्वविद्यालय हैं | इन स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय में जो कुल जमीन गयी हैं वो करीब 13 लाख एकड़ जमीन है, ये जमीन भी किसानों ने शिक्षा के नाम पर केंद्र सरकार को दी है, राज्य सरकारों को दी है | आप जानते हैं कि कॉलेज बनाने के नाम पर कौड़ी के भाव में जमीन मिलती है फिर वो जमीन का उपयोग कर के बिल्डिंग बनायी जाती है, फिर donation ले के नामांकन दी जाती हैं विद्यार्थियों को, ये donation लाखों करोड़ों में होती है | कोई भी कॉलेज घाटे में नहीं चलता, सब के सब फायदे में चलते हैं, लेकिन उन किसानों को कुछ भी नहीं मिलता है जिन्होंने एक झटके में वो जमीन कॉलेज बनाने के लिए दे दी है | </span> <span style="font-size: small;"><br />
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हमारे देश में हॉस्पिटल किसानों के जमीन पर बनाई गयी है | हमारे देश की सरकार ने 15 हजार 3 सौ 93 हॉस्पिटल इस देश में तैयार किये गए हैं और इन हॉस्पिटल को बनाने के लिए कुल लगभग 8 लाख 75 हजार एकड़ जमीने किसानों से ली गयी हैं | इन जमीनों पर जो हॉस्पिटल खड़े हुए हैं उन हॉस्पिटल को बनाने के समय सरकार का हॉस्पिटल बनाने वालों से समझौता हुआ है और उसमे ये लिखा गया है कि गरीब किसानों के लिए इन हॉस्पिटल में निःशुल्क इलाज मिलेगा तभी जमीन कम कीमत पर मिलेगी लेकिन कोई हॉस्पिटल गरीब किसानों को निःशुल्क इलाज नहीं देता है | इतने महंगे इलाज हैं कि हॉस्पिटल बनाने के लिए जिस किसान ने जमीन दे दी, उसी किसान को अपने घर वालों का इलाज कराने के लिए उस हॉस्पिटल में जब जाना पड़ता है तो जमीन बेंच कर जो पैसे आये हैं वो सारे पैसे खर्च करने पड़ते हैं तब जाकर उसके परिजन का इलाज होता है | मतलब पैसे वापस उसी हॉस्पिटल में चला जाता है | इसलिए किसान वहीं के वहीं रहते हैं | उनका शोषण वैसे के वैसे ही होता है | तो हॉस्पिटल के लिए ली गयी 8 लाख 75 हजार एकड़ जमीन हैं | इसी तरह भारत में भारतीय और विदेशी कंपनियों ने उद्योग स्थापित किये हैं और उन उद्योगों के लिए 7 लाख एकड़ जमीन ली गयी है और इसी तरह भारत देश में भारत सरकार का एक विभाग है दूरसंचार मंत्रालय | इसके भवन सारे देश में बने हुए हैं और उसके लिए 1 लाख 55 हजार एकड़ जमीन इसने किसानों से ले रखी है | इसी तरह भारत सरकार के 76 मंत्रालय हैं उन 76 मंत्रालयों और राज्य सरकारों के मंत्रालय और म्युनिसिपल कारपोरेशन के काम करने वाले विभाग हैं, तीनों स्तर पर लाखो एकड़ जमीन तो ली जा चुकी हैं अब तक सरकार के द्वारा और करीब 25-30 लाख एकड़ जमीन ली जा चुकी है कंपनियों और निजी व्यक्तियों के द्वारा | ये सारे जमीन किसानों के हाथ से निकल कर निजी संपत्ति बन चुकी है सरकार और कंपनियों की | और किसान वहीं गरीब के गरीब हैं, वो आत्महत्या कर रहे हैं, भूखों मर रहे हैं और उनकी जमीनों पर लोग सोना पैदा कर रहे हैं | ये अत्याचार ज्यादा दिनों तक अब बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, आजादी के 64 साल तक तो बर्दाश्त हो गया अब क्षमता नहीं है | </span> <span style="font-size: small;"><br />
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कई बार मजाक होता है किसानों के साथ ये कि किसानों के जमीन का भाव तय किया जाता है एक रुपया स्क्वायर फीट, पचास पैसे स्क्वायर फीट, पंद्रह पैसे स्क्वायर फीट | आपको एक सच्ची घटना सुनाता हूँ | आज से लगभग बीस साल पहले गुजरात के गांधीधाम के पास एक द्वीप सतसैदा वेट को वहां की तत्कालीन सरकार ने एक अमरीकी कंपनी 'कारगिल' को पंद्रह पैसे स्क्वायर फीट के दर से बेंच दिया था नमक बनाने के लिए | वो द्वीप 70 हजार एकड़ का था | जनहित याचिका के अंतर्गत जब ये मामला गुजरात उच्च न्यायलय में पहुंचा और गुजरात सरकार से जब ये पूछा गया तो उसने इस बात को स्वीकार किया और कहा कि ये जमीन भारत के नागरिकों के हित को ध्यान में रखकर विदेशी कंपनी को बेचीं गयी है| सरकार का तर्क था कि ये कारगिल कंपनी जो नमक बनाएगी वो भारत के आम नागरिकों के आवश्यकता को पूरा करेगी और ये समझौता देशहित में है तो दुसरे पक्ष ने भी तर्क दिया कि इसमें ऐसी कौन सी तकनीक ये लगायेंगे ? जो काम ये कारगिल कंपनी करेगी वो काम तो गांधीधाम के गरीब किसान भी कर सकते हैं और वो भी इस लोकहित का काम कर सकते हैं | कोर्ट ने जब इस मामले की जाँच कराई तब पता चला कि इसमें घोटाला हुआ है और घोटाला ये हुआ है कि इस जमीन को पंद्रह पैसे की दर से बिका तो दिखाया गया है लेकिन पिछले दरवाजे से भारी रिश्वत ली गयी थी | तो हाई कोर्ट के कारण उस समय के मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा और हाई कोर्ट ने इस समझौते को रद्द कर दिया था | समझौते को रद्द करने के पीछे कारण जो था वो भूमि अधिग्रहण का कानून नहीं था, क्योंकि भूमि अधिग्रहण के मामले में किसी कोर्ट में केस नहीं किया जा सकता और भूमि अधिग्रहण के मामले में तो ये समझौता एकदम पक्का था, ये समझौता तो रद्द हुआ था राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर क्योंकि जो जमीन इस कारगिल कंपनी को दी गयी थी वो पाकिस्तान सीमा के बिलकुल पास थी और इससे देश को खतरा था | इसके अलावा कोर्ट को ये भी बताया गया कि ये कारगिल कंपनी का मुख्य काम हथियार बनाना है | इस समझौते को रद्द करने के बाद अदालत ने एक टिपण्णी की थी कि "ये सौदा हमने रद्द किया है देश की सुरक्षा को ध्यान में रखकर और करोडो नागरिकों के हित को ध्यान में रखकर और जल्द से जल्द इस कानून में परिवर्तन किया जाये, संसोधन किया जाये ताकि देश के जरूरतमंद नागरिकों की जमीनें सरकार बेवजह न छीन सके और करोड़ों किसानों को भूमिहीन न बनाया जा सके" | आज इस फैसले को आये 20 साल होने जा रहा है लेकिन भारत सरकार ने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया | आज भी इस देश में ये कानून चल रहा है और किसानों की छाती पर मुंग दल रहा है | ऐसे कई उदहारण हैं जैसे दादरी (उत्तरप्रदेश), जहाँ एक भारतीय कंपनी को ताप बिजलीघर लगाना था और 450 एकड़ जमीन की जरूरत थी और वहां की तत्कालीन सरकार ने जरूरत से सौ गुना ज्यादा जमीन किसानों से छीन लिया था, नंदीग्राम (पश्चिम बंगाल अब पश्चिम बंग) में इंडोनेशिया की कंपनी से समझौता पहले हुआ था और जमीन बाद में अधिगृहित की गयी थी जिसका विरोध वहां के किसानों ने किया था लेकिन सरकार ने न कोई मदद की और न ही कोर्ट ने लेकिन किसानों के एकता ने उनको वहां सफलता दिलाई थी, ऐसे ही सिंगुर में हुआ था |</span> <span style="font-size: small;"><br />
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अभी हमारे देश में आर्थिक उदारीकरण के नाम पर एक योजना चल रही है जिसका नाम है Special Economic Zone (SEZ ) | इसके नाम पर हजारों लाखों एकड़ जमीन किसानों से छिनी जा रही है और अलग अलग कंपनियों को बेंची जा रही है और इन कंपनियों को ये अधिकार दिया जा रहा है कि ये कंपनियां इन खेती की जमीनों को औद्योगिक जमीन बना कर दोबारा बेंच सकें | किसानों से जब जमीन ली जाती है तो उसका भाव होता है पाँच हजार रूपये बीघा, दस हजार रूपये बीघा और वही जमीन जब ये कंपनियां दोबारा बेंचती हैं तो इस जमीन का भाव होता है एक लाख रूपये बीघा, दो लाख रूपये बीघा और कभी-कभी ये पचास लाख रूपये बीघा और कभी-कभी एक करोड़ रूपये बीघा तक भाव हो जाता है | हमारे देश में किसानों से जमीन छिनकर कौड़ी के भाव में, कंपनियों को कम कीमत पर बेंच देना और बीच का कमीशन खा जाना, ये सरकारों ने अपना नए तरह का धंधा बना लिया है और इस कानून की आड़ में भारत के लाखों-करोडो किसानों का शोषण हो रहा है | <br />
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दिल्ली के नजदीक एक गाँव है गुडगाँव | कुछ साल पहले वो ऐसा नहीं था, थोड़े दिन पहले यहाँ की जमीन यहाँ के किसानों से ली गयी | यहाँ के किसानों को ये लालच दिया गया कि बहुत पैसे मिल रहे हैं अपनी जमीन बेच दो | उन्होंने अपनी जमीन बेच दी और उन पैसों से कोठियां बनवा ली, गाड़ियाँ ले ली | अब वो कोठिया और गाड़ियाँ एक दुसरे के सामने खड़ी रहती हैं और एक दुसरे को मुंह चिढ़ा रही हैं | क्योंकि किसानों की आमदनी बंद हो गयी है, जब खेत थी तो खाने को अनाज मिलता था और बचे हुए अनाज को बेच के पैसा मिलता था और उससे जिंदगी आसानी से चलती थी लेकिन अब वही किसान वहां बने अपार्टमेन्ट में गार्ड का काम कर रहे हैं, माली का काम कर रहे हैं, इस्त्री करने का काम कर रहे हैं, सब्जी बेचते हैं, दूध बेचते हैं और उनके घर की महिलाएं उन कोठियों में बर्तन मांजने का काम करती हैं, झाड़ू और पोंछा लगाती हैं | जमीन जब चली जाती है तो सब कुछ चला जाता है, ना इज्जत बचती है, ना आबरू बचती है, ना पैसा बचता है, ना सम्मान बचता है, ना संसाधन बचते हैं | हमारे देश में गुडगाँव की कहानी जो है वैसे ही बहुत सारे किसानों की है जिन्होंने इस भूमि अधिग्रहण कानून के तहत जमीने या तो बेचीं या उनसे छीन ली गयी | इन सब किसानों की दुर्दशा इस देश में हो रही है | </span> <span style="font-size: small;"><br />
