Tuesday, January 1, 2013

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता- भाग 1

आदरणीय मित्रों

संस्कृत का एक श्लोक है  -
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता -
अर्थात, जहाँ नारी का सम्मान किया जाता है वहाँ देवता निवास करते हैं | बचपन से यह सुनते आ रहे हैं, इसी पर विश्वास किया है | धैर्य, बलिदान, ममता, वात्सल्य, त्याग, लज्जा, समर्पण, शील, माधुर्य, कोमलता और सौम्यता यही नारी सुलभ गुण माने गये और हर आदर्श नारी को इन्हीं गुणों की कसौटी पर क़स कर परखा गया | लेकिन
अभी कुछ दिनों से भारत देश को gang rape की एक घटना ने हिला कर रख दिया है | मैं बहुत से विद्वानों को बोलते देख रहा हूँ, सुन रहा हूँ और पढ़ भी रहा हूँ लेकिन जो असल बात है वो कोई बता नहीं रहा है | तो मैंने आज ये प्रयास किया है कि इस बात की जड़ (मूल) में आप लोगों को ले जाऊं | कुछ एक ख़राब शब्दों का प्रयोग इस पत्र में है उसके लिए आप मुझे क्षमा कर देंगे ऐसी मेरी विनती है आप सब से, खास तौर से माँ, बहन या बेटियों से मेरी ये विनती है |

भारत में अंग्रेजों के बनाये गए 34735 कानून आज भी चल रहे हैं लेकिन उसमे कुछ कानून ऐसे हैं जिसको उन्होंने अपने हित की रक्षा के लिए बनाया था | उसमे एक था Indian Motor Vehicle Act , आज भी Indian Motor Vehicle Act के तहत किसी भी आरोपी को कठोर सजा नहीं होती, क्यों ? क्योंकि ये कानून जब बना था तो उस समय भारत में मोटर कार और जीप सिर्फ अंग्रेजों और उनके चाटुकार राजाओं के पास ही हुआ करती थी इसलिए उनके हितों के ध्यान में रख कर इस कानून को बनाया गया था |
और दूसरा था बलात्कार वाला कानून - जब अंग्रेजों की सरकार चल रही थी तो उनका एक तरीका था भारतवासियों पर अत्याचार करने का, तो वो किसी किसान पर अत्याचार करते थे लगान वसूल करने के लिए | किसानों से लगान वसूल किया जाता था और वो उनके कुल उपज का नब्बे प्रतिशत होता था और जो किसान लगान दे देते थे उनको अंग्रेज छोड़ देते थे लेकिन जो किसान लगान नहीं देते थे उनपर अत्याचार किया करते थे | अत्याचार में पहला काम होता था किसानों को कोड़े से पीटने का, 100-100  कोड़े किसानों को मारे जाते थे, 100  कोड़े खाते-खाते किसान मर जाते थे, फिर अंग्रेज वहीँ तक नहीं रुकते थे, वे उसके बाद उस किसान के परिवार की माँ, बहन और बेटियों का शीलहरण करते थे |
माँ, बहन और बेटियों के कपडे उतारे जाते थे, पुरे गाँव में उनको नंगा घुमाया जाता था, फिर अंग्रेज अधिकारी उनका सबके सामने शीलभंग करते थे, बलात्कार करते थे और सारे अंग्रेज अधिकारी इसमें शामिल होते थे | इससे अंग्रेज अधिकारियों को अपनी वासना शांत करने का रास्ता तो खुलता ही था, उनको अत्याचार करने और हैवानियत दिखाने का भी रास्ता खुलता था |