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मैं थोड़े दिनों से इस कानून का अभ्यास कर रहा हूँ तो मुझे पता चला है कि हमारे देश का जो संसद भवन है, राष्ट्रपति भवन है वहां पर एक गाँव हुआ करता था , उस गाँव का नाम था मालचा | ये मालचा गाँव पंजाब राज्य का इलाका था बाद में हरियाणा बना तो ये गाँव हरियाणा के अधीन आ गया | इस गाँव के किसानों से अंग्रेजों ने मारपीट कर, डरा-धमका कर जमीन छिनी थी | किसान जमीन देने को तैयार नहीं थे, अंग्रेज सरकार ने जबरदस्ती किसानों से ये जमीने छिनी थी | भूमि अधिग्रहण कानून के हिसाब से नोटिस दिया और सन 1912 में मालचा गाँव के किसानों से तैंतीस (33 ) हजार बीघा जमीन छीन ली थी सरकार ने | किसानों ने जब विरोध किया तो अंग्रेज सरकार ने वैसे ही गोली चलायी जैसे आज चलती है और उस गोलीबारी में 33 किसान शहीद हुए थे, उनकी लाश पर अंग्रेज सरकार ने इस जमीन को भारत के संसद भवन और राष्ट्रपति भवन में बदल दिया और मुझे बहुत अफ़सोस है ये कहते हुए कि जिन किसानों से ये जमीने छिनी गयी उनको आज 100 साल बाद (1912 -2011) और आजादी के 64 साल बाद तक एक रूपये का मुआवजा नहीं मिल पाया है और उन किसानों के परिजन डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से हाईकोर्ट और हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक चक्कर लगाते लगाते थक गए हैं और वो कहते हैं कि "जैसे हम अंग्रेजों के सरकार का चक्कर लगाते थे, आजादी के बाद हम हमारी सरकार के वैसे ही चक्कर लगा रहे हैं हम कैसे कहें कि देश आजाद हो गया है, कैसे कहें कि देश में स्वाधीनता आ गयी है"| वो कहते हैं कि "हमारे पुरखे लड़ रहे थे अंग्रेजी सरकार से मुआवजे के लिए और वो मर गए और अब हम लड़ रहे हैं भारत सरकार से कि हमें उचित मुआवजा मिले, हो सकता है कि हम भी मारे जाएँ और हमारी आने वाली पीढ़ी देखिये कब तक लडती है" | हमारे देश का राष्ट्रपति भवन, संसद भवन जो सबसे सम्मान का स्थान है इस देश में वो इसी भूमि अधिग्रहण कानून के अत्याचार का प्रमाण है, शोषण का प्रमाण है | किसानों से जबरदस्ती छीन कर बनाया गया भवन है ये इसलिए मुझे नहीं लगता कि इस संसद भवन या राष्ट्रपति भवन से हमारे देश के लोगों के लिए </span><span style="font-size: small;">कोई</span><span style="font-size: small;"> सद्कार्य हो सकता है, कोई शुभ कार्य हो सकता है, कोई अच्छा कार्य हो सकता है | आजादी के 64 सालों में ऐसा कोई नमूना तो मिला नहीं मुझे | ये कहानी बहुत दर्दनाक है, बहुत लम्बी है, मैं लिखता जाऊं और आप पढ़ते जाएँ | इस अंग्रेजी भूमि अधिग्रहण कानून के इतने अत्याचार हैं इस देश के किसानों पर कि जिस पर अगर पुस्तक लिखी जाये तो 1000 -1200 पन्नों के 50 -60 खंड बन जायेंगे | पुरे देश में इतने अत्याचार और शोषण इस कानून के माध्यम से हुए हैं | </span> <span style="font-size: small;"><br />
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उपाय क्या है ? </b> अब आपके मन में सवाल हो रहा होगा कि उपाय क्या है ? उपाय ये है कि किसानों को जमीन का उचित मुआवजा तो मिले ही साथ ही साथ उनके जमीनों से होने वाले मुनाफे में किसानों को भी हिस्सा मिलना चाहिए, कुछ बोनस मिलना चाहिए | जिस कार्य के लिए किसानों की जमीन ली जाये उसमे किसानों का आजीवन हिस्सा होना चाहिए | जो भी मंत्रालय, जो भी विभाग, जो भी कम्पनी, जो भी कारखाना उनकी जमीन ले, तो जमीन का मुआवजा तो वो दे ही साथ ही साथ उस जमीन की मिलकियत जिंदगी भर किसानों की रहनी चाहिए और उस मिलकियत में बराबर का एक हिस्सा उनके शुद्ध मुनाफे में से किसानों को मिलनी ही चाहिए तब जाकर हमारे देश के किसानों की हैसियत और स्थिति सुधरेगी | आपको एक छोटी सी बात बताता हूँ, आप कोई कारखाना लगाते हैं या अपार्टमेन्ट बनाते हैं और उसके लिए बैंक से ऋण लेते हैं तो आप जानते हैं, बैंक का क़र्ज़ जब तक आप वापस नहीं करते बैंक आपके कारखाने में हिस्सेदार होता है | आपने बैंक से एक करोड़ का या जितना भी क़र्ज़ लिया और जब तक आप क़र्ज़ चुकाते नहीं , भले ही आप उसका ब्याज चूका रहे हो बैंक आपके उस संपत्ति में हिस्सेदार होती है | जिस किसान ने अपनी जमीन दी है और उसके जमीन पर वो कारखाना खड़ा किया गया है तो वो किसान क्यों नहीं उस कारखाने में हिस्सेदार होना चाहिए और वही किसान नहीं उसकी आने वाली पीढियां भी इसका लाभ उठायें ये नियम होना चाहिए तभी किसानों की स्थिति सुधरेगी | ये इस देश की जनता कर सकती है क्यों कि देश की जनता में वो ताकत है, सिर्फ ताकत ही नहीं सबसे ताकतवर है लेकिन उसे कोई जानकारी तो हो | <br />
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भारत स्वाभिमान के सैनिकों से अनुरोध </b><br />
आप तो जानते हैं कि भारत स्वाभिमान एक संकल्प कर चूका है, एक प्रतिज्ञा कर चूका है और वो संकल्प और प्रतिज्ञा ये है कि भारत स्वाभिमान नाम का हमारा अभियान इस देश में जो सबसे महत्वपूर्ण कदम उठाएगा वो ये कि इस अंग्रेजी, अत्याचारी भूमि अधिग्रहण कानून को जड़-मूल से समाप्त कराएगा ये हमारी प्रतिज्ञा है, हमारा संकल्प है | आप तो जानते हैं कि भारत स्वाभिमान का एक बड़ा संकल्प है कि अंग्रेजों के ज़माने के 34735 कानूनों को इस देश से व्यवस्था परिवर्तन के तहत हटाना है और उन कानूनों में से सबसे पहला कानून है वो यही भूमि अधिग्रहण का कानून है | हमारे देश के किसानों को सबसे ज्यादा अगर कोई मदद करेगा तो वो भारत स्वाभिमान अभियान ही करेगा जो इस अंग्रेजी, अत्याचारी, विनाशकारी, शोषण वाले कानून को रद्द कराएगा ये हमारा संकल्प है, ये हमारी प्रतिज्ञा है | आप सभी भारत स्वाभिमान के जिम्मेदार सैनिक हैं और आपसे विनम्रता पूर्वक निवेदन है कि जो भी भाई-बहन गाँव के रहने वाले हैं या गाँव के नजदीक के शहरों के रहने वाले हैं उनकी ये बड़ी जिम्मेदारी है कि वो गाँव-गाँव जाएँ और लोगों को बताना शुरू करें और उन्हें संगठित करना शुरू करें चाहे वो किसान हो, किसानों के संगठन हो या फिर किसानों के शुभेक्छू हो, सब को जोड़े और सब तक ये बातें पहुंचाएं | <br />
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<b>अंत में </b></span><span style="font-size: small;"> </span><span style="font-size: small;">आजकल भारत में राष्ट्रहित की बात करने वालों को, देश की समस्याओं के बारे में बात करने वालों को RSS का agent कहने की परंपरा सी हो गयी है और चुकि मेरा ये लेख राष्ट्र को </span><span style="font-size: small;">समर्पित</span><span style="font-size: small;"> है, किसानों को </span><span style="font-size: small;">समर्पित</span><span style="font-size: small;"> है इसलिए मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी अगर कोई मुझे RSS का agent कहे | आप ही के बीच का, आपका दोस्त |</span> <span style="font-size: small;">अपना कीमती समय देने के लिए आपका </span><span style="font-size: small;">धन्यवाद् | </span><span style="font-size: small;"><br />
<b>जय हिंद <br />
राजीव दीक्षित </b></span></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-80804269570739007422012-08-23T02:15:00.000-07:002012-08-23T02:15:49.333-07:00भारत की आबादी और गरीबी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="line-height: 25px;"><b></b></span><br />
<div>आज मैं लोर्ड मैकोले के एक महत्वपूर्ण वक्तव्य से इस लेख की शुरुआत कर रहा हूँ जो उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटेन के नीचले सदन हाउस ऑफ़ कॉमंस में दिया था <span style="border-collapse: collapse; font-family: arial,sans-serif; line-height: normal;"><span style="font-family: Arial;">"</span>I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief "</span> ये वक्तव्य है तो और लम्बा लेकिन मैंने उसके शुरुआती पंक्ति को ही अपने लेख के लिए जरूरी समझा है | मतलब तो आप सब समझ ही गए होंगे, इसलिए मैं सीधे उन शब्दों की ओर आता हूँ जो उसने अपने वक्तव्य में प्रयोग किया है, उसने कहा है कि "मैंने किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं देखा जो भिखारी हो, जो चोर हो"| मतलब ये हुआ कि मैकोले के देश इंग्लॅण्ड में उस समय भिखारी भी थे और चोर भी थे जिस समय भारत में उसे न कोई भिखारी मिला और न ही चोर मिला जब कि उसने संपूर्ण भारत का दौरा किया था और तब बोला था | यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि 1835 में भारत में एक भी भिखारी नहीं है, मतलब ये हुआ कि भारत में गरीबी नहीं है और कोई गरीब भी नहीं है | जब गरीबी नहीं है तो उसे चोरी करने की भी जरूरत नहीं है |</div><div><br />
</div><div>अब मैं 1947 में आता हूँ, अंग्रेजों ने भारत से जाने के पहले एक सर्वे कराया था जिसमे कहा गया था कि भारत में 4 करोड़ लोग गरीब हैं, ये आंकड़े RBI के भी हैं हाला कि उस समय के अर्थशास्त्रियों ने ये कहा था कि "अंग्रेजों ने गलत सर्वे रिपोर्ट दिया है ताकि दुनिया में उनकी बदनामी न हो दरअसल भारत में ज्यादा गरीब हैं" | वो सर्वे सही थी या गलत मैं उसमे नहीं जाना चाहता | प्रथम प्रधानमंत्री ने एक कमीशन बनाया कि गरीबों की सही संख्या पता चल सके तो 1952 में जब देश में पहली पंचवार्षिक योजना लागू हुई तो उस समय उन्होंने बताया कि देश में वास्तविक गरीबों की संख्या 16 करोड़ है | अब मैं यहाँ सीधे 2007 में आता हूँ जब इस देश की संसद में प्रोफ़ेसर अर्जुन सेनगुप्ता की रिपोर्ट पेश हुई | पहले मैं प्रोफ़ेसर अर्जुन सेनगुप्ता के बारे में थोड़ी जानकारी यहाँ दे दूँ | प्रोफ़ेसर अर्जुन सेनगुप्ता दुनिया के जाने माने अर्थशास्त्रियों में गिने जाते थे, भारत सरकार का एक विभाग है योजना आयोग, प्रोफ़ेसर अर्जुन सेनगुप्ता बहुत दिनों तक इस योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे | श्रीमती इंदिरा गाँधी के समय वो लम्बे समय तक भारत सरकार के आर्थिक सलाहकार भी रहे और पश्चिम बंगाल (अब पश्चिम बंग) सरकार के भी लम्बे समय तक वो आर्थिक सलाहकार रहे, सारी दुनिया के नामी विश्वविद्यालयों में वो उनके बुलावे पर लेक्चर देने जाते थे | तो अर्जुन सेनगुप्ता साहब ने सरकार के कहने पर चार साल के अध्ययन के बाद जो रिपोर्ट दी वो काफी चौंकाने वाली है | उनकी रिपोर्ट के अनुसार भारत की 115 करोड़ की जनसँख्या में 84 करोड़ लोग बहुत गरीब हैं, इतने गरीब हैं ये 84 करोड़ लोग कि उनको एक दिन में खर्च करने के लिए 20 रूपये भी नहीं है और इन 84 करोड़ में से 50 करोड़ ऐसे हैं जिनके पास खर्च करने के लिए 10 रूपये भी नहीं है और इन 84 करोड़ में से 25 करोड़ के पास खर्च करने के लिए 5 रुपया भी नहीं है और बाकी के पास 50 पैसे भी नहीं है खर्च करने के लिए | </div><div><br />
</div><div>जब मैं इस क्षेत्र के विशेषज्ञ लोगों से भारत की इस स्थिति के बारे में पूछता हूँ कि हमारे यहाँ इतनी गरीबी क्यों है, गरीब क्यों हैं, बेकारी क्यों है, भुखमरी क्यों है तो वो कहते हैं कि भारत की गरीबी की मुख्य वजह हमारी बढती हुई जनसँख्या है, जब मैं साधारण लोगों से पूछता हूँ तो वो भी यही जवाब देते है | फिर मैंने इस पर काम किया तो मुझे जो बात समझ में आयी वो मैं आपके सामने रखता हूँ | ..........................1947 में जब हम आज़ाद हुए तो हमारे देश की आबादी 34 करोड़ थी और आज 2011 के जनगणना के मुताबिक हम 120 करोड़ हो गए हैं | 1947 में हमारे देश में अनाज का उत्पादन जो था वो साढ़े चार करोड़ टन था और आज 2011 में यह बढ़कर साढ़े 23 करोड़ टन के आसपास पहुँच गया है | 1947 में भारत में कारखाने बहुत कम थे और कारखानों में होने वाला उत्पादन भी बहुत कम था, उस समय भारत का औद्योगिक उत्पादन एक लाख करोड़ रूपये के आसपास था और आज ये दस लाख करोड़ रूपये के आसपास पहुँच गया है | 1947 में हमारे यहाँ गरीबों की संख्या 4 करोड़ थी अब उस स्तर के गरीबों की संख्या 84 करोड़ हो गयी है मतलब आबादी बढ़ी साढ़े तीन गुना लेकिन गरीब बढ़ गए 21 गुना, बात आप समझ रहे हैं न ? इन 64 सालों में आबादी बढ़ी साढ़े तीन गुनी और गरीब बढ़ गए 21 गुना, ये गरीबों के अनुपात में आबादी के हिसाब से वृद्धि होनी चाहिए थी, मतलब गरीबों की संख्या में भी साढ़े तीन गुनी वृद्धि होनी चाहिए थी, मतलब हमारे देश में आज 2011 मे 14 -15 करोड़ से ज्यादा गरीब नहीं होने चाहिए थे, है न ? और इसी अवधि में अनाज का उत्पादन लगभग छः गुना बढ़ा है, मतलब आबादी बढ़ी साढ़े तीन गुनी और अनाज उत्पादन में वृद्धि हुई छः गुनी, फिर क्यों भुखमरी से मर रहे हैं हमारे देश के लोग ? अगर आबादी बढती पांच गुना और अनाज उत्पादन में वृद्धि होती तीन गुना तो मैं मान लेता कि भुखमरी होने का कारण जायज है | और औद्योगिक उत्पादन में दस गुनी वृद्धि हुई है इन 64 सालों में फिर बेरोजगारों की इतनी बड़ी फ़ौज कैसे खड़ी हो गयी है हमारे देश में ? तो कहीं न कहीं नीतियों के स्तर पर हमारे सरकार से चुक हुई है जो गरीबी, भुखमरी और बेकारी रोकने में असफल रही है | ये जो हमने हमारे मन में बैठा लिया है या हमारे दिमाग में बैठा दिया गया है कि जनसँख्या बढ़ने से गरीबी बढती है या जनसँख्या बढ़ने से बेकारी बढती है या जनसँख्या बढ़ने से भुखमरी बढती है तो ये सिद्धांत ही गलत है |</div><div><br />
</div><div>दुनिया में एक अर्थशास्त्री हुआ माल्थस जिसने ये सिद्धांत दिया था कि जिस देश में जनसँख्या ज्यादा होगी वहां गरीबी ज्यादा होगी, बेकारी ज्यादा होगी | हाला कि उसके इस सिद्धांत को यूरोप के देशों ने ही नकार दिया है लेकिन इस देश का दुर्भाग्य देखिये कि इस देश के लोग वही सिद्धांत पढ़ते हैं और दुसरे लोगों को समझाते हैं | अब इसी सिद्धांत को यूरोप और अमेरिका पर लागू किया जाये तो बिलकुल उलट स्थिति दिखाई देती है, भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जिसकी जनसँख्या बढ़ी है पिछले पचास वर्षों में या सौ वर्षों में | दुनिया के हर देश की जनसँख्या कई गुनी बढ़ी है, अमेरिका की, फ्रांस की, जर्मनी की, जापान की, चीन की, चीन की तो सबसे ज्यादा बढ़ी है | अमेरिका की जनसँख्या पिछले 60 वर्षों में ढाई गुनी बढ़ी है, ब्रिटेन सहित यूरोप की जनसँख्या तो पिछले 60 सालों में तीन गुनी बढ़ी है, लेकिन देखने में आया है कि यूरोप और अमेरिका की आबादी बढ़ी है तीन गुनी और इसी अवधि में उनके यहाँ अमीरी बढ़ गयी है एक हजार गुनी | तो अमेरिका और यूरोप में जनसँख्या बढ़ने से पिछले साठ सालों में अमीरी आती है तो भारत में जनसँख्या बढ़ने से गरीबी क्यों आनी चाहिए और अगर भारत में जनसँख्या बढ़ने से गरीबी आती है तो यूरोप और अमेरिका में भी जनसँख्या बढ़ने से गरीबी आनी चाहिए थी, है ना ? क्योंकि सिद्धांत दुनिया में सर्वमान्य हुआ करते हैं, सिद्धांत कभी किसी देश की सीमाओं में नहीं बंधा करते | अगर सिद्धांत है कि जनसँख्या बढ़ने से गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी बढती है तो जनसँख्या तो दुनिया के तमाम देशों की बढ़ी है लेकिन भारत छोड़ कर बहुत सारे देशों में देखा जा रहा है कि वहां जनसँख्या के साथ-साथ अमीरी बढ़ रही है | आप सुनेंगे तो हैरान हो जायेंगे कि डेनमार्क, नार्वे, स्वेडेन आदि देशों में वहां की सरकारें जनसँख्या बढाने के लिए अभियान चलाती है, बच्चों के पैदा होने से उनके यहाँ नौकरी में प्रोमोशन तय होता है, जिसके जितने ज्यादा बच्चे उनकी उतनी ज्यादा प्रोमोशन | हमारे यहाँ उल्टा क्यों है ? हमारे यहाँ कहा जाता है कि बच्चे कम पैदा करो | अगर ये देश ज्यादा बच्चे पैदा कर के अमीर हो सकते हैं तो भारत ज्यादा बच्चे पैदा कर के अमीर क्यों नहीं हो सकता ? या अगर वो ज्यादा बच्चे पैदा कर के गरीब नहीं हो रहे हैं तो हम क्यों ज्यादा बच्चे पैदा कर के गरीब हो रहे हैं ? ये बड़ा प्रश्न है, जिसको मैं आपके सामने रखना चाहता हूँ और मैं ये इसलिए करना चाहता हूँ कि हमारे मन में बहुत सारी गलतफहमियां बैठी हुई है जनसँख्या को लेकर और गरीबी को लेकर | मैं आपसे निवेदन ये करना चाहता हूँ कि जनसँख्या का किसी भी देश की गरीबी से कुछ लेना-देना नहीं होता है, बेरोजगारी का जनसँख्या से कोई सम्बन्ध नहीं है | </div><div><br />
</div><div>आपको कभी चीन जाने का मौका मिले तो देखिएगा कि चीन की सरकार अपने लोगों को कभी भी अभिशाप नहीं मानती, चीन की सरकार तो ये कहती है कि जितने ज्यादा हाथ उतना ज्यादा उत्पादन और उन्होंने ये सिद्ध कर के दुनिया को दिखाया भी है, तो भारत में ये सिद्धांत कि "जितने ज्यादा हाथ तो उतना ज्यादा उत्पादन" क्यों नहीं चल सकता ? कारण उसका एक है , कारण ये है कि चीन की सरकार ने अपनी सारी व्यवस्था को ऐसे बनाया है जिसमे अधिक से अधिक लोगों को काम मिल सके और भारत सरकार ने अपनी व्यवस्था को ऐसे बनाया है जिसमे कम से कम लोगों को काम मिल सके | बस इतना ही फर्क है | हमारे देश की पूरी की पूरी व्यवस्था, चाहे वो आर्थिक हो , चाहे पूरी कृषि व्यवस्था हो ये आज ऐसे ढांचे में ढाली जा रही है जिसमे कम से कम हाथों को काम मिल सके | हम फंसे हैं यूरोपियन व्यवस्था पर मतलब Mass Production का सिद्धांत हमने अपनाया है और चीन ने सिद्धांत अपनाया है Production By Masses का | हमारे देश के एकमात्र महान राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहब ने Nano Technology अपनाने के लिए कहा लेकिन उनकी बात शायद किसी के समझ में नहीं आयी, ये Nano Technology जो है वो यही Production By Masses का Concept है | हमें बड़े नहीं छोटे (Nano) उद्योगों की जरूरत है जिससे हम ज्यादा से ज्यादा लोगो को काम दे सके | हम लोग कम लोगों से ज्यादा उत्पादन लेना चाहते है इसलिए Automisation की बात है, Computerisation की बात है, Centralisation की बात है और चीन में इसका ठीक उलट है, मतलब ज्यादा लोगों द्वारा ज्यादा उत्पादन तो उनके यहाँ Decentralisation की बात है,Labour Intensive Technology की बात है, हमारे यहाँ ठीक उल्टा है, हमारे यहाँ Capital Intensive Technology की बात है | हमारी व्यवस्था गड़बड़ है लोग गड़बड़ नहीं हैं | जनसँख्या हमारी बढ़ गयी है तो इसमें लोगों का कसूर नहीं है, हमारी व्यवस्था निकम्मी और नाकारा है जो बढे हुए लोगों को काम नहीं दे पाते और AC रूम में बैठ के गलियां देते हैं कि ज्यादा लोग पैदा हो गए इस देश में | अगर आप हर हाथ को काम देने की व्यवस्था इस देश में लगायें तो भारत का कोई भी आदमी आपको बेकार बैठा नजर नहीं आएगा | आप जानते हैं कि दुनिया में हर काम हाथ से ही होते हैं, कम्प्यूटर भी हाथों से ही चला करता है, कम्प्यूटर को कम्प्यूटर नहीं चला सकता है कभी भी | कम्प्यूटर चलाने के लिए भी किसी का दिमाग लगता है और किसी के हाथ लगते हैं और इश्वर ने आपको जो दिमाग और हाथ दिया है आप उसी को अभिशाप मान के बैठे हैं तो ये आपके लिए दुर्भाग्य की बात है किसी दुसरे के लिए नहीं | ये हमारी समझ का फेर है, हमारी बुद्धि का फेर है | और इस समझ और बुद्धि का फेर हुआ कैसे है तो वो परदेशों से आने वाला विचार है जिसने हमें उड़ा दिया है एक हवा में | कोई अमेरिका से कह देता है या यूरोप से कह देता है कि भारत को जनसँख्या कम करनी चाहिए तो हम लग जाते हैं जनसँख्या कम करने में | आप हौलैंड जायेंगे तो पाएंगे कि वहां प्रति स्क्वायर किलोमीटर में सबसे ज्यादा लोग रहते हैं, लन्दन और टोकियो जैसे शहर में दुनिया की सबसे घनी आबादी रहती है, लेकिन उनको चिंता नहीं है अपनी आबादी कम करने की, उनके यहाँ आबादी कम करने का कोई कैम्पेन नहीं चला करता, और हम मूर्खो के मुर्ख इसी काम में लगे हैं | हम अपनी अक्ल से, अपने दिमाग से, अपने देश की परिस्थितियों के हिसाब से कभी सोच के नहीं देखते हैं कि हमारे लिए ये ठीक है क्या ? जो वहां से कहा जा रहा है हम उसे ही आँख मूंद के स्वीकार कर ले रहे हैं | भारत में हुआ कुछ ऐसा ही है | आजादी के बाद जो व्यवस्था बनाई गयी है इस व्यवस्था में ज्यादा से ज्यादा लोगों को बेकारी ही मिल सकती है, रोजगार नहीं मिल सकता | भारत की व्यवस्था इस तरह की बनाई गयी है जिसमे ज्यादा से ज्यादा लोगों को गरीबी ही मिल सकती है, अमीरी नहीं मिल सकती और अगर अमीरी मिलेगी भी तो थोड़े लोगों को जो शायद एक प्रतिशत भी नहीं हैं पुरे भारत की आबादी की | हो सकता है भारत में एक करोड़ लोग बहुत अमीर हों लेकिन 99 करोड़ लोगों को आप हमेशा जीवन में संघर्ष करते हुए ही पाएंगे, मुंबई में एक उद्योगपति हैं जो अपनी पत्नी को जन्मदिन के गिफ्ट के रूप में बोईंग विमान दे देते हैं और उसी मुंबई में धारावी के रूप में एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी झोपड़ी भी है, जहाँ 10x10 के रूम में दो पीढियां रहती हैं | व्यवस्था हमारी ऐसी है और ये व्यवस्था हमारी जो ऐसी है जो गरीबी देती है, बेकारी देती है, भुखमरी देती है वो दुर्भाग्य से अंग्रेजों की बनाई हुई है जिसको हमें 1947 में तोड़ देना चाहिए था उसको हम तोड़ नहीं पाए और वही व्यवस्था चलती चली आयी है और उस व्यवस्था के विरोधाभास हमको दिखाई तो देते हैं लेकिन उस व्यवस्था को ठीक करने का रास्ता नहीं दिखाई देता इसलिए हम हमारी जनसँख्या को कोसते रहते हैं, अपने लोगों को कोसते रहते हैं, व्यवस्था की गलती, व्यवस्था की खामी हमको दिखाई देना बंद हो चूकी है, मुश्किल हमारी व्यवस्था में है, लोगों में नहीं | इस लेख को यहीं विराम देता हूँ नहीं तो बोझिल हो जायेगा | अगली बार उस व्यवस्था के बारे में बताऊंगा जो हमारी इस हालत के लिए जिम्मेवार है | </div><div><br />
</div><div>देखिये जब देश की आजादी की लड़ाई चल रही थी तो पूरा भारत उस लड़ाई में नहीं लगा था कुछ लोगों ने उस लड़ाई को लड़ा और हमें आजादी दिलाई थी अब हमें स्वराज्य के लिए लड़ना होगा, स्वराज्य मतलब अपना राज्य, अपनी व्यवस्था, तभी हम सफल हो पाएंगे एक राष्ट्र के रूप में, और आप इसमें पुरे भारत से उम्मीद मत करियेगा कि वो इसमें शामिल हो जायेगा लेकिन हाँ सभी भारतीयों के समर्थन की जरूरत जरूर होगी | और किसी क्रांति के पहले एक वैचारिक क्रांति होती है और मैं अभी उसी वैचारिक क्रांति के लिए ही आपको प्रेरित कर रहा हूँ | वैचारिक क्रांति कैसे होगी ? वैचारिक क्रांति तब होगी जब ज्यादा से ज्यादा लोगों तक ऐसी बातें पहुंचाई जाये और मुझे उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप इस मेल को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएंगे |</div><div><br />