परिणाम क्या होता था ? किसानों के घर से शिकायत आती थी इन बलात्कार की घटनाओं की | अंग्रेज अधिकारियों की समस्या ये होती थी की अपने ही सहयोगियों के खिलाफ वो कार्यवाही क्या करे ? मान लीजिये, एक अंग्रेज उच्च अधिकारी है, उसके पास किसी किसान ने ये शिकायत की कि उसके नीचे के अधिकारी ने उस किसान के
माँ, बहन या बेटियों से बलात्कार किया तो वो ऊपर वाला अधिकारी अपने नीचे वाले अधिकारी को बचाने में लग जाता था और उसको बचाने के लिए फिर अंग्रेजों ने एक रास्ता निकाला और उस रास्ते को कानून में बदल दिया | बलात्कार के खिलाफ अंग्रेजों ने कानून बनाया सबसे पहला, इसमें उन्होंने एक हिस्सा जोड़ा, इसका नाम था Reversal of Burden of Proof | और उस कानून में ये व्यवस्था की कि "जिस माँ, बहन या बेटी के साथ बलात्कार होगा, उस माँ, बहन या बेटी को अंग्रेजों की अदालत में आकर सिद्ध करना पड़ेगा कि उसके साथ बलात्कार हुआ है, जिस अंग्रेज ने बलात्कार किया है उसको कुछ भी सिद्ध नहीं करना पड़ेगा और जब तक सिद्ध नहीं होगा तब तक वो अंग्रेज अभियुक्त नहीं माना जाएगा, पापी नहीं माना जायेगा, अपराधी नहीं माना जाएगा, ये कानून बना दिया अंग्रेजों ने | ये कानून बनते ही इस देश में बलात्कार की बाढ़ आ गयी | हर गाँव में, हर शहर में माँ, बहन और बेटियों की इज्जत से अंग्रेजों ने खेलना शुरू किया, क्योंकि अंग्रेजों को ये मालूम था कि कोई भी माँ, बहन या बेटी अदालत में ये सिद्ध कर ही नहीं सकती कि उसके साथ बलात्कार हुआ है | कानून के गलियां ऐसी टेढ़ी-मेढ़ी बनाई गयी कि किसी भी माँ, बहन या बेटी को ये सिद्ध करना एकदम असम्भव हो जाए कि उसके साथ बलात्कार हुआ है |

आप देखिये कि इससे बड़ा दुनिया में क्या अत्याचार हो सकता है कि जिसके ऊपर अत्याचार हुआ, उसे सिद्ध करना है कि उसके ऊपर अत्याचार हुआ, जिसने अत्याचार किया उसको कुछ भी सिद्ध नहीं करना है कि इसने अत्याचार किया | परिणाम ये होता था कि 100 अंग्रेज बलात्कार करते थे भारत की
माँ, बहन या बेटियों से तो उसमे से दो-तीन अंग्रेजों के खिलाफ ये साबित हो पाता था और उनको ही सजा हो पाती थी, 97-98 अंग्रेज बाइज्जत बरी हो जाते थे और फिर वो दुबारा यही काम करते थे | हमारे पास दस्तावेज हैं कई अंग्रेज अधिकारियों के, जिन्होंने अपनी पर्सनल डायरी में ये लिखा है | एक अंग्रेज अधिकारी था, कर्नल नील, उसकी डायरी के कुछ पन्ने हैं फोटो कॉपी के रूप में, उसकी नियुक्ति भारत के कई स्थानों पर हुई थी, वाराणसी में वो रहा, इलाहाबाद में वो रहा, बरेली में वो रहा, दिल्ली में वो रहा, बदायूँ में वो रहा, वो अपनी डायरी में लिख रहा है कि "कोई भी दिन ऐसा बाकी नहीं रहा जब मैंने किसी भारतीय औरत के शीलहरण नहीं किया", ये नील की डायरी में उसके लिखे हुए शब्द हैं | आप सोचिये के कितने हैवान थे वो अंग्रेज और ध्यान दीजिये कि ये सब उन्होंने किया कानून की मदद से | एक बात और, बलात्कार के केस में पीडिता से कोर्ट में ऐसे भद्दे-भद्दे और बेहुदे प्रश्न किये जाते हैं कि सुनने वाला लजा जाए, आपकी गर्दन शर्म से झुक जाए, आप सोचिये की पीडिता का क्या हाल होता होगा, यही कारण है कि बलात्कार के 100 मामलों में 95 में तो कोई केस ही दर्ज नहीं होता और जो 5 केस दर्ज भी होते हैं तो उसमे पीडिता को न्याय मिलता ही नहीं है |