</div><div>जय हिंद<br />
राजीव दीक्षित </div></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-64623691169286509982012-08-23T02:13:00.000-07:002012-08-23T02:13:25.999-07:00भारतीय संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली (Indian Parliamentary Democratic System)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: small;"><b><span style="color: red;"></span></b></span><span style="font-size: small;">अंग्रेजों का शासन जब पूरी दुनिया में चल रहा था तो अँग्रेज़ों ने गुलाम देशों का तीन तरह का ग्रुप बनाया था | <span style="color: red;">एक ग्रुप था</span> कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलॅंड का, ये कहलाती थी Self Governing Colonies, मतलब ये देश कुछ-कुछ अपने हित के क़ानून भी बना सकते थे, लेकिन ज्यादा कानून अंग्रेज ही बनाते थे, <span style="color: red;">दूसरा ग्रुप था,</span> सिलोन (श्रीलंका), मौरीसस, सूरीनाम, वेस्ट इंडियन देशों, आदि का, ये कहलाती थी, Crown Colonies, और <span style="color: red;">तीसरे ग्रुप </span>मे भारत ( पाकिस्तान और बांग्लादेश ) था, ये कहलाती थी Depending Colonies, ये गुलामी का सबसे खराब सिस्टम था, इसमे ये होता था कि हमको अपने लिए, अपने देश के लिए, अपनी व्यवस्थाओं के लिए कुछ भी करने का अधिकार ही नहीं था, कोई कानून नहीं बना सकते थे हम, सब कुछ अँग्रेज़ों के हाथ मे था, मतलब हम पूरी तरह अँग्रेज़ों के Dependent थे | अंग्रेजों ने अपनी सरकार 1760 में स्थापित की थी भारत में, लेकिन वो कंपनी की सरकार थी, अंग्रेजों की सरकार नहीं थी वो, लेकिन छोटे-मोटे कानून उन्होंने उसी समय से बनाना शुरू कर दिया था और <span style="color: red;">उस समय से लेकर 1947 तक अंग्रेजों ने जो 34735 कानून बनाये थे | </span>उन्होंने जो व्यवस्था बनाई थी हमें गुलाम बनाने के लिए, हमारे ऊपर शासन करने के लिए, दुर्भाग्य से आज भी हमारे देश में सब के सब कानून, सब की सब व्यवस्थाएं वैसे के वैसे ही चल रहीं हैं जैसे अंग्रेजों के समय चला करती थीं | </span> <span style="font-size: small;"><br />
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जब हमारे देश में अंग्रेजों का शासन था तो हमारे जितने भी क्रन्तिकारी थे उन सबका मानना था कि भारत की गरीबी, भुखमरी और बेकारी तभी ख़त्म होगी जब अंग्रेज यहाँ से जायेंगे और हम हमारी व्यवस्था लायेंगे, हम उन सब तंत्रों को उखाड़ फेकेंगे जिससे गरीबी, बेकारी, भुखमरी पैदा हो रही है | लेकिन हुआ क्या ? हमारे देश में आज भी वही व्यवस्था चल रही है जो अंग्रेजों ने गरीबी, बेकारी और भुखमरी पैदा करने के लिए चलाया था | क्रांतिकारियों का सपना बस सपना बन के रह गया लगता है | <span style="color: red;">भारत के लोग व्यवस्था की खामियों के बारे में बात नहीं करते हैं बल्कि अपनी जनसँख्या को गाली देते हैं, </span>जब कि ये कोई समस्या नहीं है, समस्या वहां से शुरू होती जब हम अपने संसाधनों का बटवारा अपने लोगों में न्यायपूर्ण तरीके से नहीं कर पाते हैं | जिस जनसँख्या के लिए समान बटवारा होना चाहिए जैसा कि हमारे संविधान में लिखा हुआ है, वो नहीं हो पाया है हमारे देश में | यूरोप और अमेरिका में संसाधनों का समान बटवारा आप पाएंगे लेकिन हमारे यहाँ नहीं | यूरोप और अमेरिका में भी भारत की ही तरह टैक्स लिया जाता है लेकिन वहां जब टैक्स को खर्च किया जाता है तो वो Per capita Distribution के हिसाब से होता है | Collection अगर per capita के हिसाब से है तो distribution भी per capita के हिसाब से है लेकिन भारत में collection तो per capita के हिसाब से है लेकिन distribution, per capita के हिसाब से नहीं है | अगर ये distribution, per capita के हिसाब से होता तो छत्तीसगढ़ में, बिहार में, झारखण्ड में, ओड़िसा में इतनी भयंकर गरीबी नहीं होती | तो <span style="color: red;">अपने यहाँ समस्या जनसँख्या से नहीं उस व्यवस्था से है जो ऐसे हालात पैदा करती है और हमारी व्यवस्था कैसी निकम्मी और नकारा है उसका ताजा उदहारण मैं आपको देता हूँ |</span> आप पजाब जाएँ,हरियाणा जाएँ तो आप देखेंगे कि FCI का जो गोदाम होता है वहां अनाज इतना ज्यादा होता है कि उनको रखने की जगह नहीं होती है बोरे के बोरे अनाज खुले में पड़े होते है और उसको या तो चूहे खाते रहते हैं या सड़ रहे होते हैं | आपको याद होगा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि" इन अनाजों को उन गरीबों के बीच क्यों नहीं बाँट दिया जा रहा है जो भूख से मर रहे हैं" लेकिन वो आज तक नहीं हो पाया | ऐसा क्यों हुआ ? <span style="color: red;">क्योंकि हमारे पास वैसा कोई distribution system नहीं है और साथ ही साथ हमारे देश के नेता नहीं चाहते कि गरीबी ख़त्म हो क्योंकि गरीबी और गरीब ख़त्म हो जायेंगे तो इन नेताओं का झंडा कौन ढोयेगा, नारे कौन लगाएगा, उनकी सभाओं में कौन जायेगा ? इसलिए इन नेताओं के लिए सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी कोई मायने नहीं रखता | </span><br />
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भारत सरकार की विफलता का एक दूसरा उदहारण देता हूँ, भारत की सरकार ने 1952 से एक पंचवार्षिक योजना शुरू की जो औसतन 10 लाख करोड़ का होता है | अभी तक हमारे देश में ग्यारह पंचवार्षिक योजनायें लागू हो चूकी हैं, मतलब अभी तक हमारी सरकार </span> <span style="font-size: small;"><b>110 लाख करोड़ रूपये </b>खर्च कर चूकी है और गरीबी, बेकारी, भुखमरी रुकने का नाम ही नहीं ले रही है | अंग्रेज जब थे तो ऐसी कोई योजना नहीं थी इस देश में क्योंकि वो विकास पर कुछ भी खर्च नहीं करते थे और तब हमारी गरीबी नियंत्रण में थी लेकिन जब से हमने पंचवार्षिक योजना शुरू की हमारी गरीबी भयंकर रूप से बढ़ने लगी और बढती ही जा रही है कहीं रुकने का नाम ही नहीं ले रही है |<span style="color: red;"> अगर भारत सरकार उन पैसों को (जिसे उसने इन पंचवार्षिक योजनायों पर खर्च किया) सीधा हमारे लोगों को बाँट देती तो आज एक-एक भारतीय के पास नौ-साढ़े नौ लाख रूपये तो होते ही (मैं एक आदमी की बात कर रहा हूँ एक परिवार की नहीं) और सभी भारतीय कम से कम लखपति तो होते ही| </span><br />
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<span style="color: red;">भारत की समस्या यहाँ की जनसँख्या नहीं है, यहाँ के लोग नहीं हैं, यहाँ की जातियां नहीं हैं, यहाँ के धर्म नहीं हैं बल्कि हमारा तंत्र है जिसको हम सही से नहीं चला पाते या कहे कि हमको चलाना नहीं आता | </span>हमने जो व्यवस्था अपनाई है वो दुर्भाग्य से अंग्रेजों का है और अंग्रेजों ने ये व्यवस्था अपनाई थी भारत में गरीबी, बेकारी, भुखमरी पैदा करने के लिए | आप कहेंगे कि अंग्रेजों ने कौन सी व्यवस्था हमको दी | जिसको हम संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली (Parliamentary Democratic System) कहते हैं वो अंग्रेजों की देन हैं हमें | इसी तंत्र को इंग्लैंड में वेस्टमिन्स्टर सिस्टम कहते हैं, <span style="color: red;">इसी तंत्र को गाँधी जी बाँझ और वैश्या कहा करते थे (इसका अर्थ तो आप समझ गए होंगे) |</span> और यूरोप का ये लोकतंत्र निकला कहाँ से है ? तो वो निकला है डाइनिंग टेबल से, जी हाँ <span style="color: red;">खाने के मेज से यूरोप का लोकतंत्र निकला है |</span> राजनीति शास्त्र के विद्यार्थी अगर इस पत्र को पढ़ रहे होंगे तो तुरत समझ जायेंगे, क्योंकि हमारे यहाँ राजनीति शास्त्र में ये पढाया जाता है और 100 नंबर के प्रश्नपत्र में इस पर बीस नंबर का सवाल आता है कि "बताइए कि यूरोप का प्रजातंत्र कहाँ से निकला ? विस्तार से वर्णन कीजिये " | तो उसका उत्तर है ----यूरोप का प्रजातंत्र डाइनिंग टेबल से निकला है, खाने के मेज से यूरोप के प्रजातंत्र की शुरुआत हुई है | अब खाने की मेज तो निजी जीवन का हिस्सा है और लोकतंत्र सार्वजानिक जीवन का हिस्सा है, तो निजी जीवन में जो कुछ आप डाइनिंग टेबल पर करते हैं, वही आप सार्वजानिक जीवन में करने लगे तो उसी को संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली कहते हैं, दुर्भाग्य से इसी संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली को हमने अपना लिया है, हमने इसका आविष्कार अपने देश में नहीं किया और अंग्रेजों ने ये <span style="color: red;">जो संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली हमें दी है वो कहीं से भी न संसदीय है और न लोकतांत्रिक है </span>बल्कि वो 101% Aristocratic System है | आप कहेंगे कि वो कैसे ? मैं बताता हूँ | </span> <span style="font-size: small;"><br />
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भारत के 121 करोड़ लोगों का फैसला एक आदमी करे तो वो संसदीय होगा या लोकतांत्रिक होगा ? 121 करोड़ लोगों का फैसला एक आदमी करे, जिसे हम वित्तमंत्री कहते हैं तो वो व्यवस्था लोकतांत्रिक होगा क्या ? और गलती से वो बिका हुआ हो या मीरजाफर हो तो वो लोकतांत्रिक होगा क्या ? 121 करोड़ लोगों का फैसला 121 करोड़ लोग करें तो वो आदर्श होगा, नहीं कर सकते तो 60 करोड़ लोग करें, नहीं तो 30 करोड़ लोग करें और कुछ नहीं तो एक प्रतिशत लोग तो करें | यहाँ तो वो भी नहीं है | एक व्यक्ति भारत में तय करता है कि कहाँ टैक्स लगना चाहिए, कहाँ नहीं लगना चाहिए और वो चीज संसद में पेश हो जाती है और बाकी 545 लोग जो लोकसभा में बैठे हैं और 250 लोग जो राज्य सभा में बैठे हैं वो सिर्फ बहस इस बात पर करते हैं कि कहाँ कटौती होनी चाहिए, कहाँ बढ़नी चाहिए, ये नहीं कहते कि इसको पूरा वापस ले लो क्योंकि इनको ये अधिकार नहीं है, तो ये व्यवस्था लोकतांत्रिक है क्या ? </span> <span style="font-size: small;"><br />
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एक दूसरा उदहारण देता हूँ आपको | आप अपने संसदीय क्षेत्र या विधानसभा क्षेत्र को लीजिये, मान लीजिये कि वहाँ पाँच लाख मतदाता हैं और चुनाव में खड़े होने वाले प्रत्याशियों की संख्या दस है और हमारे देश में औसत रूप से मतदान का प्रतिशत 50 (%) ही रहता है, मतलब ढाई लाख लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर मतदान किया | अब ये ढाई लाख मत इन दस प्रत्याशियों में बटा तो किसी को 75 हजार वोट तो किसी को 65 हजार वोट तो किसी को 50 हजार वोट और किसी को कुछ, किसी को कुछ वोट मिला | और जब परिणाम आया तो 75 हजार वोट पाने वाला चुनाव जीत जाता है, उस क्षेत्र में, जहाँ मतदाताओं की संख्या पाँच लाख है | मतलब कि जीतने वाला प्रत्याशी पाँच लाख मतदाताओं के क्षेत्र में 15 प्रतिशत वोट पाकर उस संसद या विधानसभा में पहुँच जाता है जहाँ बहुमत 51 % पर तय होता है | आप समझ रहे हैं न, मैं क्या कह रहा हूँ ? 15 प्रतिशत वोट पाकर कोई प्रत्याशी उस संसद या विधानसभा में पहुँच जाता है जहाँ बहुमत 51 % पर तय होती है, मतलब ये चुनाव पूरा का पूरा गैरकानूनी हुआ कि नहीं ? <br />
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और उस संसद और विधानसभा के अन्दर का हाल भी जान लीजिये | संसद में क्या होता है कि कोई विधेयक अगर पारित करना हो तो एक नियम है जिसको " कोरम पूरा होना कहते हैं " मतलब कुल सदस्यों का कम से कम 10 प्रतिशत सदन में उपस्थित होना चाहिए यानि 54 सदस्य कम से कम होने चाहिए एक विधयक को पास करने के लिए लेकिन कई बार होता क्या है कि सदन में 20 -25 सदस्य ही उपस्थित होते हैं तो इससे तो कोरम भी पूरा नहीं होता तो इस स्थिति के लिए भी एक नियम है, इसको Emergency Rule कहा जाता है, इसमें होता ये है कि उस समय-विशेष में जितने सदस्य सदन में उपस्थित हैं उनका आधा अगर उस विधेयक के पक्ष में मतदान कर दे तो कानून बन जायेगा | आप इसी को लोकतंत्र कहेंगे क्या ? मैं कोरम को ही लेता हूँ और आपसे पूछता हूँ कि अगर 27 -28 लोग मिलकर कोई विधेयक पास करा लेते हैं और 121 करोड़ लोगों के लिए कानून बन जाता है तो वो कहीं से भी लोकतांत्रिक होगा क्या ? तो <span style="color: red;">हम हमारे देश में जो लोकतांत्रिक व्यवस्था चला रहे हैं वो कहीं से भी लोकतांत्रिक नहीं है</span> और लोकतांत्रिक कैसे नहीं है उसका एक उदहारण और देता हूँ | जब चुनाव होते हैं तो हम लोग मतदान करते हैं जिसमे किसी पार्टी के प्रत्याशी को चुनते हैं यानि दुसरे को हराते हैं और जब ये लोग संसद में पहुँचते हैं तो ऐसे लोगों से गठबंधन कर लेते हैं जिसको हमने नकार दिया है | पिछले संसद में आपने देखा होगा कि कम्युनिस्ट पार्टी ने उस कांग्रेस को समर्थन देकर सरकार बनाया जिसका विरोध करके उसने लोगों का समर्थन पाया था, चाहे वो बंगाल हो, केरल हो या पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्य | ये उस राज्य/क्षेत्र की जनता का अपमान हुआ कि नहीं?| ऐसा ही अटल बिहारी वाजपेयी के सरकार के समय हुआ था | इसी को आप लोकतंत्र कहेंगे क्या ? <span style="color: red;">ये तो मजाक हो रहा है इस देश में, लोकतंत्र के नाम पर | </span></span> <span style="font-size: small;"><br />
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ये व्यवस्था कहीं से भी लोकतांत्रिक नहीं है ये दरअसल अंग्रेजों का बनाया हुआ गुलामगिरी वाला Aristocratic System है जिसमे 4 -5 लोगों को निर्णय लेने का अधिकार है बाकी तो उसे सिर्फ follow करते हैं | उनको प्रश्न पूछने का भी अधिकार नहीं है| प्रधानमंत्री ने कोई फैसला कर लिया तो उसे पूरे मंत्रिमंडल को मानना ही पड़ेगा, चाहे वो कितना ही गलत क्यों ना हो, <span style="color: red;">क्योंकि system में लिखा हुआ है कि "प्रधानमंत्री कभी गलत नहीं होता, जो फैसला वो करेंगे उसको कैबिनेट को मानना ही पड़ेगा",</span> अगर आप नहीं मान सकते तो कैबिनेट से इस्तीफा दीजिये और बाहर जाइये | यही लोकतंत्र है क्या? अभी आपने देखा कि कैसे वालमार्ट को बुलाने के लिए इन्होने कमर कस लिया है, इस पर ना राज्यों से चर्चा, न विपक्ष से सलाह और आम आदमी की इस देश में इज्ज़त क्या है वो तो इसी तरह मरने के लिए </span><span style="font-size: small;">ही </span><span style="font-size: small;">पैदा हुए है, वो तो इससे बाहर होते ही है,हमेशा की तरह, इसी को लोकतंत्र कहेंगे क्या ?</span><span style="font-size: small;"><br />
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अपने संसद में जब बहस होती है तो आप जरा ध्यान दीजियेगा | हमारे जो सांसद हैं वो किसी ड्राफ्ट पर बहस करते हैं, वो ड्राफ्ट बिल कहलाता है उसे हिंदी में विधेयक कहते हैं | तो वो जिस बिल पर बहस करते हैं उसकी ड्राफ्टिंग सेक्रेटरी करता है | संसद में सेक्रेटरी होता है वो बिल की ड्राफ्टिंग करता है, इसके पास सेक्रेटरी की एक टीम होती है | जेनरल सेक्रेटरी जो होता है उसके पास ज्वाइंट सेक्रेटरी स्तर के कई अधिकारी होते हैं, उनसे वो बिल की ड्राफ्टिंग करवाता है और ये सभी के सभी IAS ऑफिसर होते हैं | <span style="color: red;">एक बार मैंने एक सांसद महोदय से पूछा कि आप मेरे सांसद हैं, मेरे प्रतिनिधि हैं, आप बहस करते हैं, तो जिस बात पर आप बहस करते हैं उसकी ड्राफ्टिंग खुद क्यों नहीं करते ?</span> क्या आप जानते हैं कि हमारे सांसद जिस बिल पर बहस करते हैं उसकी ड्राफ्टिंग वो खुद नहीं कर सकते, वो सिर्फ बहस करते हैं और बहस के दौरान उन्हें लगे कि xyz point गलत है या यहाँ कौमा छुटा है तो फिर उन्हें (सांसद/मंत्री को) एक आवेदन देना पड़ेगा, फिर बिल सेक्रेटरी के पास वापस जायेगा, सेक्रेटरी उस पर विचार करेगा, ज्वाइंट सेक्रेटरी की बैठक बुलाएगा, हो सकता है कि वो बैठक तीन महीने तक चलता रहे, नोटिफिकेशन जारी करेगा और तब कौमा बदलेगा या कोई त्रुटि होगी उसे ठीक किया जायेगा, उसके बाद ये बिल वापस सदन में आएगा | <span style="color: red;">कितना समय लगा ? तीन महीना और वो भी एक कौमा बदलने में | </span>अगर सांसदों को ये अधिकार होता तो वो क्या करते ? वो कलम निकालते और तुरत उस कौमा को खुद डाल देते या xyz point गलत है उसे बदल देते | लेकिन वो ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें ये अधिकार ही नहीं है, क्योंकि नियम नहीं है और ये नियम अंग्रेजों ने बनाया था | जब हमारा प्रतिनिधि हमारे लिए ड्राफ्ट नहीं बना सकता, जिनका प्रतिनिधित्व वो कर रहा है उनके हित का ख्याल कर के वो ड्राफ्ट नहीं बना सकता तो फिर वो हमारा प्रतिनिधि हुआ कैसे ? सिर्फ वो बहस कर सकता है, <span style="color: red;">कोई लाउडस्पीकर थोड़े ही भेजा है हमने ? </span></span> <span style="font-size: small;"><br />
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ये तो था संसद और हमारे प्रतिनिधियों का हाल अब उसके नीचे का हाल भी देख लीजिये | हमारे यहाँ गाँव में सबसे छोटा अधिकारी होता है "पटवारी" (अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से ये जाने जाते हैं) तो आप देखिये कि ये सिस्टम क्या है ? हमारे यहाँ के पटवारी का जवाबदेही/ accountability किसके प्रति है तो वो अपने से ऊपर के अधिकारी के प्रति जवाबदेह है, वो ऊपर का अधिकारी BDO हो सकता है, SDO हो सकता है या SDM हो सकता है (अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम हैं इनका) और इन अधिकारियों की जवाबदेही जिलाधिकारी के प्रति होती है, जिलाधिकारी की जवाबदेही कमिश्नर के प्रति होती है, कमिश्नर की जवाबदेही राज्य के चीफ सेक्रेटरी के प्रति होती है, चीफ सेक्रेटरी की जवाबदेही कैबिनेट सेक्रेटरी के प्रति और कैबिनेट सेक्रेटरी की जवाबदेही किसी के प्रति नहीं, बस किस्सा ख़त्म | <span style="color: red;">क्या आप जानते हैं कि भारत का कैबिनेट सेक्रेटरी किसी के प्रति जवाबदेह नहीं होता, क्योंकि अंग्रेज जो कानून बना के गए हैं उसमे यही कहा गया है |</span> अब आप देखिये कि मेरा जो पटवारी है वो BDO /SDO /SDM को खुश करने में लगा रहता है , BDO /SDO /SDM जो हैं वो जिलाधिकारी को खुश करने में लगा रहता है, जिलाधिकारी जो है वो कमिश्नर को खुश करने में लगा रहता है, कमिश्नर चीफ सेक्रेटरी को खुश करने में लगा रहता है, चीफ सेक्रेटरी जो है वो कैबिनेट सेक्रेटरी को खुश करने में लगा रहता है | इन सब को अपने से ऊपर के अधिकारी को खुश करने की चिंता है क्योंकि वो उनकी CR ख़राब कर सकता है, Promotion रुक जायेगा, तबादला हो जायेगा | <span style="color: red;">उसको गाँव के लोगों की कोई चिंता नहीं है, गाँव के लोगों के ऊपर अत्याचार करेगा, घूस लेगा, रिश्वत लेगा, क्योंकि वो जानता है कि गाँव वालों के हाथ में कुछ नहीं है, ना वो मेरा CR लिख सकते हैं, ना promotion दे सकते हैं, ना मेरा तबादला कर सकते हैं | </span>सब एक दुसरे को खुश करने में लगे रहते हैं और ये सब मेरे और आपके पैसे से पगार (salary) पा रहे हैं, हमको खुश नहीं रखेंगे, हम और आप उनके पगार के लिए पैसा दे रहे हैं टैक्स के रूप में | क्यों नहीं खुश रखेंगे ? <span style="color: red;">क्योंकि उनकी जवाबदेही अपने उच्च अधिकारियों के प्रति है ना कि हमारे प्रति, क्योंकि कानून ऐसा है </span>और इसीलिए भ्रष्टाचार है वहां, आप कैसे रोकेंगे भ्रष्टाचार को ? भ्रष्टाचार तो होगा ही |</span> <span style="font-size: small;"><br />
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हमारे यहाँ जो न्याय व्यवस्था है वो IPC, CrPC, CPC पर आधारित है जो यूरोप से लिया गया है और ये प्लेटो के laws पुस्तक पर आधारित है जिसको हमने बिना अक्ल लगाये ले लिया है | <span style="color: red;">आप देखिएगा कि भारत में जो न्याय व्यवस्था चलती है उसमे पैसे वालों को ही न्याय मिलता है |</span> हमारे पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलम साहब जब राष्ट्रपति थे तो उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा था और पूछा था कि "क्या कारण है कि आजादी के बाद के 50 सालों में गरीबों को ही फाँसी हो रही है, किसी अमीर को फाँसी नहीं हुई जबकि उन्होंने गरीबों से ज्यादा अपराध किये हैं " अब मुख्य न्यायाधीश साहब ने जवाब दिया कि नहीं मुझे नहीं मालूम लेकिन मेरे पास जवाब है | जवाब ये है कि <span style="color: red;">"हमने कानून और न्याय व्यवस्था अंग्रेजों से ली है और उनके यहाँ न्याय तो पैसे वालों को ही मिलता है, ताकतवर को मिलता है, गरीब को तो न्याय लेने का अधिकार ही नहीं है क्योंकि उनके दार्शनिक प्लेटो के अनुसार गरीबों में आत्मा ही नहीं होती है " | </span>ऐसी व्यवस्था की नक़ल करके हम सोचे कि सुख, समृद्धि और शांति आएगी तो मुझे नहीं लगता कि ऐसा होने वाला है | </span> <span style="font-size: small;"><br />