मुझे ये कहते हुए बहुत दुःख और अफ़सोस है कि आजादी के दिन यानि 15 अगस्त 1947 को जिस कानून को जला देना चाहिए था, ख़त्म कर देना चाहिए था, वो कानून आजादी के 65 साल बाद भी चल रहा है और आज भी इस देश में
माँ, बहन और बेटियों के साथ बलात्कार हो रहे हैं और माँ, बहन और बेटियों को अदालत में सिद्ध करना पड़ रहा है कि उनके खिलाफ अत्याचार हो रहा है, अत्याचार करने वाले को कुछ भी सिद्ध नहीं करना पड़ता | आप जानते हैं कि किसी भी माँ, बहन या बेटी से खुले-आम, सरेआम ऐसे सवाल पूछे कि "उसके साथ बलात्कार हुआ या नहीं हुआ", वो अगर सभ्य है, थोड़ी भी सुसंस्कृत है तो जवाब नहीं दे सकती और उसके मौन का फायदा उठाकर ये कानून हमारे देश की करोड़ों माँ, बहन, बेटियों से खिलवाड़ करता है |

दूसरी तरफ भारत के कानून हैं, हमारे देश में न्याय व्यवस्था का जो सबसे बड़ा कानून है, उसका नाम है इंडियन पिनल कोड (IPC), दूसरा कानून है सिविल प्रोसीजर कोड (CPC) और तीसरा कानून है क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (CrPC) | ये तीनों कानून भारतीय न्याय व्यवस्था के आधार स्तम्भ हैं और ये तीनों कानून अंग्रेजों के बनाये हुए हैं |
ये Indian Penal Code अंग्रेजों के एक और गुलाम देश Ireland के Irish Penal Code की फोटोकॉपी है, वहां भी ये IPC ही है लेकिन Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वहीं भारत में इस "I" का मतलब Indian है, इन दोनों IPC में बस इतना ही अंतर है बाकि कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है | अंग्रेजों का एक अधिकारी था टी.वी.मैकोले, उसका कहना था कि भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करना होगा | Indian Education Act भी मैकोले ने ही बनाया था और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी | ये बनी 1840 में और भारत में लागू हुई 1860 में | ड्राफ्टिंग करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि "मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा | इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे ज्यादा तकलीफ देगी | और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जडमूल से समाप्त कर देगा"| और वो आगे लिखता है कि " जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा" | ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है |