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कुछ छोटी-छोटी लेकिन हास्यास्पद बाते आपको बताता हूँ कि कैसे अंग्रेजों की व्यवस्था को हमारे यहाँ थोपा गया है और बड़े मजे से चल रहा है, आज भी, बिना रुके, बिना बदले:-| </span> <br />
<ul><li><span style="font-size: small;">अंग्रेजों ने कानून बना के जिनको अनुसूचित जाति घोषित कर दिया वो आज भी अनुसूचित जाति में हैं, जिनको कानून बनाकर अनुसूचित जनजाति बना दिया वो आज भी अनुसूचित जनजाति में हैं | </span></li>
<li><span style="font-size: small;">अंग्रेजों ने जो हिन्दू कोड बिल तय किया, वही हिन्दू कोड बिल आज भी चलता है पूरे देश में, और वो कहते थे कि मुस्लिम कोड बिल हमें बनाना नहीं है तो वो आज तक नहीं बना, अब बनना चाहिए कि नहीं वो अलग मुद्दा है लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि वो जो तय कर के गए वो आज भी चल रहा है | <br />
</span></li>
<li><span style="font-size: small;">यूरोप में रविवार को छुट्टी होती है क्योंकि उन्हें चर्च जाना होता है, हम क्यों उस व्यवस्था को ढो रहे हैं? हमारे लिए तो सब दिन एक समान है, रविवार की छुट्टी तो बंद होनी चाहिए, हम उनकी मान्यताओं को क्यों ढो रहे हैं | छुट्टी ही देनी है तो किसी और दिन को हम तय कर लेंगे | </span></li>
<li><span style="font-size: small;">यूरोप में ठण्ड बहुत होती है और उनके यहाँ सूर्य साल के आठ-नौ महीने नहीं निकालता तो ठण्ड के कारण लोग दफ्तर देर से जाते हैं, दफ्तरों में काम देर से शुरू होता है, हम क्यों उस व्यवस्था को चला रहे हैं अपने देश में ? जब कि हमारे यहाँ साल में नौ-दस महीने गर्मी पड़ती है हमें तो दफ्तर सवेरे शुरू करना चाहिए | हमारे यहाँ तो सवेरे का समय सबसे अच्छा माना जाता है , क्यों हमें दस-ग्यारह बजे दफ्तर का काम शुरू करना चाहिए जब आधा दिन निकल चुका होता है और हमारी आधी शक्ति ख़त्म हो </span><span style="font-size: small;">चुकी </span><span style="font-size: small;">होती है | <span style="color: red;">जब देश के सत्तर करोड़ किसान सूर्योदय के साथ काम शुरू कर सकते हैं तो दस-बारह करोड़ सरकारी कर्मचारी क्यों नहीं कर सकते ? </span></span></li>
<li><span style="font-size: small;">हमारे यहाँ बजट फ़रवरी के अंत में आता है, क्यों आना चाहिए फ़रवरी में ? उनके यहाँ ऐसा होता है तो उसकी वजह है, वजह ये है कि उनका नया साल अप्रैल से शुरू होता है और उनको अपने लोगों को अप्रैल फूल बनाना होता है, हम क्यों वो व्यवस्था चला रहे हैं, हमारा तो नया साल दिवाली से शुरू होता है तो हमारा बजट दिवाली को आना चाहिए | </span></li>
<li><span style="font-size: small;">हम उनकी मान्यताओं में फंसे हैं और जनवरी-फ़रवरी के हिसाब से महीने मानते हैं, क्यों ऐसा होना चाहिए ? जनवरी का क्या मतलब होता है कोई बता सकता है ? कोई नहीं जानता लेकिन आप चैत्र, बैसाख, ज्येष्ठ, असाढ़, सावन आदि का मतलब पूछेंगे तो मैं बता सकता हूँ | और मूर्खों के महीनों के नाम देखिये कैसे-कैसे है --अक्टूबर को लीजिये, अक्टूबर बना है OCT से, ये ग्रीक का शब्द है, इसका मतलब होता है आठ और अक्टूबर महीना कौन सा है ? दसवां | सितम्बर बना है SEPT शब्द से मतलब होता है सात और महीना है नौवां, ऐसे ही नवम्बर है, ये बना है NOV से जिसका मतलब है नौ और महीना है ग्यारहवां, क्या मुर्खता है ? कभी सोचा ही नहीं हमने | </span></li>
</ul><span style="font-size: small;"><br />
<span style="color: red;">तो सिस्टम ऐसा है अपना, और ये सिस्टम इसी तरह अंग्रेज चलाते थे तो उनकी मजबूरी थी कि 50 हजार अंग्रेजों को 20 -34 करोड़ भारतीयों पर शासन करना था, इसीलिए उन्होंने ऐसा सिस्टम बनाया था | </span>तो 50 हजार लोग 20 -34 करोड़ लोगों पर शासन करेंगे तो उसके लिए उसी तरीके के नियम कानून बनेंगे और वही नियम कानून अब हम चलाएंगे तो परिणाम तो वही निकलेगा जो उस ज़माने में आता था | सिस्टम तो वही हैं ना? तो प्रोडक्ट भी वही निकलेगा | हमने मशीन नहीं बदला, मशीन हम वही इस्तेमाल कर रहे हैं जो अंग्रेज करते थे | कई बार मैं मजाक में कहता हूँ कि हमने कार नहीं बदली, केवल ड्राइवर बदल लिया है | जो कार अंग्रेज चलाते थे वही कार जवाहर लाल नेहरु से लेकर मनमोहन सिंह तक जितने प्रधानमंत्री हुए सब ने चलाया | <span style="color: red;">अब सिस्टम नहीं बदलेंगे तो आप किसी को भी ड्राइवर बनाके बिठाएंगे परिणाम वही निकलेगा | आप मुझे भी बैठाएंगे तो परिणाम यही आएगा, नए परिणाम की अपेक्षा मत करियेगा</span> | परिणाम नया चाहिए तो सिस्टम बदलना होगा और उसके लिए प्रयास नहीं करेंगे तो हमारे आँखों के सामने यही तस्वीर आती रहेगी और हम खून के आंसू रोते रहेंगे | गरीबी, बेकारी, भुखमरी होने ही वाली है क्योंकि अंग्रेजों ने जो सिस्टम चलाया उसमे से गरीबी निकलने ही वाली है, बेकारी निकलने ही वाली है, भुखमरी होने ही वाली है, <span style="color: red;">क्योंकि वो यही चाहते थे और इसी हिसाब से उन्होंने ये सिस्टम बनाया था और उसी हिसाब से सिस्टम चलाते थे</span> | <br />
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अब आप पूछेंगे कि फिर क्या होना चाहिए ? मेरे हिसाब से आज के समय में सबसे महत्वपूर्ण है भारत के उन नियम-कानूनों को बदलना जो आज भी बिना फुल स्टॉप और कौमा बदले हुए चल रहे हैं | <span style="color: red;">हमने संविधान बना लिया लेकिन वो चलता उसी नियम-कानून से है जो अंग्रेज तय कर के चले गए | </span>क्योंकि संविधान अपने आप में कोई चीज नहीं है, संविधान से अलग जो नियम और कानून हैं वो तय करते हैं कि देश कैसे चलना चाहिए, संविधान में तो बहुत सी अमूर्त बाते हैं और वो नियम के हिसाब से follow की जाती है पूरे देश में | तो अगर वो नियम और कानून नहीं बदलते हैं तो सिस्टम बदलने का प्रश्न ही नहीं है | आप कहते रहिये, संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली, वो आपकी खुशफहमी के लिए है दरअसल वो 101% गुलामगिरी का Aristocratic System है |</span> <span style="font-size: small;"><b><span style="color: red;"><br />
करना क्या है ?</span></b> <br />
अब भारत के लोगों को क्या करना चाहिए, तो मैं इस मान्यता का हूँ कि हमको बहुत शांत भाव से, प्रशांत भाव से अपने व्यवस्था (system ) की समीक्षा (analysis) करनी होगी, और व्यवस्था की समीक्षा दो आधार पर होनी चाहिए, गाली-गलौज करके नहीं | <span style="color: red;">एक तरीका तो ये हो सकता है कि हम गालियाँ दे इस व्यवस्था को, तो ठीक है, दीजिये, लेकिन उसमे से कुछ निकलने वाला नहीं है या फिर रोते रहिये कि ये गलत है, वो गलत है, वो तो होने ही वाला है | </span>जैसे कई बार हम कहते हैं कि भ्रष्टाचार है, अब जिस सिस्टम में एक ऑफिसर अपने द्वारा सेवा की जाने वाली जनता के प्रति जवाबदेह नहीं है तो भ्रष्टाचार तो बनेगा ही वहां |<span style="color: red;"> भ्रष्टाचार बनाने के लिए ही तो ये सिस्टम बनाया था अंग्रेजों ने, आप इस सिस्टम में सदाचार की उम्मीद थोड़े ही कर सकते हैं, भ्रष्टाचार ही निकलेगा पूरे सिस्टम में से |</span> अगर आप चाहते हैं कि भ्रष्टाचार, बेकारी, भुखमरी ख़त्म हो तो इस सिस्टम को बदलिए तो सिस्टम बदलने का एक सामान्य सा सिद्धांत है कि जो कुछ अंग्रेज चलाते थे उसको उठाके फ़ेंक देना और अपने हिसाब से नया बनाना | अंग्रेजों ने कानून बनाया कि सांसद बिल की ड्राफ्टिंग नहीं कर सकते तो हम उस कानून को उठाके फेंक दे और हम तय कर ले कि हमारे बिल की ड्राफ्टिंग हमारे सांसद करेंगे, हमें ज्वाइंट सेक्रेटरी की जरूरत नहीं है, हटाओ इस पोस्ट को | (एक बात और आप जान लीजिये कि हमारे सांसद जब JPC के तहत कोई रिपोर्ट बनाते हैं तो वो एकदम सटीक और सच होता है, ये आप किसी भी JPC की रिपोर्ट पढ़के समझ सकते हैं, ऐसा नहीं है कि हमारे सांसदों में ये गुण नहीं है) अंग्रेजों ने तय किया कि पटवारी की जवाबदेही SDO के प्रति होगी, हम तय करेंगे कि पटवारी की जवाबदेही गाँव के पंचायत के प्रति होगी, उसकी CR गाँव के लोग लिखेंगे, पटवारी अगर गाँव के पंचायत के प्रति जवाबदेह होगा तो हमेशा उसको गाँव के पंचायत की ख़ुशी देखनी होगी | भ्रष्टाचार अपने आप ख़त्म हो जायेगा | SDO को डिविजन के लोगों के प्रति जवाबदेह बना देना होगा, उसकी CR डिविजन के लोग तैयार करेंगे, जिलाधिकारी की जवाबदेही उस जिले की जनता के प्रति होगी, उसकी CR जिले के लोग तैयार करेंगे, आप देख लीजियेगा जिलाधिकारी सीधा काम करना शुरू कर देंगे | इसमें कुछ मुश्किल नहीं है, ये बदलाव बहुत आसान है | इसके अलावा अंग्रेजों द्वारा जो Service Manual छोड़ा गया है, जिसमे Police Manual है, Jail Manual है, जिसमे 14 -15 हजार पन्ने हैं, उसको भारत के जरूरत और मान्यताओं के हिसाब से बना लेना है | <br />
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<span style="color: red;">अभी जो भारत का लोकतंत्र है, ये लोकतंत्र तो नहीं चलने वाला,</span> क्योंकि ये मूर्खता पर आधारित तंत्र है, ये चलेगा तो देश का नाश ही करेगा | महर्षि चाणक्य का एक बहुत सुन्दर सूत्र है जिसमे वो कहते हैं कि " जब अज्ञानी (मुर्ख) लोग ज्ञानियों पर शासन करने लगे तो उस देश का सर्वनाश निश्चित है " | तो इस देश को तो बचाना ही है, तो बचायेंगे कैसे ? हम जहाँ रहते हैं वहां पर ऐसे लोगों को चुने जिनमे धर्म,संस्कृति,सभ्यता की समझ हो, जो हमारे और दूसरे देशों की संस्कृति और सभ्यता और धर्म में अंतर जानते हों, भारत को जानते हों, भारतीयता क्या है इसको पहचानते हों, कम से कम धर्म के दस लक्षण उन्हें मालूम हो ( धैर्य, क्षमा, संयम, चोरी न करना, शौच (स्वच्छता), इन्द्रियों को वश मे रखना, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना; ये धर्म के दस लक्षण हैं।) , उनके डिग्री से हमें कोई मतलब नहीं है क्योंकि कई बार डिग्री लिए हुए लोग महामूर्ख निकल जाते हैं | और दूसरी योग्यता कि वो "लंगोट से पक्के हों और जेब से पक्के हों" मतलब स्ख्लन्शील ना हों, जब स्खलित लोग ऊँचे पदों पर पहुंचते हैं तो बंटाधार ही करते हैं, इसके बहुत से उदहारण इस देश में उपलब्ध हैं आप कभी भी देख और समझ सकते हैं, जेब से पक्के मतलब "पैसे पर फिसलने वाले ना हों" | और जिनकी कथनी और करनी एक हों | ऐसे लोगों को हम चुन लें और हर जगह पर ऐसे 10 -20 लोग तो कम से कम मिल ही जायेंगे, फिर उनको प्रशिक्षित किया जाये कि उनको करना क्या है, प्रशिक्षण के बाद उनको लोकसभा में और विधानसभाओं में भेजा जाये और जो काम करवाना है करवा के वापस बुला लिया जाये | <span style="color: red;">व्यवस्था क्या हो कि पार्टी ख़त्म कर दी जाये इस देश में से, पार्टी की जरूरत नहीं है हमें, और बिना पार्टी के प्रतिनिधियों को हम चुने, हम जहाँ रहते हैं वहां के लोगों के बारे में हमें पता है और कौन सही है, कौन गलत है ये हम जानते हैं, </span>और ये चुने हुए प्रतिनिधि अपने में से ही किसी को प्रधानमंत्री चुन लें, किसी को वित्तमंत्री चुन लें, और जिसको हमने भेजा है उनको वापस भी हम बुला ले एक ही मिनट में, <span style="color: red;">अगर वो हमारी आशा के अनुरूप काम ना करे, गुंडा निकले, भ्रष्टाचारी निकले तो, ये नहीं कि पाँच साल हम इंतजार करते रहे कि दुबारा चुनाव होगा तो हम इसे हराएंगे, </span>जैसे हम कार्यालय में या दुकान पर किसी को काम पर रखते हैं और वो अगर गलत करता हुआ पाया जाता है तो हम इंतजार थोड़े ही करते है उसे निकलने में, वैसे ही इनके साथ होना चाहिए, और ये सारा नियंत्रण लोगों के हाथ में हो | तब जा कर व्यवस्था परिवर्तन हो सकेगा | <br />
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अमेरिका भी एक समय स्पैनिश और फिर अंग्रेजों का गुलाम हुआ लेकिन जब अमेरिका आजाद हुआ तो उसने अपने यहाँ मौजूद सभी अंग्रेजी और स्पैनिश निशानियों को हटाया| आप अमेरिका जायेंगे तो देखेंगे कि उन्होंने रोड पर चलने का अपना ढंग भी अंग्रेजों से उलट बनाया है, वो रोड पर दायें चलते हैं, इंग्लैंड में बिजली का स्विच नीचे ऑन होता है और अमेरिका में ऊपर की तरफ | इतने छोटे स्तर पर उन्होंने बदलाव किया अपने यहाँ, और हम? आप जापान का इतिहास देखिये, फ़्रांस का इतिहास देखिये, जर्मनी का इतिहास देखिये, चीन का इतिहास देखिये, सब इंग्लॅण्ड के गुलाम हुए थे लेकिन जब आजाद हुए तो उन्होंने अंग्रेजों की एक-एक व्यवस्था को अपने यहाँ से उखाड़ फेंका, फ़्रांस और जर्मनी ने तो अपने यहाँ के शब्दकोष में से उन सभी शब्दों को हटाया जो अंग्रेजी से लिया गया था, अमेरिका ने अपनी अलग अंग्रेजी विकसित की | आज इन सब देशों का अपना अस्तित्व तो है ही दुनिया भी उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखती है और ये सब हुआ है अपने यहाँ स्वराज्य लाकर, अपनी व्यवस्था बनाकर | इंग्लैंड में जो जो व्यवस्था है, जो नियम है, जो कानून है वो उनके अपने हिसाब से है और उस व्यवस्था को वो बनायें, चलायें, खुश रहें, हमें कोई आपत्ति नहीं है, तकलीफ की बात ये है कि उनकी व्यवस्थाओं को हम अपने यहाँ लायें और सोचे कि भारत सुखी हो जायेगा, समृद्धशाली हो जायेगा, ये तो अपने को धोखा देना है और पिछले 64 सालों से यहीं हो रहा है इस देश में | जो भी सरकार आती है वो अंग्रेजी और यूरोप की व्यवस्थाओं में ही देश को सुधारने की कोशिश करती है, अंत में क्या होता है कि कुछ सुधरता नहीं है | 64 साल छोडिये पिछले 20 सालों में सभी पार्टियों ने देश पर शासन किया है लेकिन देश वहीं का वहीं है क्योंकि सत्ता तो बदली लेकिन व्यवस्था नहीं बदली है | भारत बनेगा भारत के रास्ते से | </span> <span style="font-size: small;"><br />
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तो मेरे मन में हमेशा एक बात आती है कि अगर हम स्वतंत्रता चाहते है, स्वराज्य चाहते हैं, स्वराज्य जो कि एक बहुत सुन्दर शब्द है, स्वराज्य मतलब अपना राज्य, वो है कहाँ ? ये तो अंग्रेजों का राज्य है, अपना कहाँ हैं ? <span style="color: red;">स्वतंत्रता मिल गयी, गुलामी से मुक्ति मिल गयी, लेकिन स्वराज्य नहीं आया, अपना कुछ भी नहीं है, </span>स्वतंत्रता के 64 साल बाद भी हम गुलाम ही हैं, स्वराज्य तो कोसो दूर है | 1947 के पहले के क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता लाने की लड़ाई लड़ी, अब हमको स्वराज्य के लिए लड़ना होगा | ऐसे ही स्वराज्य नहीं आएगा, या तो आप तय कर लीजिये कि हम स्वराज्य लाने के लिए लड़ेंगे नहीं तो ऐसे ही अपमान से मरते रहेंगे हम इस देश में | दो कौड़ी की आपकी कोई पूछ नहीं है, आपको एक थर्ड क्लास का आदमी सबक सिखा सकता है इस देश में | ना कहीं न्याय है, ना कहीं व्यवस्था है, और कानून इतने बेहुदे हैं इस देश में जिसकी कोई कल्पना नहीं है | अब जरूरत हैं व्यवस्था बदलने की | <span style="border-collapse: collapse; font-size: small;"><span style="outline-style: none;"><span style="outline-style: none;"><br />
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<span style="color: red;">देखिये जब देश की आजादी की लड़ाई चल रही थी तो पूरा भारत उस लड़ाई में नहीं लगा था कुछ लोगों ने उस लड़ाई को लड़ा और हमें आजादी दिलाई थी </span>अब हमें स्वराज्य के लिए लड़ना होगा, स्वराज्य मतलब अपना राज्य, अपनी व्यवस्था, तभी हम सफल हो पाएंगे एक राष्ट्र के रूप में, और आप इसमें पुरे भारत से उम्मीद मत करियेगा कि वो इसमें शामिल हो जायेगा लेकिन हाँ सभी भारतीयों के समर्थन की जरूरत जरूर होगी | और किसी क्रांति के पहले एक वैचारिक क्रांति होती है और मैं अभी उसी वैचारिक क्रांति के लिए ही आपको प्रेरित कर रहा हूँ | </span></span></span>क्योंकि जब क्रांति हो तो हमारे दिमाग में ये भी तो हो कि हमें करना क्या है, इसलिए ये बाते याद रखियेगा क्योंकि समय नजदीक आ गया है | <br />
</span> <span style="font-size: small;"><br />
आपने इतने लम्बे पत्र को धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए आपका धन्यवाद्, इस पत्र को और लोगों को फॉरवर्ड करेंगे तो और भी आभारी रहूँगा | मेरा ये लेख कॉपी राईट कानून के अंतर्गत है मतलब हर किसी को कॉपी करने का राईट है, आप इसे कॉपी कीजिये, मेरा नाम हटाइए और अपना नाम डालिए मुझे कोई आपत्ति नहीं है, मेरी तो बस इतनी ही इच्छा है कि ये पत्र ज्यादा से ज्यादा राष्ट्रप्रेमी भाइयों और बहनों तक पहुंचे | </span><span style="font-size: small;"><br />
</span> <span style="font-size: small;"><b>जय हिंद </b><b><br />
</b></span> <span style="font-size: small;"><b>राजीव दीक्षित </b></span></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-590001745254293677.post-80622788506401613462012-08-23T02:10:00.000-07:002012-08-23T02:10:30.380-07:00भारत का प्रतिभा पलायन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: small;"> जब अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन रिटायर हो रहे थे तो राष्ट्रपति के तौर पर अपने अंतिम भाषण में उन्होंने कहा कि " सोवियत संघ के ख़त्म होने के बाद हमारे दो ही दुश्मन बचे हैं, एक चीन और दूसरा भारत " | रोनाल्ड रीगन के बाद जो राष्ट्रपति आये उसने जो पहले दिन का भाषण दिया संसद में, उसमे उसने कहा कि "मिस्टर रोनाल्ड रीगन ने अपने आर्थिक और विदेश नीति के बारे में जो वक्तव्य दिया, उसी पर हमारी सरकार काम करेगी " | अमेरिका में क्या होता है कि राष्ट्रपति कोई भी हो जाये, नीतियाँ नहीं बदलती, तो रोनाल्ड रीगन ने जो कहा जॉर्ज बुश, बिल क्लिंटन, जोर्ज बुश और ओबामा उसी राह पर चले और आगे आने वाले राष्ट्रपति उसी राह पर चलेगे अगर अमेरिका की स्थिति यही बनी रही तो | तो दुश्मन को बर्बाद करने के कई तरीके होते हैं और अमेरिका उन सभी तरीकों को भारत पर आजमाता है | अमेरिका जो सबसे खतरनाक तरीका अपना रहा है हमको बर्बाद करने के लिए और वो हमको समझ में नहीं आ रहा है, खास कर पढ़े लिखे लोगों को | अमेरिका ने एक ऐसा जाल बिछाया है जिसके अंतर्गत भारत में जितने भी अच्छे स्तर के प्रतिभा हो उसको अमेरिका खींच लो, भारत में मत रहने दो | अब इसके लिए अमेरिका ने क्या किया है कि हमारे देश के अन्दर जितने बेहतरीन तकनीकी संस्थान हैं, जैसे IIT, IIM, AIIMS, आदि, उनमे से जितने अच्छे प्रतिभा हैं वो सब अमेरिका भाग जाते हैं | <br />
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</span><span style="font-size: small;">अमेरिका ने और युरोप के देशों ने अपने यहाँ के ब्रेन ड्रेन (प्रतिभा पलायन) को रोकने के लिए तमाम तरह के नियम बनाए हैं और उनके यहाँ अलग अलग देशों में अलग अलग कानून हैं कि कैसे अपने देश की प्रतिभाओं को बाहर जाने से रोका जाये | उधर अमेरिका और यूरोप के अधिकांश देशों में ये परंपरा है कि आपको </span><span style="font-size: small;">कमाने के लिए </span><span style="font-size: small;">अगर विदेश जाना है तो फ़ौज की सर्विस करनी पड़ेगी, सीधा सा मतलब ये है कि आपको बाहर नहीं जाना है और उन्ही देशो में ये गोल्डेन रुल है कि अगर उनके यहाँ बहुतायत में ऐसे लोग होंगे तो ही उनको बाहर जाने देने के लिए अनुमति के बारे में सोचा जायेगा | और दूसरी तरफ तीसरी दुनिया (3rd World Countries) मे जो सबसे अच्छे दिमाग है उन्हें सस्ते दाम मे खरीदने के लिए उन्होने दूसरे नियम भी बनाए | हमारे देश का क्रीम </span><span style="font-size: small;">(दिमाग के स्तर पर) </span><span style="font-size: small;">उन्हे सस्ते दाम मे मिल सके इसके लिए हमारे यहाँ IIT खोले गये, ये जो IIT खड़े हुए हैं हमारे देश मे वो एक अमेरिकी योजना के तहत हुई थी | हमारे देश का क्रीम (दिमाग के स्तर पर) उन्हे सस्ते दाम मे मिल सके इसके लिए अमेरिका ने एक योजना के तहत आर्थिक सहायता दी थी IIT खोलने के लिए | आप पूछेंगे कि अमेरिका हमारे यहाँ IIT खोलने के लिए पैसा क्यों लगाएगा ? वो अपने यहाँ ऐसे संस्थान नहीं खोल लेगा ? क्यों नहीं खोल लेगा बिलकुल खोल लेगा लेकिन वैसे संस्थान से इंजिनियर पैदा करने मे उसे जो खर्च आएगा उसके 1/6 खर्च मे वो यहाँ से इंजिनियर तैयार कर लेगा | और इन संस्थानों में पढने वाले विद्यार्थियों का दिमाग ऐसा सेट कर दिया जाता है कि वो केवल अमेरिका/युरोप की तरफ देखता है | उनके लिए पहले से एक माहौल बना दिया जाता है, पढ़ते-पढ़ते | और माहौल क्या बनाया जाता है कि जो प्रोफ़ेसर उनको पढ़ाते हैं वहां वो दिन रात एक ही बात उनके दिमाग में डालते रहते हैं कि "बोलो अमेरिका में कहाँ जाना है" तो वो विद्यार्थी जब पढ़ के तैयार होता है तो उसका एक ही मिशन होता है कि "चलो अमेरिका" |</span><span style="font-size: small;"> IITs मे जो सिलेबस पढाया जाता है वो अमेरिका के हिसाब से तैयार होता है, कभी ये देश के अंदर इस्तेमाल की कोशिश करें तो 10% से 20% ही इस देश के काम का होगा बाकी 80% अमेरिका/युरोप के हिसाब से होगा | मतलब कि ये पहले से ही व्यवस्था होती है कि हमारे यहाँ के बेहतरीन दिमाग अमेरिका जाएँ | ये सारी की सारी सब्सिडी अमेरिका की तरफ से हमारे IITs को मिलती है नहीं तो IIT से बी.टेक. करना इतना सस्ता नहीं होता | इस तरह से हमारा हर साल ब्रेन ड्रेन से 25 अरब डॉलर का नुकसान होता है और अमेरिका को अपने देश की तुलना मे इंजिनियर 1/3 सस्ते दाम मे मिल जाते हैं. क्योंकि हमारा मुर्ख दिमाग़ बहुत जल्दी डॉलर्स को रूपये मे बदलता है | इस तरह से अमेरिका हर साल अपना 150-200 अरब डॉलर बचाता है. और हम…………………. अब आप कहेंगे की हम क्यों नहीं ब्रेन ड्रेन रोकने के लिए क़ानून बनाते हैं ? तो हमारे नेताओं को डर है कि जो रिश्वत उन्हे हर साल मिलता है वो बंद हो जाएगा और IIT को जो अमेरिकी धन मिलता है वो भी रोक दिया जाएगा | इस तरह से हमारे यहाँ का बेहतरीन दिमाग अमेरिका चला जाता है और हमारे यहाँ तकनीकी क्षेत्र में पिछड़ापन ही फैला रहता है | अमेरिका को घाटा ये हुआ है कि उसके इंटेलेक्ट मे काफ़ी कमी आई है पिछले 25 सालों मे | आप अमेरिकी विश्वविद्यालयों के टॉपर्स की सूचि उठा के देखेंगे तो वहाँ टॉपर या तो एशियन लड़के/लड़कियां हो रहे हैं या लैटिन अमेरिकन | खैर अमेरिका से हमे तो कुछ लेना है नहीं | और अब ये हो रहा है की वहाँ के लोग भी एशियाई प्रतिभा का विरोध करने लगे हैं | <br />