सुनवाई के लिए सबूत इकट्ठे किये जाते हैं, उन सबूतों के लिए अंग्रेजों के ज़माने का ही एक कानून है इंडियन एविडेंस एक्ट |
Indian Evidence Act काम करता है गवाह और सबूत के आधार पर और ये दोनों ही बदले जा सकते हैं | गवाह भी बदले जा सकते हैं और सबूत तो इतने आसानी से मिटाए जाते हैं और नए बनाये जाते हैं इस देश में कि आप कल्पना नहीं कर सकते हैं | इसी कारण से, चूकी गवाह बदले जाते हैं, गवाह कैसे बदलते हैं, पता है आपको ? पुलिस बयान लेती है और अदालत में जैसे ही वो गवाह खड़ा होता है, तुरंत मुकर जाता है और कहता है कि पुलिस ने जबरदस्ती ये बयान मुझसे लिया है और जैसे ही वो ये कहता है, वो मुक़दमा, जो 20 मिनट में ख़त्म हो जाता, 10 साल तक चलता रहता है | और यही कारण है कि अंग्रेजी न्याय व्यवस्था में conviction rate  पाँच प्रतिशत है | Conviction Rate समझते हैं आप ? 100 लोगों के ऊपर मुक़दमा किया जाये तो सिर्फ पाँच लोगों को ही सजा होती है, 95 को सजा होती ही नहीं, वो अदालत से बाइज्जत बरी हो जाते हैं | तो इसका मतलब है कि या तो 95 मुकदमे झूठे, या सरकार झूठी, या पुलिस व्यवस्था झूठी या न्याय व्यवस्था कमजोर | ये इंडियन एविडेंस एक्ट ने ऐसा सत्यानाश कर रखा है इस देश का कि सत्य महत्व का नहीं है बल्कि गवाह और सबूत महत्व का है, कई बार पुलिस कहती है कि सत्य हमें मालूम है लेकिन गवाह नहीं, सबूत नहीं है, क्या करे हम ? ना सजा दिलवा सकते हैं, ना किसी को न्याय दिलवा सकते हैं | और न्यायाधीश को सत्य की पहचान करने के लिए बिठाया जाता है, वो न्यायाधीश भी सबूत और गवाह के आधार पर सत्य की तलाश करता है, जब कि सच्चाई ये है कि सत्य अपने आप में ही पूर्ण होता है, उसको कोई गवाह की जरूरत नहीं होती है, उसको कोई सबूत की जरूरत नहीं होती | इस इंडियन एविडेंस एक्ट या कहें भारतीय न्याय व्यवस्था का कैसा मजाक इस देश में हो रहा है उसका एक उदाहरण देता हूँ | 26 नवम्बर को जिन आतंकवादियों ने पाकिस्तान से आकर मुंबई में सैकड़ों निर्दोष लोगों को मार दिया | उनमे से एक पकड़ा गया और उसके ऊपर नौटंकी चली कि नहीं | हम सब को सत्य मालूम है कि इसने सैकड़ों लोगों को मारा, इस मामले में निर्णय देना 10 मिनट का काम था, अब उस पर सबूत ढूंढे गए, गवाह ढूंढे गए और वो मक्कार आतंकवादी मजाक बना रहा है, हँस रहा है | भारतीय न्याय व्यवस्था पर हँस रहा है और दुर्भाग्य से ये हमारी न्याय व्यवस्था नहीं है, ये अंग्रेजों की है |   
एक और कानून है जो भारत की माँ, बहन बेटियों को बहुत परेशान कर रहा है, वो है गर्भपात का कानून | हमारे देश में गर्भपात के लिए कानून है, किसी बच्चे को जन्म लेने के पहले मारेंगे तो गर्भपात कह कर छोड़ देते हैं लेकिन उसे जन्म लेने के बाद मारे तो हत्या हो जाती है और 302 का मामला बनता है | बच्चे को जन्म के पहले मारा तो भी हत्या है और जन्म लेने के बाद मारा तो वो भी हत्या ही है, दोनों में सजा एक जैसी होनी चाहिए और वो फाँसी ही होनी चाहिए लेकिन जन्म से पहले मारो तो गर्भपात है और जन्म के बाद मारो तो हत्या है, इसीलिए इस देश के लाखों लालची डौक्टर करोड़ों बेटियों को गर्भ में भी मार डालते हैं क्योंकि गर्भ में मार देने पर उनको फाँसी नहीं होती है | एक करोड़ बेटियों को हर साल गर्भ में ही मार दिया जाता है इसी कानून की मदद से | अब आप बताइए कि बेटी को गर्भ में मारो तो गर्भपात और गर्भ से बाहर आने पर मारो तो हत्या, अगर इस तरह के कानून के आधार पर कोई फैसला होगा तो वो कोई न्याय दे सकता है ? मुकदमे का फैसला होता है कानून के आधार पर और न्याय होता है धर्म के आधार पर , सत्य के आधार पर | धर्म और सत्य से न्याय की स्थापना हो सकती है, कानून से न्याय की स्थापना नहीं हुआ करती है | दुर्भाग्य से हमारे देश में धर्म और सत्य की सत्ता नहीं है, कानून की सत्ता है, Law and Order की बात होती है, धर्म और न्याय की बात नहीं होती है, सत्य की बात नहीं होती है जो अंग्रेज छोड़ कर चले गए उस कानून व्यवस्था की बात होती है और हम ख़ुशी-ख़ुशी ढो रहे हैं आजादी के 65  साल बाद भी | 

भारत में जो राष्ट्रीय महिला आयोग है या राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन हैं, ये सब दिखावे के संगठन हैं, अंग्रेजी का एक शब्द प्रयोग करूँ तो ये सब "Ornamental Organizations" हैं | राष्ट्रीय महिला आयोग के बारे में तो मेरा व्यक्तिगत अनुभव है लेकिन उसका यहाँ जिक्र करना ठीक नहीं होगा, ये मरे हुए संगठन हैं, ये किनके लिए काम करते हैं, भगवान जाने | मैंने देखा है कि इन संगठनों में ज्यादातर राजनीति से जुड़े लोग ही रहते हैं और राजनेताओं की जनता के प्रति क्या विचारधारा है, कहने की आवश्यकता नहीं हैं | इनकी विचारधारा सही होती तो इस देश में गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी नहीं होती |   
कैसे मिले न्याय माँ, बहन बेटियों को उस देश में जहाँ कहा गया है -यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता- आप ही बताइए ?   

लेखक भाई राजीव दीक्षित जी

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