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इसी तरह हमारे संस्थान यहाँ सबसे अच्छे डॉक्टर निकालते हैं एम्स में से या किसी और अच्छे संस्थान से तो वो भी अमेरिका भागने को तैयार होते है | इसी तरह आईआईएम से निकलने वाले सबसे बेहतरीन विद्यार्थी भी अमेरिका भागने को तैयार होते हैं | तो अमेरिका ने एक जाल फ़ेंक रखा है, जैसे शिकारी फेंकता है कि हर वो अच्छी प्रतिभा जो कुछ कर सकता है इस देश में रहकर अपने राष्ट्र के लिए, अपने समाज के लिए, वो भारत से अमेरिका भाग जाता है | इसको तकनीकी भाषा में आप ब्रेन ड्रेन कहते है, मैं उसे भारत की तकनीकी का सत्यानाश मानता हूँ, क्योंकि ये सबसे अच्छा दिमाग हमारे देश में नहीं टिकेगा तब तो हमारी तकनीकी इसी तरह हमेशा पीछे रहती जाएगी | आप सीधे समझिये न कि जो विद्यार्थी पढ़कर तैयार हुआ, वही विद्यार्थी अगर भारत में रुके तो क्या-क्या नहीं करेगा अपने दिमाग का इस्तेमाल कर के, लेकिन वो दिमाग अगर यहाँ नहीं रुकेगा, अमेरिका चला जायेगा तो वो जो कुछ करेगा, अमेरिका के लिए करेगा, अमरीकी सरकार के लिए करेगा और हम बेवकूफों की तरह क्या मान के बैठे जाते हैं कि "देखो डॉलर तो आ रहा है", अरे डॉलर जितना आता है उससे ज्यादा तो नुकसान हो जाता है और हमको क्या लगता है कि अमेरिका जाने से ज्यादा रुपया मिलता है, हम हमेशा बेवकूफी का हिसाब लगाते हैं, आज अमेरिका का एक डॉलर 55 रूपये के बराबर है और किसी को 100 डॉलर मिलते हैं तो कहेंगे कि 5500 रुपया मिल रहा है | अरे, उनके लिए एक डॉलर एक रूपये के बराबर होता है और वहां खर्च भी उसी अनुपात में होता है | हम कभी दिमाग नहीं लगाते, हमेशा कैल्कुलेसन करते हैं | आज उनका एक डॉलर 55 रूपये का है, कल 70 का हो जायेगा या कभी 100 रूपये का हो जायेगा तो हमारा हिसाब उसी तरह लगता रहेगा | उस हिसाब को हम जोड़ते हैं तो लगता है कि बड़ा भारी फायदा है लेकिन वास्तव में है उसमे नुकसान | यहाँ लगभग 10 लाख रूपये में एक इंजिनियर तैयार किया जाता है इस उम्मीद में कि समय आने पर वो राष्ट्र के काम में लगेगा, देश के काम में लगेगा, राष्ट्र को सहारा देगा, वो अचानक भाग के अमेरिका चला जाता है, तो सहारा तो वो अमेरिका को दे रहा है और अमेरिका कौन है तो वो दुश्मन है, तो दुश्मन को हम अपना दिमाग सप्लाई कर रहे हैं | <br />
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हमारे यहाँ से आजकल जो लड़के लड़कियां वहां जा रहे हैं उनको वहाँ कच्चा माल कहा जाता है और उनके सप्लाई का धंधा बहुत जोरो से चल रहा है | ऐसे ही सॉफ्टवेर इंजिनियर के रूप में बॉडी शोपिंग की जा रही है और वहां इन सोफ्टवेयर इंजिनियर लोगों का जो हाल है वो खाड़ी देशों (Middle East) में जाने वाले मजदूरों से भी बदतर है | जैसे हमारे यहाँ रेलों में 3 टायर होते हैं वैसे ही 5 टायर, 6 टायर के बिस्तर वाले कमरों में ये रहते हैं | अमेरिका दुश्मन है और उसी दुश्मन की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के काम में हमारे देश के लोग लगे हैं | आप बताइए कि इससे खुबसूरत दुष्चक्र क्या होगा कि आपका दुश्मन आपको ही पीट रहा है आपकी ही गोटी से | अमेरिका कभी भी इस देश की तकनीकी को विकसित नहीं होने देना चाहता | इस देश के वैज्ञानिक यहाँ रुक जायेंगे, इंजिनियर यहाँ रुक जायेंगे, डॉक्टर यहाँ रुकेंगे, मैनेजर यहाँ रुकेंगे तो भारत में रुक कर कोई ना कोई बड़ा काम करेंगे, वो ना हो पाए, इसलिए अमेरिका ये कर रहा है | और अमेरिका को क्या फायदा है तो उनको सस्ती कीमत पर अच्छे नौकर काम करने को मिल जाते हैं | हमारे यहाँ के इंजिनियर, डॉक्टर, मैनेजर कम पैसे पर काम करने को तैयार हैं वहां पर और वो भी ज्यादा समय तक | यहाँ अगर किसी लड़के को कहो कि 10 बजे से शाम 5 बजे तक काम करो तो मुंह बनाएगा और वहां अमेरिका में सवेरे 8 बजे से रात के 8 बजे तक काम करता है तो तकलीफ नहीं होती है | कोई भी भारतीय अमेरिका गया है तो वो सवेरे सात बजे से लेकर रात के आठ बजे तक काम ना करे तो उसको जिंदगी चलानी भी मुश्किल है | </span> <span style="font-size: small;"><br />
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और अमेरिका में भारत के लोगों के साथ कैसा व्यव्हार होता है ये भी जान लीजिये, अमेरिका मे यहाँ के लोगों को हमेशा दूसरी या तीसरी श्रेणी के नागरिक के तौर पर ही गिना जाता है | हम यहाँ बहुत खुश होते हैं की कोई भारतीय इस पद पर है या उस पद पर है लेकिन पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और होती है | हमारे यहाँ के लोग कितने ही बुद्धिशाली हो या कितने ही बेसिक रिसर्च का काम किए हो लेकिन उनको कभी भी Higher Authority नहीं बनाया जाता है वहां, मतलब उनका बॉस हमेशा अमेरिकन ही रहेगा चाहे वो कितना ही मुर्ख क्यों ना हो | आनंद मोहन चक्रवर्ती का क्या हाल हुआ सब को मालूम होगा, पहले वो यहाँ CSIR मे काम करते थे, अमेरिका मे बहुत जल्दी बहुत नाम कमाया लेकिन जिस जगह पर उन्हे पहुचना चाहिए था वहाँ नहीं पहुच पाए, हरगोबिन्द खुराना को कौन नहीं जानता आपको भी याद होंगे, उनको भी कभी अपने संस्थान का निदेशक नहीं बनाया गया | नवम्बर 2011 में उनकी मृत्यु हो गयी, कितने अमरीकियों ने उनकी मृत्यु पर दुःख जताया और भारत के लोगों को तो हरगोबिन्द खुराना का नाम ही नहीं मालूम है, अपनी जमीन छोड़ने से यही होता है | ऐसे बहुत से भारतीय हैं, इन प्रतिभाशाली लोगों के बाहर चले जाने से हमे क्या घाटा होता है, जानते हैं आप ? हम फंडामेंटल रिसर्च मे बहुत पीछे चले जाते हैं, जब तक हमारे देश मे बेसिक रिसर्च नहीं होगी तो हम अप्लाइड फील्ड मे कुछ नहीं कर सकते हैं, सिवाए दूसरो के नकल करने के | मतलब हमारा नुकसान ही नुकसान और अमेरिका और युरोप का फायदा ही फायदा |<br />
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सबसे बड़ी बात क्या है, हमारे देश मे सबसे बड़ा स्किल्ड मैंन पावर है चीन के बाद, हमारे पास 65 हज़ार वैज्ञानिक हैं, दुनिया के सबसे ज़्यादा इंजिनियरिंग कॉलेज हमारे देश मे हैं, अमेरिका से 4-5 गुना ज़्यादा इंजिनियरिंग कॉलेज हैं भारत मे, अमेरिका से ज़्यादा हाई-टेक रिसर्च इन्स्टिट्यूट हैं भारत मे, अमेरिका से ज़्यादा मेडिकल कॉलेज हैं भारत मे, हमारे यहाँ पॉलिटेक्निक, ITI की संख्या ज़्यादा है, नॅशनल लॅबोरेटरीस 44 से ज़्यादा हैं जो CSIR के कंट्रोल मे हैं, इतना सब होते हुए भी हम क्यों पीछे हैं ? हम क्यों नहीं नोबेल पुरस्कार विजेता पैदा कर पाते ? <br />
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हमारी सबसे बड़ी कमी क्या है कि हम किसी भी आदमी को उसके डिग्री या पोस्ट से मापते हैं | हमारा सारा एजुकेशन सिस्टम डिग्री के खेल मे फँसा हुआ है इसलिए कई बार बिना डिग्री के वैज्ञानिक हमारे पास होते हुए भी हम उनका सम्मान नहीं कर पाते, उनको जो इज्ज़त मिलनी चाहिए वो हम नहीं दे पाते | जहाँ नोबेल </span><span style="font-size: small;">पुरस्कार विजेता</span><span style="font-size: small;"> पैदा हो रहे हैं वहाँ की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह डिग्री से बाहर है | हमारे यहाँ जो शिक्षा व्यवस्था है वो अँग्रेज़ों के ज़माने का है उन्होने ही डिग्री और इंटेलेक्ट को जोड़ के हमारे सारे तकनीकी संरचना (टेक्नोलॉजिकल इनफ्रास्ट्रक्चर सिस्टम) को बर्बाद कर दिया | अँग्रेज़ों के ज़माने मे ये नियम था कि अगर आप उनके संस्थानों से डिग्री ले के नहीं निकले हैं तो आपकी पहचान नहीं होगी | चुकी उनके संस्थानों से कोई डिग्री लेता नहीं था तो उनकी पहचान नहीं होती थी | बाद मे उनके यहाँ से डिग्री लेना शुरू हुआ और आप देखते होंगे कि हमारे यहाँ बहुत से बैरिस्टर हुए उस ज़माने मे जिन्होंने लन्दन से बैरिस्टर की डिग्री ली थी | उनके तकनीकी संस्थाओं मे अगर आप चले जाएँ डिग्री लेने के लिए तो पढाई ऐसी होती थी की आप कोई बेसिक रिसर्च नहीं कर सकते थे, और संस्थान से बाहर रह के रिसर्च कर सकते हैं तो आपके पास डिग्री नहीं होगी और आपके पास डिग्री नहीं है तो आपका रेकग्निशन नहीं है | हमारे देश में बहुत सारे उच्च शिक्षा के केंद्र रहे 1840 -1850 तक लेकिन अंग्रेजों की नीतियों की वजह से सब की सब समाप्त हो गयी और हमारे देश में किसी भी शासक ने इसे पुनर्स्थापित करने का नहीं सोचा | और उन Higher Learning Institutes में ऐसे ऐसे विषय पढाये जाते थे जो आज भी भारत में तो कम से कम नहीं ही पढाया जाता है | <br />
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आपने धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए धन्यवाद् और अच्छा लगे तो इसे फॉरवर्ड कीजिये, आप अगर और भारतीय भाषाएँ जानते हों तो इसे उस भाषा में अनुवादित कीजिये (अंग्रेजी छोड़ कर), अपने अपने ब्लॉग पर डालिए, मेरा नाम हटाइए अपना नाम डालिए मुझे कोई आपत्ति नहीं है | मतलब बस इतना ही है की ज्ञान का प्रवाह होते रहने दीजिये | <br />
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<b>जय हिंद <br />
राजीव दीक्षित</b></span></div>Unknownnoreply@blogger.com0